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भारत का ये मिनी लंदन, कभी था यहां खिलता चमन, अब फिर से है आबाद होने की कोशिश

रांची जो झारखंड की राजधानी है यहां लगभग 65किलोमीटर दूर एक गांव है मैक्लुस्कीगंज। इसे मिनी लंदन कहते हैं।जो एंग्लो इंडियन समुदाय के लिए बसाई गई थी ये इस बस्ती दुनिया की नजर में मिनी लंदन है। साल 1933 में कोलोनाइजेशन सोसायटी ऑफ इंडिया

suman
Published on: 11 May 2023 6:58 PM GMT
भारत का ये मिनी लंदन, कभी था यहां खिलता चमन, अब फिर से है आबाद होने की कोशिश
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जयपुर:रांची जो झारखंड की राजधानी है यहां लगभग 65किलोमीटर दूर एक गांव है मैक्लुस्कीगंज। इसे मिनी लंदन कहते हैं।जो एंग्लो इंडियन समुदाय के लिए बसाई गई थी ये इस बस्ती दुनिया की नजर में मिनी लंदन है। साल 1933 में कोलोनाइजेशन सोसायटी ऑफ इंडिया ने मैकलुस्कीगंज को जंगल व आदिवासियों के बीच बसाया था। साल 1930 में रातू महाराज से ली गई लीज की 10 हजार एकड़ जमीन पर अर्नेस्ट टिमोथी मैकलुस्की नामक एक एंग्लो इंडियन व्यवसायी ने इसकी नींव रखी थी।

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चामा, रामदागादो, केदल, दुली, कोनका, मायापुर, महुलिया, हेसाल जैसे गांवों से घिरे इस इलाके में 365 बंगलें है जिसमें कभी एंग्लो-इंडियन लोग रहते थे। पश्चिमी संस्कृति की झलक में रंगे और गोरे लोगों के होने की वजह से लंदन कहा जाता है। व्यवसायी टिमोथी जब कोलकता से इस इलाके में आये तो इस जगह की प्रकृति ने उसे मोहित कर लिया। यहां के गांवों में आम, जामुन, सेमल, कदंब, महुआ, भेलवा, सखुआ और परास के मंजर, फूल या फलों से सदाबहार घिरा क्षेत्र उस वक्त एंग्लो-इंडियन परिवारों को खूब पसंद आया।

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मैकलुस्की के पिता आइरिश थे और रेलवे की नौकरी में थे। नौकरी के दौरान बनारस के एक ब्राह्मण परिवार की लड़की से उन्हें प्यार हो गया। समाज के विरोध के बावजूद दोनों ने शादी की। ऐसे में मैकलुस्की बचपन से ही एंग्लो-इंडियन समुदाय की परेशानी देखते आए थे। और इस समुदाय के लिए कुछ करने के लिए था। वे बंगाल विधान परिषद के मेंबर बने और कोलकाता में रियल स्टेट के बिजनेस में खूब नाम पैसा कमाया। 1930 में साइमन कमीशन की रिपोर्ट में एंग्लो-इंडियन समुदाय के प्रति अग्रेजों का बेरुखापन को देखते हुए मैकलुस्की ने तय किया कि वह इस समुदाय के लिए एक गांव यहां बसाएंगे। कोलकाता और अन्य दूसरे महानगरों में रहने वाले कई धनी एंग्लो-इंडियन परिवारों ने मैकलुस्कीगंज में डेरा जमाया, जमीनें खरीदीं और आकर्षक बंगले बनवाकर यहीं रहने लगे। लेकिन बाद में कुछ परिवार ही यहां बचें रहे।

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कभी खिलखिलाता सुविधा संपन्न मैकलुस्कीगंज बदहाली को झेलने के बाद अब फिर से आबाद होने में लगा है। यहां कई हाई प्रोफाइल स्कूल खुल गए हैं, जिनमें पढ़ने के लिए दूर-दूर से छात्र आते हैं। प्राकृतिक खूबसूरती के कारण पर्यटन क्षेत्र और डॉन बॉस्को जैसे स्कूल की उपस्थिति के कारण इसे शिक्षा के रूप में विकसित करने पर सरकार का ध्यान गया है। मैकलुस्कीगंज हमारे लिए अहम पर्यटन स्थलों में से है।पक्की सड़कें बनी हैं, जरूरत के सामान की कई दुकानें भी खुल गई हैं। एक के बाद कई स्कूल खुल गए हैं। साथ ही बस्ती की अधिकतर गलियों या बंगलों में छात्रावास खुल गए। अब यह मिनी लंदन शिक्षा का हब बनकर एक नए मैकलुस्कीगंज की तस्वीर को उभार रहे है।

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