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Manmohan Singh: एक बार मिली हार तो मनमोहन सिंह फिर कभी नहीं लड़े चुनाव, जानिए क्यों?

Manmohan Singh: मनमोहन सिंह केवल एक बार 1999 में दक्षिणी दिल्ली लोकसभा सीट से चुनाव लडे़ थे, लेकिन उन्हें भाजपा के वीके मल्होत्रा से 30 हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा था। उसके बाद फिर वे कभी चुनाव नहीं लड़े।

Ashish Kumar Pandey
Published on: 27 Dec 2024 4:22 PM IST
Manmohan Singh ( Pic- Social- Media)
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Manmohan Singh ( Pic- Social- Media)

Manmohan Singh: वित्त मंत्री और 10 साल तक भारत के प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह का गुरुवार को दिल्ली के एम्स में निधन हो गया। उन्होंने देश में कई ऐसे आर्थिक सुधार किए जिसका भारत पर खासा असर पड़ा। मनमोहन सिंह राजनीति में लंबी पारी खेले लेकिन वे अपने पूरे पॉलिटिकल कॅरियर में केवल एक बार ही लोकसभा का चुनाव लड़े और उस चुनाव में भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा।


ये बात है 1999 के लोकसभा चुनाव की। इससे पहले मनमोहन सिंह 1991 से 1996 तक नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री रह चुके थे। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के रिश्ते सबसे अच्छे थे। उनके तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पीएम नरसिम्हा राव से भी अच्छे संबंध थे। इसी दौरान 1999 का लोकसभा चुनाव आ गया। उस समय मनमोहन सिंह को लगा कि पार्टी के बड़े नेता उनके पक्ष में हैं और उनका काम भी अच्छा रहा हैं। इसलिए उन्होंने सोचा कि यह चुनावी राजनीति में उतरने का सही समय है। फिर क्या था डॉ. मनमोहन सिंह ने लोकसभा चुनाव लड़ने का मन मना लिया। लेकिन यह चुनाव उनको राजनीतिक अनुभव तो दे गया लेकिन उन्हें चुनाव में सफलता नहीं मिली।

पहला और आखिरी चुनाव रहा

डॉक्टर मनमोहन सिंह ने 1999 में कांग्रेस के टिकट पर दक्षिणी दिल्ली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा। उनके सामने बीजेपी के सीनियर लीडर वीके मल्होत्रा मैदान में थे। चुनाव में मनमोहन सिंह को वीके मल्होत्रा से हार का सामना करना पड़ा। मनमोहन सिंह 30 हजार वोटों से यह चुनाव हार गए। वीके मल्होत्रा को 2,61,230 और मनमोहन को 2,31,231 वोट मिले। चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस पार्टी ने मनमोहन सिंह को 20 लाख रुपये दिये थे। चुनाव खत्म होने के बाद मनमोहन सिंह ने फंड से बचे 7 लाख रुपये पार्टी को वापस लौटा दिए थे।



ये सोच कर कांग्रेस ने लड़ाया था चुनाव

कांग्रेस ने डॉ. मनमोहन सिंह को काफी सोच समझ कर दक्षिणी दिल्ली की लोकसभा सीट से मैदान में उतारा था। यहां का चुनावी समीकरण भी कांग्रेस के पक्ष में था। यहां पर मुस्लिम और सिखों की आबादी 50 प्रतिशत के करीब थी और शायद यही सोचकर कांग्रेस ने यहां से मनमोहन सिंह को चुनाव लड़ाने का फैसला किया कि वे चुनाव जीत जाएंगे। वहीं बीजेपी ने मनमोहन सिंह के खिलाफ पार्टी के सीनियर लीडर वीके मल्होत्रा को मैदान में उतारा। वीके मल्होत्रा की मनमोहन सिंह की तरह राष्ट्रव्यापी पहचान भी नहीं थी, लेकिन फिर भी जनसंघ से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाले मल्होत्रा ने मनमोहन सिंह को इस चुनाव में करीब 30 हजार वोटों से हरा दिया था।


और फिर कभी नहीं लड़े चुनाव...

मनमोहन सिंह ने इस चुनाव में हार के बाद फिर कभी लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा। हार से मनमोहन सिंह को काफी धक्का लगा, उन्हें लगा कि अब उनका चुनावी करियर शुरू होने के साथ ही खत्म हो गया। लेकिन ऐसा हुआ नहीं और मनमोहन सिंह अपनी राज्यसभा सीट पर बरकरार रहे। इसके बाद वह अपने पूरे राजनीतिक करियर में राज्यसभा के ही सदस्य के तौर पर संसद पहुंचते रहे।


और लौटा दिए पार्टी को 7 लाख रुपये

कांग्रेस पार्टी ने चुनाव लड़ने के लिए मनमोहन सिंह को 20 लाख रुपये दिये थे। कई लोगों ने मनमोहन सिंह को इन पैसों को चुनाव में खर्च करने की पेशकश की, लेकिन वे किसी की न सुने। मनमोहन सिंह को लगा कि पैसे की क्या जरूरत है, पार्टी के कार्यकर्ता आराम से चुनाव जीतवा ही देंगे। मनमोहन सिंह चंदा लेने को अपने उसूलों के खिलाफ मानते थे। तभी उनके एक करीबी नेता ने उनसे कहा कि आप चुनाव हार रहे हैं। कार्यकर्ता साथ नहीं हैं, वे पैसे मांग रहे हैं। हमें चुनावी कार्यालय खोलना है, लोगों के खाने-पीने की व्यवस्था करनी है। लेकिन यह सब बिना पैसे के नहीं हो सकता। लेकिन मनमोहन सिंह ने थोड़ा गौर करने के बाद सालों से चली आ रही व्यवस्था को अपना लिया। उन्होंने चुनाव के लिए चंदा एकत्र किया। फाइनेंसरों से भी मिले। तब कहीं जाकर उनका यह चुनाव उठा। हालांकि, चुनाव खत्म होने के बाद मनमोहन सिंह ने पार्टी फंड से बचे 7 लाख रुपये वापस लौटा दिए थे।



Shalini Rai

Shalini Rai

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