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यहां पर लगती है इंसानों की मंडी, उम्र के हिसाब से होता है सौदा
आदिवासियों की हालत में सुधार सिर्फ कागजी एजेंडा बन कर रह गया है। राजस्थान के आदिवासी इलाकों की आर्थिक स्थिति इतनी खराब है कि लोग अपने बच्चों को बेचने और...
लखनऊ। आदिवासियों की हालत में सुधार सिर्फ कागजी एजेंडा बन कर रह गया है। राजस्थान के आदिवासी इलाकों की आर्थिक स्थिति इतनी खराब है कि लोग अपने बच्चों को बेचने और गिरवी रखने के लिए अभिशप्त हैं। गरीबी से तंग आदिवासियों को यह इलाका गुजरात से सटा, राजस्थान के उदयपुर, डूंगरपुर, और बांसवाड़ा जिलों में आता है।
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अरावली की पहाडिय़ों से घिरे इस इलाके के आदिवासियों की तंगी देखकर किसी का भी कलेजा मुंह में आ सकता है। यहां पर हर दिन बच्चों की मंडी लगती है। उम्र के हिसाब से सौदा होता है। इस इलाके में बच्चों के खरीद-फरोख का काम करने वाले दलालों का एक लम्बा नेटवर्क पसरा हुआ है।
25 रूपये रोजाना दलाल का कमीशन होता है
यहां से बच्चों को ले जाने के लिए जैसे ही आप गांवों में प्रवेश करते हैं वैसे दलाल मोबाइल बंद करा देता है। आपके कपड़े और जैकेट की तलाशी लेता है। कहीं आपने कोई कैमरा तो नहीं लगा रखा है। 16 साल की उम्र के बच्चे 150 रूपये प्रतिदिन की दर पर गिरवी मिल जाते हैं। इसमें 25 रूपये रोजाना दलाल का कमीशन भी होता है।
दलालों को मैट कहते हैं
सबकुछ तय होने के बाद दलाल किसी निश्चित स्थान पर आने के लिए पर्ची थमा देता है, जिसमें बच्चों के नाम लिखे होते हैं, जिन्हें वह काम के लिए आपके साथ भेजता है। इस इलाके के आदिवासियों का भरण-पोषण का एक मात्र जरिया मजदूरी है। मजदूरी नहीं मिलने की स्थिति में भूखों मरने की नौबत आ जाती है।
यहां से गुजरात और महाराष्ट्र के किसान तथा गडेरिये लोगों को ले जाते हैं। दलाली का पूरा नेटवर्क पुलिस की सरपरस्ती में चलता है। जो बच्चे एक बार चले जाते हैं वह लौटते ही नहीं। सिर्फ उनके मां-बाप को पैसे आते रहते हैं। यह धनराशि हर बच्चे के एवज में 100 रूपये होती है। इन दलालों को मैट कहते हैं। इनके बिना इस आदिवासी इलाके में पत्ता तक नहीं हिलता।
किसानों के यहां दलालों के मार्फत काम करने गये थे
कोटला, फलासिया, झाडोल, गोंगुदा और आमलिया में बच्चों के बोली की मंडी सजती है। शिकायत पर पुलिस तब पहुंची है जब वहां दलाल नहीं होते। राजस्थान के डूंगरपुर जिला स्थित टेंगरवाड़ा गांव के रामजी हों, गुड्डड्ढी या चुंटईगांव के सोमा, राम्या, नर्सी या उदयपुर के उमरिया, सामोली या कूकावासा गांव के मोहना बख्शी यह सब दलाल के जरिए गुजरात की फैक्ट्री या बड़े किसानों के यहां दलालों के मार्फत काम करने गये थे। इनमें से कुछ लौटे तो अपाहिज होकर। इनके अलावा तमाम तो बच्चे ऐसे हैं जो आज भी लापता हैं।