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आखिर क्यों मंजू ने पोस्टमार्टम हाउस को बनाया अपनी रोजीरोटी का जरिया
पोस्टमार्टम हाउस में आमतौर पर पुरुष कर्मचारी ही काम करते हैं। मगर पिछले 14 सालों से बिहार के समस्तीपुर जिले में मंजू देवी बतौर सहायिका शव विच्छेदन का काम कर रही हैं।
समस्तीपुर: पोस्टमार्टम हाउस में आमतौर पर पुरुष कर्मचारी ही काम करते हैं। मगर पिछले 14 सालों से बिहार के समस्तीपुर जिले में मंजू देवी बतौर सहायिका शव विच्छेदन का काम कर रही हैं। यहां आलम ये हैं कि अगर वह वहां नहीं हैं तो उनकी अनुपस्थिति में पोस्टमार्टम का काम रुक जाता है। इससे ये साफ़ पता चलता है कि वह अपने काम में कितनी निपुड हैं।
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बता दें, मंजू देवी को अपने काम के रोजाना 108 रुपये मिलते हैं। ऐसे में जिस दिन शव नहीं आते उस दिन उन्हें दिहाड़ी नहीं मिलती। वैसे उन्हें अपना भुगतान समय पर भी नहीं मिलता। साथ ही, उनकी नौकरी भी अभी तक पक्की नहीं हुई है जबकि वह कई बार इसके लिए बात कर चुकी हैं। मगर बात नहीं बन रही है।
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मंजू अब तक 13 हजार पोस्टमार्टम में सहयोग कर चुकी हैं। वैसे आपको ये बात जानकर हैरानी होगी कि उनके ससुर रामजी मल्लिक बतौर चतुर्थवर्गीय कर्मचारी पोस्टमार्टम हाउस में चीरफाड़ का काम करते थे लेकिन उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी को नौकरी पर रखा गया।
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इसके बाद साल 2001 में मंजू के पति के भी मृत्यु हो गई। ऐसे में वह भी अपनी सास के साथ पोस्टमार्टम हाउस जाने लगीं। इसके बाद साल 2004 में उनकी सास की भी मृत्यु हो गई, जिसके बाद पोस्टमार्टम का काम उन्हें सौंपा गया।