TRENDING TAGS :
मिशन महाव्रत: गुमनाम खत ने उड़ाई पुलिस अफसरों की नींद
देहरादून: क्या आपने कभी सोचा है कि अगर पुलिस वाले हड़ताल पर चले जाएं तो क्या स्थिति बनेगी? कहीं चोरी हो, या सड़क पर जाम लगा हो, कोई दुर्घटना हो या कहीं आग लग गई हो, दो लोगों की कहासुनी हो या दो समुदायों के बीच तनाव हो, पुलिसवाले हड़ताल पर चले जाएं तो इन परिस्थितियों का सामना हम कैसे करेंगे? पुलिस की नौकरी जितनी शानदार दिखती है, उतनी ही मुश्किल और जोखिम भरी है। यह बात इसलिए क्योंकि देहरादून में सोशल मीडिया पर वायरल हो चुके एक गुमनाम खत ने पुलिस के आला अधिकारियों की नींद उड़ा दी है। मिशन आक्रोश नाम से पहले अपना विरोध दर्ज करा चुके पुलिसकर्मियों ने इस बार मिशन महाव्रत के जरिए अपनी मांगें मनवाने का मन बनाया है।
सोशल मीडिया पर वायरल हुआ पत्र मुख्यमंत्री के नाम लिखा गया है। इस गुमनाम पत्र में पुलिसकर्मियों के ग्रेड पे से लेकर उनके भत्ते और नियमों के विरुद्ध उनके साथ हुए व्यवहार का जिक्र किया गया है। यही नहीं पत्र में पुलिस मुख्यालय स्तर पर पुलिसकर्मियों की समस्याएं न सुलझाने पर भी आक्रोश जताया गया है। इस पत्र में यह भी लिखा है कि प्रदेश भर के पुलिसकर्मी 6 जनवरी को व्रत रखकर अपना विरोध दर्ज कराएंगे। फिर भी उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं तो अनिश्चितकालीन व्रत रखने की चेतावनी दी गयी है।
इस खबर को भी देखें: लखनऊ ZOO के बुजुर्ग 18 वर्षीय टाइगर ‘आर्यन’ की मौत
खुफिया विभाग जांच में जुटा
खुफिया विभाग इस गुमनाम पत्र की जांच में जुट गया है। डीजीपी ने इसे कुछ शरारती तत्वों की कारस्तानी बताया है और ऐसा करने वालों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की बात कही है। इससे पहले भी सोशल मीडिया पर पुलिसकर्मियों के विरोध के मसले आ चुके हैं। ऐसे मामलों को पुलिस विभाग दबाने की पुरजोर कोशिश करता है। एक बार फिर वर्दीधारियों का विरोध का फैसला महकमे के लिए बड़ी परेशानी बन गया है। गुमनाम पत्र में वेतन विसंगति, भत्ते, अवकाश, पुलिस कर्मियों के बच्चों को सेना भर्ती में आरक्षण, स्वास्थ्य सुविधा जैसे मुद्दों का जिक्र किया गया है।
क्या था मिशन आक्रोश
साल 2015 में पुलिसकर्मियों ने मिशन आक्रोश छेड़ा था। वेतन विसंगति को लेकर काली पट्टी बांधकर विरोध प्रदर्शन कर नई परिपाटी को जन्म दिया था। उस समय भी वेतन विसंगति, स्वास्थ्य, भत्ते जैसी मांगों को लेकर पुलिसकर्मियों ने आंदोलन की राह अपनायी। तब कांग्रेस की हरीश रावत सरकार थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री ने बीजेपी पर पुलिसकर्मियों को भडक़ाने का आरोप लगाया था। पुलिस कर्मचारियों के मुद्दे पर उन्होंने कुछ नहीं कहा।
पुलिस की मुश्किलों पर किताब
पुलिसवालों की मुश्किल जिंदगी को लेकर उत्तराखंड के एडीजी (कानून-व्यवस्था)अशोक कुमार ने ह्यूमन इन खाकी नाम से एक किताब भी लिखी है। इसमें वे कहते हैं कि किसी भी तरह के मुश्किल हालात, इमरजेंसी, दुर्घटना में सबसे पहले लोग पुलिस को याद करते हैं। सडक़ पर जाम लगे या नदी में बाढ़ आए सबसे पहले मदद के लिए पुलिस पहुंचती है। एडीजी अशोक कुमार मानते हैं कि कुछ अपवाद हैं जिसकी वजह से पुलिस की छवि खराब हुई है, लेकिन 24 घंटे की ड्यूटी, कम वेतन, छुट्टी न मिलना, परिवार से दूरी और कई बार अमानवीय परिस्थितियों में काम करने से पुलिसकर्मियों में गुस्सा और झुंझलाहट आ जाती है।
वैसे इसे पुलिस का असल व्यवहार नहीं माना जाना चाहिए। पूर्व डीजीपी आलोक लाल भी पुलिसकर्मियों के कार्य के बोझ को लेकर कहा कि हर आदमी कानून तोडऩे में अपनी शान समझता है। जहां मौका मिलता है तो आदमी कानून तोड़ता है और अपराध करता है। बाद में वही पुलिस को गाली देता है। समाज की हर घटना और अपराध के लिए पुलिस को जिम्मेदार ठहराने की मानसिकता में बदलाव लाना होगा।
एडीजी अशोक कुमार के अनुसार दरअसल हमारे यहां हर काम के लिए पुलिस बुलाने की परंपरा है। अमेरिका में पुलिस केवल पुलिसिंग करती है जबकि भारत में लॉ एंड ऑर्डर के साथ, ट्रैफिक, अतिक्रमण हटाना, रेस्क्यू जैसे काम के लिए सबसे पहले पुलिस को याद किया जाता है। इसलिए भी पुलिसकर्मियों पर काम का बोझ अधिक होता है।