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Lok Sabha elections : ममता बनर्जी के गढ़ पर भाजपा की नजर
कोलकाता। पश्चिम बंगाल की दक्षिण कोलकाता सीट ममता बनर्जी का गढ़ मानी जाती है। ममता यहां से पांच बार सांसद रह चुकी हैं। इस बार इस संसदीय सीट पर भाजपा की नजर है। ममता बनर्जी का इस सीट पर उस समय से कब्जा है जब पूरे राज्य में वाम मोर्चा की तूती बोलती थी लेकिन अब सरकार के साथ-साथ माहौल में भी परिवर्तन हुआ है।
पहले चुनाव में जीती थी कांग्रेस
1951, 1957 और 1962 तक दक्षिण कलकत्ता की सीट कलकत्ता दक्षिण पश्चिम और कलकत्ता दक्षिण पूर्व सीट के नाम से जानी जाती थी।
वर्ष 1951 में कलकत्ता दक्षिण पश्चिम सीट से कांग्रेस के असीम कृष्णा दत्त ने चुनाव जीता जबकि कलकत्ता दक्षिण पूर्व सीट पर भारतीय जनसंघ के श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कांग्रेस के मृगांका मोहन सुर को पराजित किया।
वर्ष 1957 में दूसरी लोकसभा के लिए हुए चुनाव में कलकत्ता दक्षिण पश्चिम से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे बीरेन राय ने कांग्रेस के तत्कालीन सांसद असीम कृष्णा को हरा दिया और कलकत्ता पूर्व से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के साधन चंद्र गुप्ता ने बाजी मारी।
1960 में कलकत्ता पश्चिम में हुए उपचुनाव में भाकपा के इंद्रजीत गुप्ता यहां से विजयी हुए।
1962 के आम चुनाव में भाकपा के श्री इंद्रजीत ने एक बार फिर कलकत्ता दक्षिण पश्चिम सीट पर जीत का परचम लहराया तो वहीं कलकत्ता पूर्व से भाकपा के रानेन्द्र नाथ सेन ने चुनाव जीता।
1967 में परिसीमन के बाद इसे कलकत्ता दक्षिण लोकसभा सीट का नाम मिला और इसी वर्ष के चुनाव में माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) ने इस सीट पर अपना खाता -खोला और उसके उम्मीदवार गणेश घोष यहां से सांसद बने।
1971 में कांग्रेस के प्रियरंजन दासमुंशी ने सीपीएम के श्री गणेश को परास्त कर चुनाव जीता।
आपातकाल के बाद 1977 में हुए आम चुनावों में भारतीय लोकदल के उम्मीदवार दिलीप चक्रवर्ती ने प्रियरंजन दासमुंशी को हरा दिया।
1980 में माकपा के सत्य साधन चक्रवर्ती यहां से सांसद बने।
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में चली सहानुभूति लहर में कांग्रेस के भोला नाथ सेन यहां से विजयी हुए लेकिन पांच वर्ष के बाद लोगों ने अपना सांसद बदल दिया।1989 के चुनाव में माकपा के विप्लब दासगुप्ता यहां से सांसद चुने गए।
1991 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने ममता बनर्जी को इस सीट से उम्मीदवार बनाया और वह माकपा के सांसद बिप्लब दासगुप्ता को हराकर यहां से सांसद बनीं।
1996 में ममता बनर्जी ने कांग्रेस के टिकट पर एक बार फिर चुनाव जीता। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस का हाथ छोड़कर तृणमुल कांग्रेस का गठन किया।
1998, 1999, 2004 और 2009 में ममता भारी मतों से विजयी हुईं।
वर्ष 2011 के विधानसभा चुनावों में वाम मोर्चे का 34 वर्षों का किला ढहाने के बाद राज्य की मुख्यमंत्री बनने पर ममता बनर्जी ने इस सीट से इस्तीफा दे दिया और उपचुनाव में
उन्होंने सुब्रत बक्शी को उम्मीदवार बनाया जिन्होंने सीपीएम के उम्मीदवार को 2,30,099 वोटों के अंतर से हराया। वर्ष 2014 के चुनाव में बक्शी को एक बार फिर उम्मीदवार
बनाया और इस बार उन्होंने अपने निकटत्तम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के उम्मीदवार तथागत राय को 1,36,339 वोटों से पराजित कर दिया।
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नेताजी के पौत्र हैं भाजपा प्रत्याशी
भाजपा ने इस बार नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पौत्र चंद्र कुमार बोस को उम्मीदवार बनाया है। जबकि तृणमूल ने माला राय पर दांव लगाया है। सीपीएम की ओर से नंदनी मुखर्जी और कांग्रेस की मीता चक्रवर्ती मैदान में उतरी हैं। वैसे तो हमेशा यहां मुकाबला कांग्रेस, तृणमूल और सीपीएम के बीच रहा है लेकिन चंद्र कुमार बोस के मैदान में उतरने से मुकाबला दिलचस्प हो गया है। बंगाल में अपने पैर मजबूती से जमाने की कोशिशों में लगी भाजपा, ममता बनर्जी गढ़ माने जाने वाली यह सीट हथियाने जुगत कर रही है जबकि कांग्रेस और सीपीएम अपनी खोई जमीन वापस पाने की कोशिश में है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि यहां की जनता इस बार परिर्वतन करेगी या ममता का अभेद किला बरकरार रखेगी। इस सीट के तहत कस्बा, बेहाला पूर्व, बेहाला पश्चिम, कोलकाता पोर्ट, भवानीपुर, रासबेहारी और बालीगंज विधानसभा सीटें आती है। यहां आखिरी चरण में 19 मई को मतदान होगा।