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चुनावी मौसम में कहीं OROP का मामला न बन जाए मोदी सरकार के गले की हड्डी !

करीब 50 साल पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान जय किसान का नारा देकर कांग्रेस की पूरी राजनीति की धारा को नया प्राण दिया था। देश के कई भागों में भीषण समस्याओं से ग्रस्त किसानों के मुद्दे के साथ अब वन रैंक वन पेंशन का मामला गर्माना मोदी सरकार के गले की हड्डी बन सकती है।

tiwarishalini
Published on: 3 Nov 2016 1:01 AM IST
चुनावी मौसम में कहीं OROP का मामला न बन जाए मोदी सरकार के गले की हड्डी !
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नई दिल्ली: करीब 50 साल पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान जय किसान का नारा देकर कांग्रेस की पूरी राजनीति की धारा को नया प्राण दिया था। देश के कई भागों में भीषण समस्याओं से ग्रस्त किसानों के मुद्दे के साथ अब वन रैंक वन पेंशन का मामला गर्माना मोदी सरकार के गले की हड्डी बन सकती है।

यह मौका मोदी सरकार के लिए संवेदनशील इसलिए है कि पांच प्रदेशों में चुनावों के ऐन वक्त पर एक बार फिर वन रैंक वन रैंक का जिन्न बाहर आ गया। सेना के एक पूर्व जनरल ने कहा कि हो सकता है कि पूर्व फौजी रामकिशन ग्रेवाल के मामले में सरकारी व्यवस्था की नहीं बल्कि बैंक की आंतरिक व्यवस्था की चूक हुई हो, लेकिन बकौल पूर्व सेना अधिकारियों के सरकार अपनी जवाबदेही से नहीं बच सकती। मोदी सरकार की चिंता यह भी है कि पंजाब, उत्तरांखड दो ऐसे प्रमुख राज्य हैं जहां बड़ी तादाद में पूर्व सैनिक हैं। उत्तराखंड में तो औसतन प्रत्येक परिवार से सेना में एक जवान जरूर है।

वन रैंक वन रैंक पेंशन मामले की मांग को लेकर पूर्व सैनिकों का एक बड़ा वर्ग अब भी नाखुश है। सेना मुख्यालय में आए दिन भेजी जा रही ऐसी शिकायतों की लंबी फेहरिस्त है कि जिनमें रिटायर सैनिक पत्र लिखकर बता रहे हैं कि कैसे वन रैंक वन पेंशन के मामले में उनके साथ नाइंसाफी हुई है। सुबेदार रामकिशन ग्रेवाल की आत्महत्या के मामले को तत्काल शांत करना मोदी सरकार के लिए इसलिए भी मुश्किल है क्योंकि पूरे देश में पूर्व सैनिक वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) के लिए लंबे आंदोलन के तहत पहले ही अपना संगठित आंदोलन चला चुके हैं।

सेना के पूर्व अधिकारी और पूर्व सैनिकों की नजर में आत्महत्या का यह मसला इसलिए भी अति संवेदनशील है क्योंकि सीमा पर तनाव हालात के चलते मोदी सरकार सर्जिकल स्ट्राइक के मुद्दों पर पहले ही सियासी विवादो में घिर चुकी है। हालांकि सेना के पूर्व ब्रिग्रेडियर श्रुतिकांत मानते हैं कि देश हित में अच्छा यही होगा कि सैनिकों के मामलों को राजनीतिक चर्चा का विषय बनाए जाने के बजाय उनका इलाज सरकार को बिना किसी विवाद के सुलझाना चाहिए।

वन रैंक वन पेंशन आंदोलन में सक्रिय रहे रिटायर कर्नल डीपी डिमरी कहते हैं कि हमारी सबसे बड़ी शिकायत यह है कि मोदी सरकार ने वित्त मंत्रालय के दबाव में पूर्व सैनिकों की पेंशन की पूरी परिभाषा ही बदल डाली। बकौल उनके पूर्व सैनिकों की सबसे बड़ी मांग यह थी कि दो दशक पहले जो सैनिक रिटायर हुए हैं उन्हें भी आज रिटायर होने वाले सेना के जवान या अधिकारी के समान पेंशन मिलनी चाहिए।

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