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हो गया चमत्कार! कोरोना मरीज के पास रहकर ऐसे कर दिया उपचार

15 जून तक अगर हम नियंत्रण रख सकते हैं, तो हमें बीमारी से काफी कुछ सीख लिया होगा। हमें तब तक सावधानी बरतनी होगी और निरीक्षण करना होगा। हम रोज़ सीख रहे हैं ... और हम अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की उम्मीद करते हैं। हमारा एकमात्र अनुरोध है कि हम तक मरीज जल्द पहुंचें। ”

राम केवी
Published on: 27 April 2020 7:18 PM IST
हो गया चमत्कार! कोरोना मरीज के पास रहकर ऐसे कर दिया उपचार
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नीलमणि लाल

नीलमणि लालगोवा के लिए 23 अप्रैल, एक व्यस्त दिन था। इस दिन गोवा ने कोरोना वायरस के मरीजों की संभावित ‘दूसरी खेप’ के लिए अपनी तैयारियों को पुख्ता किया। इसी दिन गोवा के ईएसआईएस अस्पताल, में डॉक्टर एडविन गोम्स के पास एक व्यक्ति आया। ये व्यक्ति था एडगर जूलियन रेमेडियोज। वो गोवा में कोरोना पॉज़िटिव पाये गए लोगों में से एक था और डाक्टर को गले लगा कर शुक्रिया अदा करने आया था।

एडगर समेत कई कोरोना पॉज़िटिव मरीजों का इलाज डॉ गोम्स की टीम ने एकदम अलग तरीके से किया। इस तरीके में दवाओं के अलावा मरीजों के साथ निजी व्यवहार और निजी व करीबी संपर्क की सबसे बड़ी भूमिका थी। जहां कोरोना के मरीजों को एकदम अकेले रखने की बात हो वहाँ करीबी संपर्क एक अजीबोगरीब चीज है। लेकिन यही अजीबोगरीब चीज काम आ गई।

गोवा ने 22 मार्च को अपनी सीमाओं को सील कर दिया था। इस राज्य में सात पॉज़िटिव केस रिकॉर्ड किए गए और आज यहाँ कोई सक्रिय केस नहीं है। 18 मार्च से 19 अप्रैल तक गोवा के ईएसआईएस अस्पताल में पहला मरीज भर्ती होने से आखिरी मरीज को छुट्टी दिये जाने तक इलाज का अनोखा तरीका अपनाया गया।

निकटता की ताकत

दुनिया भर के वैज्ञानिकों और डाक्टरों के विपरीत इस अस्पताल के डॉ गोम्स एक अलग तरीका अपना रहे थे। ये तरीका था - "महामारी से लड़ने में मानव निकटता की शक्ति।" डॉ गोम्स गोवा मेडिकल कालेज में मेडिसिन के प्रोफेसर और हेड ऑफ डिपार्टमेन्ट हैं।

दुनिया भर में, कोरोना पॉज़िटिव रोगियों को पीपीई से लैस स्वास्थ्य कर्मचारियों द्वारा ले जाया जाता है। मरीजों को आइसोलेशन वार्डों में रखा जाता जहां न उनके परिवार वाले आ सकते हैं न कोई शुभचिंतक। पीपीई से लैस डाक्टर ही वहाँ आते-जाते हैं।

कोरोना वायरस की दहशत

डॉ गोम्स और उनकी चार रेजिडेंट डॉक्टरों की टीम (निधि प्रभु, गीताली वेलिप, मसूद मुजावर और हर्षल ममलेकर) के साथ नर्सिंग स्टाफ ने मरीजों को उनके सभी सवालों के जवाब दिये और आशंकाओं को दूर किया। मरीजों के ज्यादातर सवाल यही थे कोरोना से मौत कैसे होती है। मरीजों का हौसला बढ़ाने के लिए डाक्टर व अन्य स्टाफ लगातार यही कहता था कि आप ठीक हो जाएंगे।

गुड मार्निंग, गुड आफ्टरनून, गुड ईवनिंग

डॉ गोम्स बताते हैं - “हमने फैसला किया कि हम किसी भी मरीज को अकेला महसूस नहीं होने देंगे। हमने अपने काम बाँट लिए और प्रत्येक मरीज के पास हम दिन में तीन बार जाते थे। सुबह गुड मॉर्निंग के लिए, दोपहर में गुडआफ्टरनून और शाम को गुडईवनिंग का दौर चलता था। हम मरीजों से वो सवाल पूछते थे जो आमतौर पर वृद्ध मरीजों से पूछे जाते हैं। हम उनसे घंटों बातें करते थे, उनके घर, परिवार, आदि के बारे में। अगर उन्होने कोई सपना देखा हो तो उसके बारे में बात करते थे। उनकी नींद कैसी रही, उनकी स्मृतियों के बारे में चर्चा करते थे।

“दिन के समय के आधार पर प्रश्न बदल जाते थे। हमारे यहाँ एसी की सुविधा नहीं है सो हम मरीजों का ध्यान बंटाए रहते थे। शाम को ज्यादातर बातें होती थीं जीवन में उनकी दुविधाओं के बारे में। हमने हर एक दिन ऐसा किया, जिसके बाद सभी डॉक्टरों ने नोट्स का आदान-प्रदान किया। विश्व स्तर पर, अस्पताल टेलीमेडिसिन सेवाओं के माध्यम से ऐसा ही वार्तालाप कर रहे हैं।

इलाज के अलग तरीके पर स्टडी

गोम्स ने राज्य में एच1एन1 महामारी को संभाला है। वे ‘हर्ड इम्यूनिटी’ पर विश्वास करते हैं। लेकिन वे भी टीके पर उम्मीद लगाए हुये हैं। साथ में उन्हें लगता है कि इलाज के अन्य विकल्पों के अध्ययन को समान महत्व दिए जाने की आवश्यकता है। उनका कहना है कि संक्रमित रोगियों की देखभाल करते समय निकटता और व्यक्तिगत जुड़ाव के इस बीमारी पर प्रभाव का अध्ययन होना चाहिए। साथ ही देखभाल करने वालों के चिकित्सीय रवैये का इस वायरस के प्रसार पर क्या असर होता अहै ये भी देखा जाना चाहिए। गोम्स कहते हैं कि मरीज इस वायरस से अकेले ही लड़ रहे हैं और अकेलेपन का व्यापक प्रभाव हो सकता है। हम यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या इससे उनके उपचार पर असर पड़ता है।

अब आगे की तैयारी

डॉक्टर गोम्स ने अब उपचार के तरीके पर अपनी टीम को प्रशिक्षित किया है इन तरीकों को मरीजों के अगले बैच पर आजमाएँगे। अब इस अस्पताल में अतिरिक्त नर्सिंग स्टाफ की तैनाती हो गई है। गोम्स कहते हैं कि अब किसी भी समय 80 से 100 रोगियों को संभालने के लिए व्यवस्था है। राज्य में 300 वेंटिलेटर मँगवाए गए हैं।

शुरुआती दिनों में, गोम्स और उनकी टीम ने राज्य के सात पॉजिटिव मरीज़ों को अलग अलग वर्गों में विभाजित किया। ये मरीज 18 मार्च से 4 अप्रैल के बीच सात अलग-अलग तारीखों पर आए थे।

मलेरिया की दवा

आईसीएमआर ने लक्षण वाले मरीजों को एंटी-मलेरिया औषधि देने का प्रोटोकॉल बनाया हुआ है। ये उपाय कारगर रहा लेकिन निमोनिया के चार रोगियों के मामले में, सेफलोस्पोरिन और एमिकैसीन एंटीबायोटिक दवाओं का संयोजन देने का निर्णय लिया गया। “हम सही खुराक में इसे दे रहे थे। कोविड-19 में थूक की जांच नहीं करते हैं। इसलिए हम अपने ज्ञान के आधार पर सही इलाज करते गए। हमने पहले कभी इस एंटीबायोटिक को नहीं दिया है, बस हमारी दिल की आवाज़ सही थी।

पीपीई में भी किया बदलाव

डाक्टरों की टीम फरवरी से ही टीम उपचार के विभिन्न पहलुओं पर इटली, चीन और अमेरिका के शोध पत्रों को पढ़ रही है। डाक्टरों ने पीपीई के अलावा सिर पर वह आवरण पहना जिसे एचआईवी वायरस के इलाज के लिए उपयोग करते हैं। उसमें चेहरा पूरी तरह से दिखाई देता है।

ऐसे में मरीज अपने डाक्टर का चेहरा देख सकता है। उनकी आँखें और मुस्कान देख सकता है। हमें पहचानने और हमारे साथ जुड़ने में मदद मिलती है। हम सुनिश्चित करते हैं कि जब हम बात कर रहे हों तो हम एक मीटर की दूरी पर हों लेकिन ये भी सुनिश्चित करते हैं कि वे हमें देख सकें और भावों के साथ जवाब भी दे सकें।”

डॉक्टर ने खुद भी खाई एंटी एंग्जाइटी गोली

डॉ गोम्स बताते हैं कि एक मरीज के साथ उन्होने भी एंटी एंग्जाइटी गोली खाई। “मैंने उनसे कहा कि यह गोली आपको सोने के लिए नहीं बल्कि आपको अच्छा महसूस कराने के लिए है। मैंने इसे पहली बार खुद लिया ताकि वह आश्वस्त हो जाए।”

उनका कहना है कि वायरस से पीड़ित मरीजों के लिए अकेलापन बहुत बड़ी चीज होता है, वे सिर्फ डाक्टरों के संपर्क में आते हैं। ठीक हुए मरीजों में से एक का कहना है कि मैं उस पल का इंतजार करता था कि डाक्टर आयें ताकि मैं किसी के करीब हो सकूँ। इससे मुझे शांति मिलती थी।

स्टाफ की ड्यूटी में रोगी के फोन की बैटरी की लगातार जांच करना भी शामिल है। शुरू में, चूंकि मरीज डर गए थे और अस्पताल में भी नए थे, इसलिए वे सिर्फ वॉयस कॉल करते थे। हम उन्हें परिवार, दोस्तों या किसी को भी वीडियो कॉल करने के लिए प्रोत्साहित करते थे ताकि उनका चित्त शांत हो सके।

सीखने का समय

यह एक निरंतर सीखने का समय है। एक महामारी से कैसे निपटा जाये। इसमें, सब कुछ मायने रखता है - मरीजों से कैसे बात करें। उनके डर को कैसे दूर किया जाए। उपचार कैसे करें। और क्या बेहतर हो सकता है। किस चीज़ से क्या मदद मिली? हमें इन सवालों के जवाब देने की जरूरत है। हम इस सब का अध्ययन करना चाहते हैं।

गोम्स ने अपने रोगियों से संपर्क, बातचीत और स्पर्श के प्रभाव को दर्ज कर रखा है। वे जानते हैं कि उनका अध्ययन इस बीमारी के लिए एक विसंगति है जिसका इलाज अब भी मायावी है। गोम्स का कहना है कि वह और उनकी टीम 15 जून को एक महत्वपूर्ण तारीख के रूप में देख रहे हैं।

15 जून तक अगर हम नियंत्रण रख सकते हैं, तो हमें बीमारी से काफी कुछ सीख लिया होगा। हमें तब तक सावधानी बरतनी होगी और निरीक्षण करना होगा। हम रोज़ सीख रहे हैं ... और हम अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने की उम्मीद करते हैं। हमारा एकमात्र अनुरोध है कि हम तक मरीज जल्द पहुंचें। ”



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राम केवी

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