TRENDING TAGS :
हरियाणा के चुनाव में क्या गुल खिलाएंगी मायावती, इनेलो के साथ मिलकर बढ़ा रखी है कांग्रेस और भाजपा की टेंशन
Haryana Assembly Election 2024: हरियाणा में दलित वोटों को हासिल करने के लिए सभी दलों ने पूरी ताकत लगा रखी है मगर दलित मतदाताओं के एक बड़े वर्ग का झुकाव बसपा की ओर माना जाता रहा है।
Haryana Assembly Elections 2024: हरियाणा के विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस में कांटे के मुकाबले के बीच सबकी निगाहें मायावती की सियासत पर भी लगी हुई हैं। मायावती की पार्टी बसपा इस बार इंडियन नेशनल लोकदल के साथ गठबंधन करके चुनाव मैदान में उतरी है।
बसपा ने 37 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं जबकि 53 सीटों पर इनेलो के प्रत्याशी भाजपा और कांग्रेस को मजबूत चुनौती दे रहे हैं। दलित वोटों को साधने के लिए ही इनेलो ने बसपा से गठबंधन किया है और यह गठबंधन कांग्रेस और भाजपा दोनों की टेंशन बढ़ने वाला साबित हो रहा है।
दलित मतदाताओं की भूमिका क्यों है अहम
हरियाणा के विधानसभा चुनाव में दलित मतदाताओं की भूमिका काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। 21 फ़ीसदी दलित मतदाता राज्य में किसी भी पार्टी की जीत-हार में अहम भूमिका निभाएंगे। राज्य में विधानसभा की 17 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। ऐसे में हरियाणा चुनाव में मायावती की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो गई है।
हरियाणा में दलित वोटों को हासिल करने के लिए सभी दलों ने पूरी ताकत लगा रखी है मगर दलित मतदाताओं के एक बड़े वर्ग का झुकाव बसपा की ओर माना जाता रहा है। इसी कारण विभिन्न राजनीतिक दलों की ओर से मायावती से गठबंधन की कोशिश की जाती है। इंडियन नेशनल लोकदल ने भी इसी कारण मायावती के साथ गठबंधन किया है और बसपा को 37 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका दिया है।
बसपा का तीसरी बार इनेलो के साथ गठबंधन
ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी इनेलो ने हरियाणा में तीसरी बार बसपा के साथ गठबंधन किया है। 1996 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने पहली बार बसपा से हाथ मिलाया था और चुनाव में बसपा ने एक और इनेलो ने चार लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करके अपनी ताकत दिखाई थी।
इसके बाद साल 2018 में बसपा और इनेलो के बीच राजनीतिक गठजोड़ हुआ, लेकिन यह गठबंधन विधानसभा चुनाव तक लोगों के बीच नहीं पहुंच पाया। अब 2024 में भी एक बार फिर दोनों दलों ने हाथ मिलाकर भाजपा और कांग्रेस की टेंशन बढ़ा रखी है।
हरियाणा के चुनावों में बसपा का प्रदर्शन
बसपा ने 2019 का विधानसभा चुनाव अपने दम पर लड़ा था मगर पार्टी अपनी ताकत दिखाने में कामयाब नहीं हो सकी थी। बसपा ने 90 में से 87 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इनमें से 82 सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई थी। उसे 4.14 फीसदी वोट मिले थे। बसपा ने हरियाणा में सबसे अच्छा प्रदर्शन 2009 के लोकसभा चुनाव में किया था। यह चुनाव बसपा ने बिना किसी गठबंधन के लड़ा था।
बसपा ने राज्य की सभी 10 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए 15.75 फ़ीसदी वोट हासिल किए थे। हालांकि पार्टी एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हो पाई थी। इस बार पार्टी ने इनेलो के साथ गठबंधन करके दलित वोटो की जंग तीखी कर दी है। इनेलो के नेता अभय चौटाला को उम्मीद है कि बसपा के साथ गठबंधन करके उन्हें दलित वोट बैंक का काफी फायदा हो सकता है।
कितनी सीटों पर दिख सकता है असर
मायावती ने हरियाणा के विधानसभा चुनाव में आकाश आनंद को पहले ही सक्रिय कर दिया है और बुधवार को वे खुद हरियाणा में रैली करने के लिए पहुंची थीं। इस दौरान उन्होंने भाजपा और कांग्रेस दोनों पर तीखा हमला बोला। कांग्रेस में दलित नेता शैलजा की नाराजगी के बीच दलित मतदाताओं के रुख पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं। दलित मतदाताओं को साधने के लिए कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने भी काफी मशक्कत के बाद शैलजा की नाराजगी दूर कर दी है।
हरियाणा में विधानसभा की 17 सीटें आरक्षित हैं जबकि 35 सीटों पर दलित मतदाताओं की भूमिका काफी अहम मानी जाती है। बसपा ने इन्हीं सीटों पर निगाहें लगा रखी हैं और इसके जरिए पार्टी हरियाणा में अपनी सियासी जमीन मजबूत बनाना चाहती है।
मायावती की काट के लिए ही दुष्यंत चौटाला की पार्टी जननायक जनता पार्टी ने नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी से हाथ मिलाया है।
मायावती का बड़ा ऐलान
हरियाणा में चुनाव प्रचार की शुरुआत के साथ ही बुधवार को बसपा मुखिया मायावती ने बड़ा ऐलान किया। उन्होंने जींद की रैली में कहा कि अगर हरियाणा में गठबंधन की सरकार बनी तो अभय सिंह चौटाला राज्य के मुख्यमंत्री होंगे। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि राज्य में दो डिप्टी सीएम होंगे और इनमें एक डिप्टी सीएम बसपा का होगा। बसपा और इनेलो की ओर से लगातार दावा किया जा रहा है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में इस गठबंधन को जीत हासिल होगी।
मायावती फैक्टर पर सबकी निगाहें
हरियाणा में इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पांच सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि कांग्रेस ने बाकी बची 5 सीटें जीतते हुए भाजपा को करारा झटका दे दिया था। विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़े मुकाबले से इनेलो और बसपा गठबंधन की भूमिका भी काफी अहम हो गई है। सियासी जानकारों का मानना है कि दलित वोट बैंक में सेंध के जरिए यह गठबंधन कांग्रेस और भाजपा दोनों को नुकसान पहुंचा सकता है। अब सबकी निगाहें इस बात पर लगी हुई है कि हरियाणा के चुनाव में मायावती का फैक्टर कितना असर दिखाता है।