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DRDO को इस चीज का है इंतजार, रक्षा क्षेत्र में मेक इन इंडिया को लग सकता है झटका
इस डेवलपमेंट के बाद भारतीय वैज्ञानिकों को स्वदेशी एंटी मिसाइल प्रणाली पर खतरे के बादल नजर आने लगे हैं। वैज्ञानिक सूत्रों का कहना है कि चाहे सेना हो या वायुसेना और नौसेना। तीनों सैन्यबल अग्नि, पृथ्वी, आकाश, नाग जैसी मिसाइलों को छोड़ दिया जाए तो
नई दिल्ली: सीडीएस जनरल विपिन रावत ने घोषणा की है कि अगला युद्ध मेक इन इंडिया हथियारों पक्षधर हों, लेकिन इसकी राह बहुत आसान नहीं है। डीआरडीओ से अभी में रिटायर हुए एक उच्चस्थ वैज्ञानिक का कहना है कि मेक इन इंडिया अभी कागजों पर रहा है। डीआरडीओ के वैज्ञानिक उच्च स्तरीय गुणवत्ता के रक्षा साजो सामान बनाते हैं, लेकिन उन्हें सैन्य बलों के बेड़े में शामिल कराना मुश्किल है।
बता दें कि डीआरडीओ ने उन्नत किस्म की हवा में ही दुश्मन के वार को ध्वस्त कर एंटी मिसाइल प्रणाली विकसित की है, लेकिन हम नहीं कह सकते कि यह कब सैन्य बलों के बेड़े में शामिल होगी। डीआरडीओ ने सेना में आर्टिलरी की डिमांड देखकर 155 एमएम और 52 कैलिबर की तोप (एडवांस टोड आर्टिलरी गन, एटीएजी) विकसित की है। यह तोप सेना की बताई जरूरतों के आधार पर सातवें जोन तक फायर करने में सक्षम है।
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यह न केवल 48 किमी दूर दुश्मन के निशाने को ध्वस्त कर सकती है, बल्कि 30 सेकेंड में स्वचालित तकनीक के सहारे पांच गोले दागने की क्षमता रखती है। दुनिया में अभी तक मौजूद तोप केवल छठवें जोन तक फायर करती है। डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने इस तोप से लखनऊ की रक्षा प्रदर्शनी में भी पर्दा उठाया था। डीआरडीओ प्रमुख सतीश रेड्डी भी तोप के परीक्षण के नतीजों से उत्साहित हैं। डीआरडीओ के वैज्ञानिकों का कहना है कि हाल ही में हुए परीक्षण में इसने सभी मानकों को सफलता पूर्वक पूरा किया है। अब इसे भारतीय सेना को परीक्षण के लिए सौंपने का प्रस्ताव किया गया है।
डीआरडीओ ने सेना की गुणवत्ता को लेकर होने वाली शिकायत को दूर करने के लिए एडवांस टोड आर्टिलरी गन (एटीएजी) को निजी कंपनियों के सहयोग से विकसित किया है। इसमें कल्याणी ग्रुप की कंपनी भारत फोर्ज और टाटा डिफेंस शामिल है। तकनीक डीआरडीओ की और निर्माण दोनों निजी कंपनियों का। टाटा डिफेंस और भारत फोर्ज दोनों रक्षा क्षेत्र की बड़ी कंपनियां हैं। दोनों दुनिया के कई देशों को रक्षा साजो सामान की आपूर्ति करती हैं। डीआरडीओ से मिली जानकारी के अनुसार, एटीएजी की गुणवत्ता पर अब कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता, लेकिन हम यह नहीं कह सकते कि इसे सेना के बेड़े में कब जगह मिलेगी?
बताते हैं एटीएजी दुनिया की बेहतरीन गन है, लेकिन इस्राइल के दबाव में भारतीय सेना इजरायली गन लेने की पहल कर सकती है। जबकि डीआरडीओ की गन की तुलना में इजरायली गन कहीं नहीं टिकती। बताते हैं इजरायली कंपनी पहले ब्लैक लिस्टेड भी की जा चुकी थी। डीआरडीओ की एंटी मिसाइल प्रणाली हवा में 80 किमी दूर ही दुश्मन के वार की पहचान करके उसे ध्वस्त करने में सक्षम है। इसी तरह से अमेरिका वाशिंगटन की सुरक्षा में तैनात अपनी एंटी मिसाइल प्रणाली नासाम्स-2 भारत को देने के लिए दबाव बना रहा है।
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इस डेवलपमेंट के बाद भारतीय वैज्ञानिकों को स्वदेशी एंटी मिसाइल प्रणाली पर खतरे के बादल नजर आने लगे हैं। वैज्ञानिक सूत्रों का कहना है कि चाहे सेना हो या वायुसेना और नौसेना। तीनों सैन्यबल अग्नि, पृथ्वी, आकाश, नाग जैसी मिसाइलों को छोड़ दिया जाए तो स्वदेशी तकनीक से तैयार हुए सैन्य साजो सामान की बजाय विदेशी हथियारों पर अधिक भरोसा करते हैं।