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मनीष सिसोदिया के घर छापेमारी: भाजपा-आप की नूरा कुश्ती या 2024 से पहले केजरीवाल को घेरने की तैयारी

BJP vs AAP: मनीष सिसोदिया सरकार के साथ –साथ संगठन में भी नंबर दो की हैसियत रखते हैं। सीएम अरविंद केजरीवाल के सबसे भरोसमंद सहयोगियों में से एक माने जाते हैं।

Krishna Chaudhary
Published on: 20 Aug 2022 4:31 PM IST
Raid at Manish Sisodia
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मनीष सिसोदिया-भाजपा-आप: Photo- Social Media

BJP vs AAP: दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया (Delhi Deputy Chief Minister Manish Sisodia) के घर सीबीआई की रेड (CBI raid) ने देश की राजनीति को गरमा दिया है। दिल्ली की आबकारी नीति घोटाले (Delhi excise policy scam) में उन्हें मुख्य आरोपी बनाया गया है। शुक्रवार को 14 घंटे तक चली रेड में सीबीआई (CBI) ने उनके घर से कई दस्तावेज बरामद किए हैं। जांच एजेंसी ने ये कार्रवाई दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना (Lieutenant Governor VK Saxena) की सिफारिश पर शुरू की है। सिसोदिया खुद भी मान चुके हैं, इसबार उनकी गिरफ्तारी की पूरी तैयारी कर ली गई है और अगले दो –चार दिनों में उन्हें जेल में डाला जा सकता है।

ऐसे में दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन (Delhi Health Minister Satyendar Jain) के बाद सिसोदिया केजरीवाल सरकार (kejriwal government) के ऐसे दूसरे कद्दावर नेता हैं, जिनके ऊपर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है। मनीष सिसोदिया सरकार के साथ –साथ संगठन में भी नंबर दो की हैसियत रखते हैं। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Chief Minister Arvind Kejriwal) के सबसे भरोसमंद सहयोगियों में से एक माने जाते हैं। केजरीवाल इन दिनों अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए गुजरात और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों का अंधाधुंध दौरा कर रहे हैं। ऐसे में दिल्ली सरकार (Delhi Government) का लगभग पूरा कामकाज उनके डिप्टी सिसोदिया ही देख रहे हैं।

Photo- Social Media

साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) के लिए समय अब ज्यादा नहीं रह गया है। उससे पहले कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिनमें सीधा टक्कर बीजेपी और कांग्रेस के बीच होना है। इनमें से कुछ राज्यों में आम आदमी पार्टी भी खासा जोर लगा रही है। यही वजह है कि कुछ दिनों पहले जांच एजेंसियों के खिलाफ देशव्यापी विरोध प्रद्रर्शन करने वाली कांग्रेस सिसोदिया पर हुई कार्रवाई का समर्थन करते हुए नजर आ रही है यानी कांग्रेस और बीजेपी दोनों एक पाले में खड़े हैं। ऐसे में आम चुनाव से पहले दिल्ली में हुई इस कार्रवाई को काफी अहम माना जा रहा है।

आंदोलन से निकली पार्टी ने राष्ट्रीय पार्टियों की उड़ाई नींद

इस देश ने आंदोलनों से निकले कई राजनीतिक दल और नेताओं को देखा है। मौजूदा दौर में ऐसे दल और नेता मात्र पारिवारिक और जातीय आधारित होकर किसी एक राज्य तक सीमित रह गए हैं। लेकिन साल 2012 में भ्रष्टाचार के खिलाफ जाने-माने वृद्ध समाजसेवी अन्ना हजारे (Social worker Anna Hazare) की देशव्यापी आंदोलन (nationwide movement) से एक ऐसे दल का उभार हुआ, जिसे राजनीतिक विश्लेष्क लंबी रेस का घोड़ा बता रहे हैं। साल 2012 में जब अरविंद केजरीवाल ने आंदोलन के दौरान राजनीतिक दल बनाने का ऐलान किया तब आंदोलन के अन्ना हजारे ही इससे सहमत नहीं थे और दोनों की राहें जुदा हो गईं। लोगों को भी लगा कि सियासी दलों की भीड़ में एक और सियासी दल का जन्म हुआ है।

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लेकिन केजरीवाल ने सबकों चौंकाते हुए एक साल के भीतर ऐसा कारनाम कर दिया, जिससे सभी हैरान रह गए। उन्होंने न केवल 15 सालों से सत्ता में जमीं कांग्रेस का सूफड़ा साफ कर दिया बल्कि मोदी लहर के बदौलत उस दौरान एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बड़ी जीत दर्ज करने वाली बीजेपी के विजय रथ को दिल्ली में रोक दिया। अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की सत्ता में बीजेपी की वापसी को अब काफी हद तक मुश्किल कर दिया है। साल 1998 में दिल्ली की सता गंवानी वाली बीजेपी आज तक वापसी नहीं कर सकी है। कांग्रेस का तो नाम लेने वाला नहीं बचा है। ऐसे में इस छोटी पार्टी ने शहरी निम्न और मध्य वर्ग में ऐसी पकड़ बनाई कि जिसकी काट आज तक ये दोनों राष्ट्रीय पार्टियां नहीं खोज पाई हैं।

समय के साथ – साथ चतुर राजनेता बन गए केजरीवाल

साल 2013 से अब तक दिल्ली में तीन और पंजाब में एक विधानसभा चुनाव जीत चुके आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) के मुखिया अरविंद केजरीवाल वक्त के साथ सियासत के मझे हुए खिलाड़ी बन चुके हैं। वर्तमान में उनमें वो सारे गुण आ चुके हैं जो कि इस देश के एक चतुर राजनेता में होती है। शुरूआती दिनों में बात – बात पर धरना देने वाले दिल्ली सीएम अब एक परिपक्व राजनेता के तौर पर व्यवहार करने लगे हैं। नई राजनीति का नारा बुलंद करने वाले केजरीवाल अब उसी राजनीतिक सिस्टम का हिस्सा बन चुके हैं। सियासत में आने से पहले राजनीतिक दलों में व्यापत तानाशाही की कड़ी आलोचना करने वाले केजरीवाल अब खुद अपनी पार्टी को वन मैन आर्मी की तर्ज पर चला रहे हैं, जैसा कि देश के अन्य परिवार आधारित दलों में होता है।

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उन्होंने धीरे – धीरे आंदोलन के दौरान के साथी और बुद्धिजीवियों जैसे योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण और कुमार विश्वास को साइडलाइन कर दिया। पत्रकार से राजनेता बने आशुतोष को भी वापस अपने पेशे में लौटना पड़ा। इसी तरह लिस्ट लंबी है। उन्होंने पार्टी में हर उस शख्स को किनारे लगा दिया जो या तो उनकी राय से इत्तेफाक नहीं रखता था या उनके लिए चुनौती बन सकता था। तुष्टीकरण और हिंदुत्व की राजनीति पर हमला बोलने वाले अरविंद केजरीवाल सियासत के इन दो हथियारों को आजमाने से भी नहीं चुके। उन्होंने हर खांचे को खुद को फिट करने की कोशिश की।

धारा 370 और राम मंदिर निर्माण (Ram temple construction) का समर्थन कर उन्होंने राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की ओर झुकाव रखने वाले लोगों का समर्थन हासिल करने की कोशिश की तो वहीं सीएए और एनआरसी समेत अन्य मुद्दों पर बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस से भी आक्रमक रूख अख्तियार कर उन्होंने तुष्टीकरण की भी खूब राजनीति की। इसी तरह पुलिस का दुरूपयोग अपने विरोधियों के खिलाफ किस तरह किया जा सकता है इसे भी केजरीवाल ने अच्छे तरह से सीख लिया।

बीजेपी पर दिल्ली पुलिस का बेजां इस्तेमाल करने वाले आप प्रमुख ने पंजाब की पुलिस को किस तरह दिल्ली में भाजपा और कांग्रेस के नेताओं के पीछे लगा दिया, ये जगजाहिर है। इसलिए राजनीति जानकार मानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीति को लंबे समय में कोई मात देने का माद्दा रखता है तो वो हैं अरविंद केजरीवाल। क्योंकि हिंदी पट्टी से आने वाले केजरीवाल अपनी पृष्ठभूमि के कारण शहरी वर्ग में काफी प्रसिद्ध हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में मोदी – शाह की बीजेपी को दो – दो बार उनके नाक के नीचे कड़ी शिकस्त देकर उन्होंने अपने आप को इनके बेस्ट चैंलेंजर के तौर पर प्रस्तुत किया है।

आम चुनाव से पहले केजरीवाल को घेरने की तैयारी

इस साल पंजाब विधानसभा चुनाव में मिली ऐतिहासिक जीत से दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल गदगद हैं। उन्होंने वो कर दिखाया जो आज तक देश की बड़ी – बड़ी रीजनल पार्टियां नहीं कर सकीं। इस प्रचंड जीत के बाद उनके अंदर की राष्ट्रीय महत्वकांक्षा और जोर – जोर से हिलोरें मारने लगी। इसके बाद उन्होंने अपना फोकस आगामी विधानसभा चुनाव वाले राज्यों पर कर दिया। गुजरात में जिस तरह की उन्होंने सक्रियता दिखाई है और उन्हें जैसा रिस्पांस मिला, उससे कांग्रेस के साथ – साथ सत्ताधारी बीजेपी भी थोड़ी परेशान है। इसके अलावा केजरीवाल का लक्ष्य आगामी लोकसभा चुनाव में हिंदी पट्टी के राज्यों में 50 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करना है। अगर वह ऐसा करने में सफल रहती है तब वह 2024 में एक बड़े प्लेयर की भूमिका में आ जाएगी। हिंदी पट्टी के बल पर लगातार दूसरी बार प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने वाली बीजेपी के लिए ये किसी बड़े खतरे से कम नहीं होगा।

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क्या जानबूझकर आप को ज्यादा भाव दे रही बीजेपी ?

आम आदमी पार्टी के उभार और इन दिनों दिल्ली में मनीष सिसोदिया के ऊपर सीबीआई रेड (CBI Raid) को एक दूसरे एंगल से भी देखा जा रहा है। हमें इसके लिए थोड़ा भूतकाल में अन्ना आंदोलन के दौरान के समय में जाना होगा। याद करिए उस वक्त कांग्रेस के तमाम बड़े नेता मसलन एमपी के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह साफ तौर पर कहा करते थे कि ये आंदोलन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा प्रोयोजित है। इसमें जमा हुई भीड़ में आरएसएस के लोग शामिल हैं। इस आंदोलन ने कांग्रेस के खिलाफ जो भारी आक्रोश उपजाया, उसकी फसल साल 2014 के आम चुनाव में बीजेपी ने काटी। इसके बाद से कांग्रेस के नेता समय – समय पर अरविंद केजरीवाल को बीजेपी की बी – टीम कहते रहे हैं।

आम आदमी पार्टी के अबतक के विस्तार को देंखें तो कांग्रेस के आरोप हवा – हवाई भी नहीं लगते। क्योंकि आप ने जहां – जहां विस्तार किया कांग्रेस को निगल कर ही किया। दिल्ली में विधानसभा चुनाव में बीजेपी भले हारी लेकिन उसका वोट प्रतिशत बना रहा। लेकिन कांग्रेस का वोट प्रतिशत 20 प्रतिशत से नीचे आ गया। आंकड़े गवाह हैं जिन – जिन राज्यों में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 20 प्रतिशत से नीचे गया है वहां वो दोबारा उठ नहीं पाई है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत अभियान में आप एक अहम योगदान निभाती नजर आ रही है।

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दिल्ली औऱ पंजाब के अलावा गुजरात के लोकल बॉडी इलेक्शन में भी आप ने कांग्रेस को खूब नुकसान पहुंचाया। ऐसे में संभव है कि जिन राज्यों में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है, मसलन एमपी, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, गुजरात इत्यादि वहां बीजेपी विरोधी वोटों की एक और सशक्त दावेदार के रूप में आप का उभार भगवा दल के लिए काफी फायदेमंद हो सकता है। आप का उभार अभी के लिए बीजेपी (BJP) से ज्यादा परेशानी का सबब कांग्रेस के लिए है। इन राज्यों में आप जितनी अधिक मजबूत होगी, कांग्रेस के लिए उतनी अधिक चुनौतियां खड़ी होंगी और इसका फायदा अंततः बीजेपी को होगा। क्योंकि आप को इन राज्यों में बीजेपी जैसी ताकतवर संगठन वाली पार्टी का सामना करने के लिए लंबा फासला तय करना होगा।

इसलिए कुछ राजनीति जानकार ऐसा भी मानते हैं कि मनीष सिसोदिया के ऊपर कार्रवाई कर बीजेपी जानबूझकर आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) को सेंटर स्टेज पर ला रही है। ताकि उसके विरोधी वोटरों में भ्रम की स्थिति बने। कांग्रेस को एकमुश्त फायदा न मिले। क्योंकि बीजेपी को अब भी पता है कि अगर इस देश में एकमात्र कोई राजनीतिक दल है जो उसे सत्ता से बाहर कर सकती है तो वो है कांग्रेस, जिसके पास बुरे से बुरे समय में भी 20 प्रतिशत वोट साथ रहा है। इसलिए पीएम मोदी और अमित शाह कांग्रेस पर वार करने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। ऐसे में अगर उन्हें आप का मजबूत होना सूट करता है तो वो इसे होने देंगे।

Shashi kant gautam

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