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Modi Government 8 Years: राजनीति में न होते तो क्या करते मोदी, इस क्षेत्र में भी मोदी को महारत हासिल

Modi Government 8 Years: नरेंद्र मोदी राजनीति में नहीं होते तो क्या करते? दूसरा, नरेंद्र मोदी के बाद उनका मूल्यांकन कैसा होगा? कैसा किया जाना चाहिए?

Yogesh Mishra
Published on: 30 May 2022 6:29 PM IST (Updated on: 30 May 2022 6:30 PM IST)
Modi Government 8 Years narendra Modi poems books
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Modi Government 8 Years narendra Modi poems books 

Modi Government 8 Years: किसी भी कालखंड में जो कोई भी व्यक्ति किसी भी क्षेत्र को प्रभावित करता है, तो समय के सापेक्ष उसका मूल्यांकन ज़रूरी हो जाता है। समय के साथ मूल्यांकन की यह सापेक्षता वर्तमान व भविष्य के संदर्भ में होती है, होनी चाहिए। उस तराज़ू पर हम अगर नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व व कृतित्व को रख कर तोलें तो दो सवाल उठते हैं। पहला, नरेंद्र मोदी राजनीति में नहीं होते तो क्या करते? दूसरा, नरेंद्र मोदी के बाद उनका मूल्यांकन कैसा होगा? कैसा किया जाना चाहिए? हालाँकि फ़ौरी तौर पर इसकी जगह लोग यह सवाल रख देते हैं कि नरेंद्र मोदी के बाद कौन? लेकिन हमें लगता है कि यह एक अनावश्यक सवाल है। क्योंकि मैं यक़ीन करता हूँ- "कल और आयेंगे नग़मों की बीती कलियाँ चुनने वाले, मुझसे बेहतर कहने वाले, तुमसे बेहतर सुनने वाले।" एक बात और कहना मेरे लिए ज़रूरी हो जाता है कि मूल्यांकन की इस प्रकिया में आँकड़ों की घटत बढ़त या फिर लोगों को मिलने वाली भौतिक सुविधाओं के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। जगह केवल उसे मिलना चाहिए जिससे समाज का मन बदला हो, रहन सहन बदला हो, आचार विचार बदला हो।

मोदी की कहानियाँ

सबसे पहले हम पहले सवाल पर ज़िक्र करना ज़रूरी समझते हैं। मोदी राजनीति में नहीं आते तो गुजरात के मुख्यमंत्री नहीं बनते। देश के प्रधानमंत्री नहीं बनते। लेकिन यदि मोदी के गुण सूत्र या गुण धर्म खंगाले जायें तो यह कहा जा सकता है कि वह अगर सियासत में नहीं होते तो वह गुजराती भाषा के अच्छे साहित्यकार होते। उन्होंने साहित्य की विधा- कविता, कहानी और संस्मरण में खूब हाथ आज़माया है। मोदी की गुजराती में लिखी कविताओं को मध्य प्रदेश भाजपा की पत्रिका 'चरैवेति' में छापा गया। गुजराती में मोदी का काव्य संग्रह 'आंख आ धन्य छे' पहले ही छप चुका है। नरेंद्र मोदी गोलवरकर जी की प्रशंसा में किताब लिख चुके हैं।

मोदी का कहानी संग्रह हम सबकी अनुभूतियों को एक धागे से बांधता है और अनुमोदित करता है। मोदी स्वीकारते हैं - अविरल बहती गंगा धारा की तरह मेरे भीतर भी साहित्य का प्रवाह बहता रहा हो ऐसा सौभाग्य मुझे नहीं मिला।

मोदी की कहानियाँ 'चाँदनी' व 'आराम' जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। 1950 के बाद के समय में 'चाँदनी', 'आराम' व 'नव चेतन' बड़ी पत्रिकाएँ थीं। इनमें विशेष रूप से 'चाँदनी' शुद्ध व निरपेक्ष कहानी की पत्रिका थी। मोदी 'चाँदनी' व 'आराम' की आग से गुजरे हैं। उनकी कहानियों में विचार व संवेदना का ऐसा समावेश है, मूल्यों के प्रति ऐसा समर्पण है, जो उन्हें न केवल बड़े लेखकों की सूची में लाकर खड़ा करता है बल्कि एक बड़ा पाठक वर्ग भी तैयार करने में मदद करता है। प्रस्तुति में कौशल व जिज्ञासावृत्ति को बनाये रखने की अद्भुत क्षमता मोदी में है। जो पाठक को बांधे रखने में सक्षम है। उनकी कहानियों में काव्यात्मक अंश भी आते हैं। उनकी कहानियों में संवेदनशील मूल्य समर्पित, आदर्शवादी युवा लेखक के मनो जगत के द्वंद्व और आकांक्षा को जानने समझने की पर्याप्त सामग्री है।

'भोलू' कहानी में अपेक्षा व दहशत के भाव हैं। गुजराती कहानीकार व उपन्यासकार रजनी कुमार पांडया इस कहानी के बारे में कहते हैं – 'इसे पढ़ते समय इस दहशत को भी साथ रखना था, जैसे चौकीदार आग के साथ लकड़ी रखता है। इस बात का आनंद है कि यहाँ टार्च काम आई, लकड़ी का उपयोग नहीं करना पड़ा।'

मोदी के कहानियों की विषय वस्तु मातृत्व है, जो साहित्य के लिए अक्षय पात्र है। मोदी की 'रूम नंबर 9' कहानी चेखव की लंबी कहानी 'वार्ड नंबर 6' की याद दिलाती है। यहाँ एक जीवन अस्त हुआ, दूसरे जीवन के उदय की आशा देकर।

मोदी एक सशक्त व समर्थ कहानीकार हैं। उनकी भाषा सरल व मार्मिक है। उनकी कथाओं में प्रवाह बेरोकटोक हैं। उनकी हर कहानी में मूल्यबोध है। मृत्यु के बेहद क़रीब हैं मोदी। मृत्यु को देखने का उनका नज़रिया उत्साह व साहस भरा है। भारतीय समाज में नारी के लिए पति दीपक हैं। इस प्रतीक को 'दीपक' कहानी मज़बूत करती है। कथा में किस तरह विमर्शों को पिरोया जा सकता है,किस तरह अपने समय की घटनाओं पर सवाल उठाए जा सकते हैं, वे इसकी भी राह देते हैं ।

भूमिगत रह कर मोदी ने 'मुक्तवाणी' साप्ताहिक का संपादन कार्य सँभाला। उन्होंने ख़बरदार उपनाम से लिखा। उनके मौन के बादलों को शब्दों की सूर्य किरणों का स्पर्श हुआ। अपने 'प्रेमतीर्थ' में मोदी लिखते हैं – 'संतान को अपनी माता को केवल एक बार ही दुखी करने का अधिकार है। वह भी अपने जन्म के समय, प्रसव वेदना के समय, उसके बाद उसे दुखी करने का कोई अधिकार नहीं है।'

मोदी में प्रचंड प्रेमाकर्षण है। उनकी कविताएँ इसे न केवल बयां करती हैं बल्कि पुष्ट भी करती हैं।


(1)

यथा :

"जिन क्षणों मुझे तुम्हारे होने का अहसास हुआ है

मेरे दिमाग़ के शांत हिमालयी जंगल में

एक वन अग्नि धधक रही थी

गंभीरता से उठती हुई

जब मैं अपनी आँखें तुम पर रखता हूँ

मेरे मस्तिष्क की आँख में एक पूर्ण चंद्रमा उदय होता है

और मैं संपूर्ण पुष्पित चंदन के वृक्षों से झरती महक से भर जाता हूँ

और तब जब आख़िरी बार मिले थे

मेरे होने का पोर पोर एक अतुलनीय महक से भर गया था

हमारे अलगाव ने

मेरे जीवन के आनंद के सभी शिखरों को पिघला दिया था

जो मेरे देह को झुलसाती है और

मेरे सपनों को राख में बदल देती है"

1986-89 के बीच मोदी का हिंदी में भी एक कविता संग्रह 'साक्षी भाव' के नाम से आ गया था। इनमें सोलह कविताएँ हैं, जिसे मोदी ने जगद् जननी माँ के श्री चरणों में अर्पित किया है। मोदी की कविताओं में जो प्रेम है, वह राष्ट्र प्रेम के रूप में भी मुखरित हुआ है। उसमें भारत माता के प्रति भी अपार प्रेम व अपूर्व समर्पण है-


(2)

'एक ओर मैं

भावना व उसकी अभिव्यक्ति के

व्यसन में फँसा हूँ

जबकि मेरे चारों ओर

उत्साह व उमंग के नाँद

गूँज रहे हैं।

जगह जगह से

स्वयं सेवक शिविर

में आ रहे हैं।

माँ ने व्यवस्था के लिए

पूरी शक्ति से प्रयास किया है।

उन सबके स्वागत के लिए

छोटे बड़े सैकड़ों स्वयंसेवकों ने

अपने पसीने की चादर बिछाई है।

कितनी अधिक

उमंग थी

काम करने वाले

सबके व्यवहार में

हाँ, आने वाले स्वयंसेवक भी

उतने ही उमंग -उत्साह से भरे आये हैं।

मातृभूमि के

कल्याण के लिए

स्वयं को अधिक तेजस्वी

बनाने के लिए

आत्म विश्वास में वृद्धि

करने के लिए

हृदय में प्रेरणा का पीयूष

भरने के लिए

वे थिरक रहे हैं।

उनकी आँखों में से

समाज शक्ति

राष्ट्र भक्ति, संघ भक्ति

की भावना की धार

धर रही है

मेरे अंतर्मन को यह सब

कितनी सहजता से

स्पर्श कर जाता है'


(3)

घने बादलों को चीरकर

रोशनी का संकल्प लें

अभी तो सूरज उगा है


दृढ़ निश्चय के साथ चलकर

हर मुश्किल को पार कर

घोर अंधेरे को मिटाने

अभी तो सूरज उगा है

विश्वास की लौ जलाकर

विकास का दीपक लेकर

सपनों को साकार करने

अभी तो सूरज उगा है

न अपना न पराया

न मेरा न तेरा

सबका तेज़ बनकर

अभी तो सूरज उगा है

आग को समेटते

प्रकाश को बिखेरता

चलता और चलाता

अभी तो सूरज उगा है

( नये वर्ष में मोदी ने यह कविता लिखकर दी बधाई।)


(4)

'अपने मन में एक लक्ष्य लिए

मंज़िल अपनी प्रत्यक्ष लिए

हम तोड़ रहे हैं जंजीरें

हम बदल रहे हैं तस्वीरें

ये नवयुग है, नव भारत है

खुद लिखेंगे अपनी तकदीरें

हम निकल पड़े हैं प्रण करके

अपना तन-मन अर्पण करके

जिद है एक सूर्य उगाना है

अम्बर से ऊँचा जाना है

एक भारत नया बनाना है

एक भारत नया बनाना है'

( स्वतंत्रता दिवस पर लाल क़िले से दिये अपने भाषण के अंत में मोदी ने यह कविता पढ़ी।)




(5)

"ऊंची उड़ान साधे आसमान

अंबर से अवसर

और

आंख में अंबर..

सूरज का ताप समेटे..अंबर

चांदनी की शीतलता बिखेरे..अंबर

सम-विषम समाए..अंबर में

भेद-विभेद संग विवेक विशेष

जगमग तारे अंबर उपवन में

विराट की कोख में..अवसर की आस में

टिमटिमाते तारे तपते सूरज में

नीची उड़ान करे परेशान

ऊंची उड़ान साधे आसमान

हो कंकड़ या संकट

पत्थर हो या पतझड़

वसंत में..भी संत

विनाश में..है आस

सपनों का अंबार

अंबर सी आस

गगन..विशाल

जगे विराट की आस

मार्ग..तप का

मर्म.. आशा का

अविरत..अविराम

कल्याण यात्री.. सूर्य

आज

तपते सूरज को, तर्पण का पल

शत शत नमन..शत शत नमन

सूरज देव को अनेक नमन."

यह कविता गुजराती में लिखी गयी है।



(6)

"समीसांजनी वेणा: आपणे रमताराम अकेला

मारा आ तमनममां उभरे तरणेतरना मेणा

कोई पासे नहीं लेवुंदेवुं: कदी होय नहीं मारुंन्तारुं

आ दुनियामां जे कैं छे के मनगमतुं मणियारुं

रस्तो मारो सीधोसाधो: नहीं भीड़: नहीं ठेलमठेला

समीसांजनी वेणा: आपणे रमताराम अकेला

कोई पंथ नहीं: नहीं संप्रदाय: माणस ऐ तो माणस,

अजवाणामां फरक पड़े शुं? कोडियुं हय के फानस

झणांझणां झुम्भरनी जेवां क्यारेच नहीं लटकेला

समीसांजनी वेणा: आपणे रमताराम अकेला"

मोदी की कुछ पसंदीदा कविताओं का ज़िक्र भी ऐसे में ज़रूरी हो जाता है।



(7)

यही समय है, सही समय है,

भारत का अनमोल समय है

असंख्य भुजाओं की शक्ति है,

हर तरफ देश की भक्ति है,

तुम उठो तिरंगा लहरा दो,

भारत के भाग्य को फहरा दो

यही समय है, सही समय है

भारत का अनमोल समय है

कुछ ऐसा नहीं जो कर ना सको

कुछ ऐसा नहीं जो पा ना सको

तुम उठ जाओ, तुम जुट जाओ

सामर्थ्य को अपने पहचानो

कर्तव्य को अपने सब जानो

भारत का ये अनमोल समय है

यही समय है, सही समय है

( देश के आज़ादी के अमृत महोत्सव पर लिखी गयी कविता।)





(8)

सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूँगा

मैं देश नहीं झुकने दूँगा

मेरी धरती मुझसे पूछ रही कब मेरा क़र्ज़ चुकाओगे

मेरा अंबर पूछ रहा कब अपना फ़र्ज़ निभा ओगे

मेरा वचन है भारत माँ को तेरा शीश नहीं झुकने दूँगा

सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूँगा

वे लूट रहे हैं सपनों को मैं चैन से कैसे सो जाऊँ

वे बेच रहे हैं भारत को ख़ामोश मैं कैसे हो जाऊँ

हाँ मैंने क़सम उठाई है मैं देश नहीं बिकने दूँगा

सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूँगा

वो जितने अंधेरे लायेंगे मैं उतने उजाले लाऊँगा

वो जितनी रात बढ़ायेंगे मैं उतने सूरज उगाऊँगा

इस छल फ़रेब की आँधी में मैं दीप नहीं बुझने दूँगा

सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूँगा

वे चाहते हैं जागे न कोई बस रात का कारोबार चले

वे नशा बाँटते जाएँ और देश यूँ ही बीमार चले

पर जाग रहा है देश मेरा हर भारतवासी जीतेगा

सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूँगा

माँओं बहनों की अस्मत पर गिद्ध नज़र लगाये बैठे हैं

मैं अपने देश की धरती पर अब दर्दी नहीं उगने दूँगा

मैं देश नहीं रूकने दूँगा, सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूँगा

अब घड़ी फ़ैसले की आई हमने हैं क़सम अब खाई

हमें फिर से दोहराना हैं और खुद को याद दिलाना है

न भटकेंगे न अटकेंगे कुछ भी हो इस बार

हम देश नहीं मिटने देंगे सौगंध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नहीं मिटने दूँगा ।

मोदी अपने साहित्य में सुसंगत परिस्थितियों की विसंगति को भी उजागर करते हैं। उनके यहाँ विडंबना बोध व्यंगात्मक कम है, मार्मिक ज़्यादा, जो जीवन और समय की एक नई व्याख्या की माँग करता है। उनकी कविताओं में दुख है, लेकिन कटुता नहीं, अभाव है लेकिन हड़पने की बेचैनी नहीं। वे एक गहरी और व्यापक दार्शनिक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि अपने समय का आलोचनात्मक पाठ तैयार करते हैं। पीड़ादायी अभाव की पृष्ठभूमि में संस्कृति का विराट वैभव भी है। विडंबनाओं पर लगातार उँगली रखते हुए भी उनकी भाषा के खरोच नहीं लगाती। उनका साहित्य ज़िंदगी के हर पल की अच्छी बुरी रोचक स्मृतियों का दस्तावेजीकरण है। मोदी अपने आस पास के छोटे छोटे चरित्रों, छोटी छोटी घटनाओं को मर्म स्पर्शी सजगता के साथ निरखते हैं और करुणा के उन अदृश्य धब्बों को दृश्य में लाते हैं,जिनसे चरित्र और घटनाएँ आपस में जुड़ी हुई हैं। ये वही धागे हैं,जिनसे समाज और संस्कृति का तानाबाना बना होता है । अपने समय की कविता में उपस्थित करने का यह उनका अपना तरीक़ा है, विचार यहाँ भाषा से कहीं ज़्यादा मौन में व्यक्त होता है। उनकी कविताओं में प्रसंग जितने छोटे होते हैं, उनकी अनुगूँज उतनी लंबी है।

मोदी अगर राजनीति में नहीं आते तो साहित्य को कहाँ तक समृद्ध करते, ये आंकलन नहीं किया जा सकता, मोदी ही नहीं, किसी के लिए भी क्योंकि जो हुआ ही नहीं उसके भविष्य का आंकलन कैसे मुमकिन है। लेकिन इतना जरूर है कि भारतीय हिंदी और गुजराती साहित्य को एक नामवर और संवेदनशील व्यक्तित्व और कृतित्व अवश्य मिलता, जो मोदी के राजनीति या देश सेवा की ओर चले जाने से फिलहाल छिन गया सा है। फिर भी मुमकिन है, अपितु विश्वास है कि मोदी की संवेदनशील साहित्यिक अभिव्यक्ति अवश्य ही हमारे सामने फिर से आयेगी, शायद कभी फुर्सत के लम्हों में।

( लेखक पत्रकार हैं ।)



Ramkrishna Vajpei

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