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चोरी-छिपे विदेश भेजे जा रहे हिमाचल के औषधीय पौधे

seema
Published on: 6 July 2018 7:16 AM GMT
चोरी-छिपे विदेश भेजे जा रहे हिमाचल के औषधीय पौधे
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शिमला : हिमाचल की जड़ी-बूटियों व औषधीय पौधों पर पूरे विश्व की नजर टिक गई है। देश में जिन 100 औषधीय पौधों को चिन्हित किया गया है, उनमें से 24 औषधियां हिमाचल के विभिन्न क्षेत्रों में पाई जाती हैं। इसी के चलते विदेशों में चुपके से ये जड़ी-बूटियां भेजकर वहां अनुसंधान भी किया जा रहा है और इसी कारण अंधाधुंध दोहन से प्रदेश में दुर्लभ औषधीय पौधे लुप्त भी हो रहे हैं। इनमें साधारण सी दिखने वाली बनककड़ी, सदाबहार फूल, पैक्सस इत्यादि कई जड़ी-बूटियों का प्रयोग कैंसर की दवाइयां बनाने में हो रहा है।

भारत देश पारंपरिक इलाज प्रणाली के ज्ञान व विलक्षण जड़ी-बूटियों के भंडार के लिए विश्वभर में विख्यात है। हिमाचल में प्राकृतिक तौर पर ही ऐसी जड़ी-बूटियां हैं, जिनसे असाध्य रोगों को भी ठीक किया जा सकता है। प्रदेश में 3500 प्रकार के पेड़-पौधे पाए जाते हैं और इनमें से 500 पौधे औषधीय व 150 पौधे सुगंधित हैं। आंकड़ों के मुताबिक कुल प्रजातियों में से 70 प्रतिशत बूटियां, 15 प्रतिशत झाडिय़ां, 10 प्रतिशत वृक्ष व पांच प्रतिशत बेले हैं। यहां पर शिवालिक रेंज में सर्पगंधा, अश्वगंधा, ब्राह्मी व राखपुष्पी, शीतकटिबंधीय क्षेत्रों में सुगंधबाला, भूतकेसी, चोरा, बनक्शा, पाषाण भेद, सिंगली-मिंगली, वनककड़ी, चिरायता, सालम मिसरी और अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में आर्थिक व औषधीय तत्व की महत्त्व वाली जड़ी-बूटियों में चिरायता, कुटकी, सालम पंजा, धूप, पतराला, रेवंदचीनी, रतन जोत व जटामांसी, प्रमुख रूप से पाए जाते हैं।

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इन विलक्षण व चमत्कारी औषधीय महत्त्व के कारण पूरे विश्व की इस तरह पूरी नजर है। इस मांग की पूर्ति व अनुसंधान कार्यों के लिए जंगलों से इनका अवैध व अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है। इस दोहन के कारण चिरायता, बनककड़ी, जटामांसी, कुटकी, अतीस, कालिहारी औषधीय पौधे विलुप्त होने के कगार पर हैं। देश में जिन 100 औषधीय पौधों को चिन्हित किया गया है, उनमें 24 प्रजातियां अकेले हिमाचल प्रदेश में ही पाई जाती हैं। नौणी विश्वविद्यालय के वन उत्पाद विभागाध्यक्ष डा. कुलवंत राय का कहना है कि हमारी प्राकृतिक जड़ी-बूटियों का विदेशों में अनुसंधान किया जा रहा है। हिमाचल में विलक्षण औषधीय पौधों का अवैज्ञानिक दोहन हो रहा है।

कई बीमारियों के इलाज में मदद

वनककड़ी (वनस्पतिक नाम पोडोफायलम हैग्जेंड्रम) का उपयोग कैंसर निदान के लिए, वायोल पिलोसा (बनक्शा) का मुंह व गले के कैंसर व अन्य रोग, कलिहारी (ग्लोरियोसा सुपरवा) का उपयोग कोढ़, गठिया में, चिरायता (स्वर्रिया चिरायता) का उपयोग मधुमेह की बीमारी को दूर करने के लिए किया जाता है। पूरा विश्व अब भारत वर्ष की जड़ी-बूटियों पर अुनसंधान व इनका असाध्य रोगों के उपचार के लिए कर रहा है।

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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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