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इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग बनाम पेपर वोटिंग, मसला कायम है
Electronic Voting Vs Paper Voting: ईवीएम बनाम पेपर वोटिंग का मसला तबसे कायम है जबसे ईवीएम आई है। मशीनी वोटिंग पर ढेरों सवालात उठते रहे हैं, खासकर हारने वाले दलों और उनके समर्थकों की ओर से। दुनिया में भी ईवीएम को लेकर एकमतता नहीं है। एडवांस से एडवांस देशों में भी ईवीएम नहीं है जबकि कई देश प्रयोग कर के वापस पेपर वोटिंग पर जा चुके हैं।
Electronic Voting Vs Paper Voting: बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने डिमांड की है कि नगर निगमों और महापौर चुनावों के लिए ईवीएम की बजाए बैलट पेपर का उपयोग किया जाना चाहिए। उनका कहना है कि चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष होना चाहिए।
वैसे मायावती की मांग थोड़ी अटपटी है क्योंकि उन्होंने विधानसभा और लोकसभा चुनाव के बारे में ऐसी मांग नहीं की है। सो अगर उनको ईवीएम पर भरोसा नहीं है तो किसी चुनाव में नहीं होना चाहिए।
बहरहाल, ईवीएम बनाम पेपर वोटिंग का मसला तबसे कायम है जबसे ईवीएम आई है। मशीनी वोटिंग पर ढेरों सवालात उठते रहे हैं, खासकर हारने वाले दलों और उनके समर्थकों की ओर से। दुनिया में भी ईवीएम को लेकर एकमतता नहीं है। एडवांस से एडवांस देशों में भी ईवीएम नहीं है जबकि कई देश प्रयोग कर के वापस पेपर वोटिंग पर जा चुके हैं।
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34 देशों में ईवीएम
वर्तमान में कुल 34 देश राष्ट्रीय या अन्य स्तरों पर ई-वोटिंग का उपयोग करते हैं। लेकिन इसके पहले 11 देशों में ई-वोटिंग को इस्तेमाल करके छोड़ भी दिया है और इसका एक मुख्य कारण वोट पर विश्वास और सुरक्षा के बारे में चिंता है।
जो 34 देश ई वोटिंग का इस्तेमाल कर रहे हैं उनमें से आधे यानी 17 देश मतदाता सत्यापित पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवी पैट) के साथ या उसके बिना डायरेक्ट रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रॉनिक मशीन (डीआरई) का उपयोग करते हैं। एकमात्र अपवाद अमेरिका है जहां कुछ राज्यों ने वीवीपैट के साथ डीआरई को अपनाया और कुछ ने इसके बिना। डीआरई का उपयोग करने वाले देश इस प्रकार हैं :
वीवीपीएटी के साथ डीआरई: भारत,अल्बानिया, बुल्गारिया, फिजी, ईरान, मैक्सिको, ओमान, पनामा, पेरू, रूसी संघ, वेनेजुएला और अमेरिका के कुछ राज्य।
वीवीपीएटी के बिना डीआरई: बांग्लादेश, भूटान, ब्राजील, फ्रांस, नामीबिया और अमेरिका के कुछ राज्य।
बता दें कि भारत में डीआरई को ही ईवीएम कहा जाता है।
इलेक्ट्रॉनिक मशीन पर चिंताएं
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के इस्तेमाल को लेकर बहुत चिंताएं भी प्रकट की जा चुकी हैं। चिंता ये है कि जैसे-जैसे मतदान प्रणाली अधिक जटिल होती जाती है और इसमें सॉफ्टवेयर शामिल होता है, चुनाव धोखाधड़ी के विभिन्न तरीके संभव हो जाते हैं। कई लोग सैद्धांतिक दृष्टिकोण से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के उपयोग को चुनौती देते हैं, यह तर्क देते हुए कि इंसान इलेक्ट्रॉनिक मशीन के भीतर होने वाले संचालन को सत्यापित करने के लिए काबिल नहीं हैं और इसलिए मशीन संचालन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा, कुछ कंप्यूटिंग विशेषज्ञों ने तर्क दिया है कि लोग ऐसी किसी भी प्रोग्रामिंग पर भरोसा नहीं कर सकते हैं जिसे उन्होंने नहीं बनाया है।
विवादित मुद्दा
चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग का उपयोग एक विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है। कई देशों ने ईवीएम की विश्वसनीयता में मुद्दों के कारण ई-वोटिंग सिस्टम को रद्द कर दिया है या बड़े पैमाने पर रोलआउट के खिलाफ फैसला किया है, विशेष रूप से नीदरलैंड, आयरलैंड, जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम ने। अमेरिका में इलेक्ट्रॉनिक मतदान, विशेष रूप से डीआरई मतदान बहुत विवादित रहा है। पिछला पूरा राष्ट्रपति चुनाव संदेह के घेरे में है।
इन मशीनों का निर्माण करने वाली कंपनियों के साथ साथ धांधली से लाभ उठाने वाले राजनीतिक दलों सहित कई हितधारकों की भागीदारी इसे और जटिल बनाती है। कई एक्सपर्ट्स कहते हैं कि ईवीएम में मतदाता-सत्यापन योग्य पेपर ऑडिट ट्रेल्स होना चाहिए तथा इन मशीनों पर उपयोग किए जाने वाले सॉफ़्टवेयर को सार्वजनिक जांच के लिए खुला होना चाहिए। यह जरूरी इसलिए है क्योंकि कंप्यूटर खराब हो सकते हैं और खराब किये जा सकते हैं।
नीदरलैंड: 2006 में "वी डोन्ट ट्रस्ट वोटिंग कंप्यूटर्स" नामक एक दबाव समूह ने वोटिंग मशीनों में सुरक्षा खामियों का प्रदर्शन किया। एक जांच समिति की रिपोर्ट संसद में पेश करने के बाद, 2007 में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के लिए नियम वापस ले लिया गया था।
जर्मनी: 2009 में एक जर्मन अदालत ने ईवीएम पर प्रतिबंध लगा दिया। फैसले की व्याख्या इस अर्थ में की गई कि अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि वोटिंग की एक कंप्यूटर-आधारित प्रणाली को प्रोग्रामिंग का ज्ञान आवश्यक है जो नागरिकों के पास नहीं था और इसलिए, प्रणाली 'अपारदर्शी' थी। इसने चुनाव में सभी आवश्यक कदमों की सार्वजनिक परीक्षा की संवैधानिक आवश्यकता को खत्म कर दिया।
आयरलैंड: 2006 में देश ने सुरक्षा चिंताओं के कारण मशीनों का उपयोग करने की योजना छोड़ दी।
पैराग्वे: 2000 के दशक की शुरुआत में, देश ने मतदान मशीनों के साथ प्रयोग किया था, जिसे उसने ब्राजील से उधार लिया था। 2008 में यह कागजी मतपत्रों में लौट आया।
बहरहाल, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर सहमति नहीं है लेकिन सख्त विरोध भी नज़र नहीं आता। ये तो तय है कि कम से कम भारत में अब बैलट पेपर पर वापस जाना मुश्किल ही लगता है।