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527 से अधिक वीरों की शहादत ने लिखी कारगिल विजय की इबारत...
20 साल पहले 26 जुलाई 1999 को भारत ने कारगिल युद्ध में विजय हासिल की थी। इस दिन को हर वर्ष विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। करीब दो महीने तक चला कारगिल युद्ध भारतीय सेना के साहस और जांबाजी का ऐसा उदाहरण है जिस पर हर देशवासी को गर्व है।
लखनऊ: 20 साल पहले 26 जुलाई 1999 को भारत ने कारगिल युद्ध में विजय हासिल की थी। इस दिन को हर वर्ष विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। करीब दो महीने तक चला कारगिल युद्ध भारतीय सेना के साहस और जांबाजी का ऐसा उदाहरण है जिस पर हर देशवासी को गर्व है।
बता दे कि आजादी मिलने के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच तीन युद्ध हुए। सन 1965, 1971 और 1999 में दोनों देशों के बीच लड़ाई हुई। इन तीनों में ही पड़ोसी देश को मुंह की खानी पड़ी। सबसे आखिर यानी 1999 में कारगिल युद्ध हुआ था।
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इसलिए मनाया जाता है कारगिल विजय दिवस
इस युद्ध में भारत ने 527 जवानों की शहादत देकर विजय प्राप्त की थी। 26 जुलाई 1999 को ही हमारी जीत पर मुहर लगी थी। इसीलिए इस दिन यानी 26 जुलाई को पूरे भारत में विजय दिवस मनाया जाता है।
पाकिस्तान ने इस युद्ध को ऑपरेशन कोह-ए-पैमा का नाम दिया था। जबकि भारत ने कारगिल युद्ध को ऑपरेशन विजय नाम दिया था। कारगिल सेक्टर को आजाद कराने के लिए यह नाम दिया गया था।
कारगिल में भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ी गई यह लड़ाई 3 मई से 26 जुलाई 1999 तक चली थी। दोनों देशों के सैकड़ों सैनिक इस लड़ाई में मारे गए थे।
भारत में जब-जब भी कारगिल का जिक्र होता है तब-तब शौर्य गाथाएं सामने आती हैं, जबकि पाकिस्तान में कारगिल गैंग ऑफ फोर की भयानक गलतियों के रूप में याद किया जाता है।
शायद यही कारण है कि कारगिल की प्लानिंग करने वाले चोटी के चार अधिकारियों को वहां पर गैंग ऑफ फोर या डर्टी फोर भी कहा जाता है।
भारतीय सेनाओं ने जब घुसपैठियों को मार भगाया
कारगिल जम्मू-कश्मीर का हिस्सा है। यह गुलाम कश्मीर (पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर) से एलओसी के करीब 10 किलोमीटर अंदर भारतीय सीमा में स्थित है।
साल 1999 में पाकिस्तानी घुसपैठियों ने धोखे से कारगिल की चोटियों पर कब्जा कर लिया था। मई से जुलाई 1999 तक भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय चलाकर न सिर्फ घुसपैठियों को यहां से भागने पर मजबूर कर दिया, बल्कि पूरी दुनिया में पाकिस्तान को बेनकाब भी कर दिया।
भारतीय सेना ने पाकिस्तान के 700-1200 सैनिकों को मार गिराया। चूंकि, पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कारगिल की चोटियों पर कब्जा किया हुआ था, इस वजह से भारत की तरफ से भी 527 सैनिक शहीद हुए।
भारत ने न सिर्फ एलओसी पर पाकिस्तान को धूल चटाई, बल्कि समुद्र में भी पाकिस्तान की नाकेबंदी कर दी। इससे उसका समुद्री व्यापार प्रभावित हुआ और बाद में तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने माना कि अगर भारत के साथ युद्ध और आगे चलता तो उनके पास सिर्फ छह दिन का तेल बचा हुआ था।
यानि पाकिस्तान के लड़ाकू विमान ईंधन के आभाव में खड़े रह जाते, सेनाएं एक जगह से दूसरी जगह मूव नहीं हो पाती और देश की अर्थव्यवस्था चरमरा जाती। यह सब होता गैंग ऑफ फोर के डर्टी गेम की वजह से।
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पाकिस्तान की साजिश के पीछे ये चार चेहरे थे
जनरल परवेज मुशर्रफ, जनरल अजीज, जनरल महमूद और ब्रिगेडियर जावेद हसन यही वो चार शख्स थे जिन्होंने कारगिल का पूरा प्लान बनाया था। जनरल परवेज मुशर्रफ उस वक्त पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष थे, जो पूर्व में कमांडो रह चुके थे। जनरल अजीज चीफ ऑफ जनरल स्टाफ थे।
वे आईएसआई में भी रह चुके थे और उस दौरान उनकी जिम्मेदारी कश्मीर की थी, यहां जेहाद के नाम पर आतंकवादियों को भारतीय सीमा में भेजकर कश्मीर में अशांति फैलाना उनका काम था।
जनरल महमूद 10th कोर के कोर कमांडर थे और ब्रिगेडियर जावेद हसन फोर्स कमांडर नॉर्दर्न इंफ्रेंट्री के इंचार्ज थे। इससे पहले वह अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत भी रह चुके थे।
इन चारों ने कारगिल का प्लान बनाया और सोचा कि अगर भारत हमें कारगिल से हटाने की कोशिश करेगा तो उसे कश्मीर से अपनी सेना को मूव कराना पड़ेगा।
डर्टी फोर की प्लानिंग थी कि अगर भारत ने ऐसा किया तो कश्मीर में उसकी स्थिति खराब हो जाएगी। ऐसे में वे और ज्यादा मुजाहिदीन (आतंकवादी) कश्मीर में भेजते।
जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ करने के बाद घुसपैठिए वहां मारकाट मचाएंगे, इस तरह भारत को दो मोर्चों पर लड़ाई लड़नी पड़ेगी, गुरिल्ला वॉर में भारत को फंसाने की पूरी साजिश इन चारों के दिमाग की उपज थी।
वाजपेयी की बस डिप्लोमेसी को फेल करना था मकसद
तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और भारतीय पीएम अटल बिहारी वाजपेयी फरवरी 1999 में मिलने वाले थे। दोनों देशों के बीच बस डिप्लोमेसी शुरू होने वाली थी।
डर्टी फोर को नवाज शरीफ के प्लान के बारे में पता चल गया था, उन्हें यह भी पता था कि नवाज शरीफ भारत की तरफ सॉफ्ट हैं। मुशर्रफ के सेनाध्यक्ष बनने के तुरंत बाद कारगिल का पूरा प्लान इन डर्टी फोर ने बनाया।
बस डिप्लोमेसी शुरू होने से पहले ही अक्टूबर-नवंबर 1998 में इन चारों ने अपने प्लान पर काम करना शुरू कर दिया। कहा जाता है कि पाकिस्तान को पता चला कि भारत उस वक्त एलओसी के पास हलचल बढ़ा रहा है।
वहां माना जा रहा था कि हो सकता है सियाचीन की तरह ही भारत एलओसी पर कोई कार्रवाई कर सकता है। ऐसे में ब्रिगेडियर जावेद हसन को रेकी करने के लिए भेजा गया।
जब वे रेकी करने पहुंचे तो वहां उन्हें कोई हलचल नहीं मिली। वे आगे बढ़ते गए और वहां सर्द मौसम के चलते भारतीय सेना का कोई नामोनिशान नहीं था। तब ब्रिगेडियर को लगा कि अरे वाह! यह तो अच्छा मौका है। खुला ऑफर है।
हम अंदर घुस जाएंगे और किसी को पता भी नहीं चलेगा। बस यही वो मौका था जहां से पाकिस्तान का ऑपरेशन कारगिल शुरू हुआ। कहा जाता है कि ब्रिगेडियर ने वापस जाकर कहा कि चलिए, रास्ता खाली है।
जनवरी 1999 तक प्लान आगे बढ़ने लगा। पाकिस्तानी सेना के ही 200 लोगों को बैक-पैक देकर कारगिल की तरफ भेजा गया। यह ऑपरेशन बहुत ही सीक्रेट रखा गया। डर्टी फोर को ही इस प्लान के बारे में जानकारी थी। बाद में दो अन्य लोगों को भी इस प्लान के बारे में ब्रीफिंग दी गई।
भारत को नहीं था पाक की साजिश का अंदेशा
इन 200 लोगों को कारगिल भेजने का मकसद था कि वे वहां पहुंचकर भारत के 10-12 पोस्ट पर कब्जा कर लेंगे। मुजाहिदीन या आतंकियों की ट्रेनिंग उस स्तर की नहीं होती, इसलिए डर्टी फोर ने अपनी सेना के ही 200 जवानों को मुजाहिदीनों की शक्ल में कारगिल की तरफ रवाना कर दिया।
मुजाहिदीनोंकी शक्ल में पाकिस्तानी सेना के 200 जवान मार्च तक कारगिल पहुंच गए। प्लान 10-12 पोस्ट पर कब्जा करने का था, लेकिन वहां तो सभी पोस्ट खाली पड़ी थीं। कारगिल पहुंचकर इन घुसपैठियों ने अपने आकाओं से मदद मांगनी शुरू की और वहां से मदद भी आने लगी।
इस तरह से घुसपैठियों ने कारगिल और द्रास सेक्टर में भारत की 140 से ज्यादा पोस्ट पर कब्जा कर लिया। शुरुआती इरादा 10 किमी अंदर आने का इरादा था, लेकिन अंत में यह करीब 300 स्क्वायर किमी तक भारतीय सीमा के अंदर घुस आए। अभी तक भारत को पाकिस्तान के इस खतरनाक प्लान के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।
कुछ गडरियों की मुखबिरी पर भारत को पहली बार मई में घुसपैठियों के बारे में जानकारी मिली। तब भी भारत नहीं जानता था कि यह आतंकवादी हैं या पाकिस्तानी सेना के जवान। चूंकि, वे चोटियों पर बने पोस्ट में बैठे थे तो उन्होंने गोलाबारी भी शुरू कर दी।
घुसपैठिए के भेष में भारत में दाखिल हुई थी पाक सेना
डर्टी फोर ने जितना प्लान बनाया था अब यह उससे कहीं ज्यादा बड़ा हो चुका था। जैसे-जैसे घुसपैठिए आगे बढ़ते जा रहे थे, प्लान और भी बड़ा होता जा रहा था। कुछ रेडियो कम्युनिकेशन के जरिए आखिर भारत को पता चल गया कि ये घुसपैठिए आतंकवादी नहीं, बल्कि पाकिस्तानी सेना के जवान हैं।
आखिरकार 29 मई 1999 को पहली बार भारतीय मीडिया में यह खबर आयी कि कारगिल की चोटियों पर आतंकवादी नहीं, बल्कि पाकिस्तानी सेना के जवान हैं और अब भारतीय सेना ने भी मान लिया कि पाकिस्तानी सेना के जवान हैं। इससे पहले ही भारतीय सेना ने घुसपैठियों से अपनी जमीन खाली कराने का अभियान शुरू कर दिया था।
कारगिल में भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ी गई यह लड़ाई 3 मई से 26 जुलाई 1999 तक चली थी। दोनों देशों के सैकड़ों सैनिक इस लड़ाई में मारे गए थे।
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