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Indo-China Dispute: क्या था माओ का 'Five Finger' प्लान? तवांग पर हमला उसी की है एक कड़ी
Indo-China Border Dispute: चीन में चारों तरफ अपना वर्चस्व कायम करने के बाद माओ की नजर अब आस-पड़ोस के मुल्कों की जमीन पर थी। यहां तक की शक्तिशाली सोवियत संघ के साथ भी उसका सीमा विवाद था।
Indo-China Border Dispute: साल 1949 में चीन से राष्ट्रवादियों को खदेड़ने के बाद कम्युनिष्ट नेता माओत्से तुंग ने साम्यवादी चीन की नींव रखी। चीन में चारों तरफ अपना वर्चस्व कायम करने के बाद माओ की नजर अब आस-पड़ोस के मुल्कों की जमीन पर थी। यहां तक की शक्तिशाली सोवियत संघ के साथ भी उसका सीमा विवाद था। जबकि माओ ने वामपंथी शासन व्यवस्था की प्रेरणा इसी मुल्क से थी। ये बताता है कि चीन शुरूआती दिनों से ही जमीन के टुकड़ों का कितना भूखा रहा है।
माओ का 'Five Finger' प्लान
1949 में माओ ने कम्युनिष्ट पार्टी ऑफ चाइन यानी सीपीसी के नेताओं के सामने अपने विस्तारवादी एजेंडे को रखते हुए कहा था कि हथेली और जो पांच अंगुलियां हैं, उन्हें वापस लेना चाहिए। यहां हथेली का मतलब तिब्बत है, जबकि पांच अंगुलियां हैं – लद्दाख, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, भूटान और नेपाल। माओ ने अगले साल ही तिब्बत पर हमला कर अपनी योजना की तरफ पहला कदम बढ़ा दिया।
तिब्बत जो कि भारत और चीन के बीच एक बफर स्टेट के रूप में काम करता था, उस पर ड्रैगन की लंबे समय से नजर थी। साल 1950 में माओ ने हजारों सैनिक तिब्बज में भेज दिए और 1951 में इसे चीन में मिला लिया।
साल 1959 में तिब्बत के बौद्धों ने कम्युनिष्टों के विरूद्ध नाकाम विरोध किया, जिसे चीन ने सख्ती से दबा दिया। तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा को भागकर भारत में शरण लेनी पड़ी।
तभी से चीन दलाई लामा को एक अलगाववादी नेता के रूप में देखता है। बाद में दलाई लामा ने भारत में तिब्बत की निर्वासित सरकार का गठन किया, जो आज भी चल रही है।
चीन के कथित पांच फिंगर की क्या है स्थिति
चीन जिस कथित पांच फिंगर पर अपनी नजरें गड़ाए बैठा है, उनमें तीन भारत के अभिन्न अंग हैं। वहीं, नेपाल और भूटान दो ऐसे पड़ोसी हैं, जिनकी निर्भरता भारत पर सबसे अधिक है। हर मायनों में वे चीन के मुकाबले भारत के ज्यादा करीब हैं। इसलिए एक तरह से ड्रैगन सीधे तौर पर भारत की संप्रभुता को चुनौती दे रहा है।
भारत ने सिक्किम को 1975 में और अरूणाचल प्रदेश को 1987 के विवाद के बाद पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया था। जबकि लद्दाख को 2019 में केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा देकर सीधे दिल्ली के कंट्रोल में ला दिया गया है। चीन ने भारत की ओर से उठाए गए इन कदमों का पुरजोर विरोध किया था। लेकिन भारत ने चीनी विरोध को ये कहते हुए खारिज किया कि ये हमारा आंतरिक मसला है।
नेपाल भारत और चीन के बीच एक बफर स्टेट के रूप में काम करता है। भारत और नेपाल के बीच बेटी- रोटी का संबंध है। दोनों देशों की सीमा एक दूसरे के नागरिकों के लिए खुली है। लेकिन हाल-फिलहाल नेपाल में चीन का प्रभाव काफी बढ़ा है।
वहीं की कम्युनिष्ट पार्टियों का भारत विरोधी रूप साफ तौर पर इसकी ओर इशारा करता है। हालांकि, दोस्ती का दावा करने के बावजूद चीन नेपाली जमीन का अतिक्रमण करने से बाज नहीं आता है। कई मीडिया रिपोर्ट्स में चीन द्वारा नेपाली सीमा में घुसपैठ की खबरें आ चुकी हैं, लेकिन चीन के दबाव के कारण नेपाली राजनेता और नौकरशाह इसे दबा देते हैं।
वहीं, बात करें भूटान की तो यह भी भारत और चीन के साथ सीमा साझा करने वाला एक छोटा सा मुल्क है। चीन का इस छोटे से देश के साथ भी बहुत पुराना सीमा विवाद है। ड्रैगन इस बात से भी चिढ़ा रहता है कि भूटान की विदेश नीति पूरी तरह से भारत के प्रभाव में है।
करीब 300 मील क्षेत्र भूटान की चीन दबा कर बैठा है। एक समय चीन और भूटान के रिश्ते काफी अच्छे हुआ करते थे लेकिन माओ की आक्रमक विस्तारवादा नीति ने दोनों देशों के संबंध तल्ख बना दिए।
शी भी चल रहे माओ के नक्शेकदम
चीन के मौजूद राष्ट्रपति शी जिनपिंग को कम्युनिष्ट चीन के संस्थापक माओत्से तुंग के बाद सबसे शक्तिशाली नेता माना जाता है। शी माओ की तरह ही अपने पड़ोसियों और दुश्मनों के विरूद्ध आक्रमक नीति अपनाने में विश्वास रखते हैं।
उनके सत्ता में आने के बाद से भारत के अलावा अन्य पड़ोसी मुल्कों के साथ चीन के संबंध बिगड़े हैं। अमेरिका के साथ भी रिश्तों में खटास बढ़ी है। चीनी राष्ट्रपति ने जिस तरह पांच सालों के अंदर डोकलाम, गलवान के बाद अरूणाचल में विवाद पैदा किया है, उससे स्पष्ट है कि वह अपने नेता माओ के फाइव फिंगर प्लान के प्रति कितने कटिबद्ध हैं।