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सियासत के शिकार हो रहे ‘बेरोजगार’, इन आकड़ो को देख जागो ‘सरकार’!
गगन दीप मिश्र
नई दिल्ली: भारत में जब चुनाव आते है फिर वो चाहे राज्य के हो या लोकसभा के, हर चुनावों में सियासी दल युवाओं को लुभाने के लिए बेरोजगारी समाप्त करने का वादा करते है। अब जब भारत में एक बार फिर से 2019 का लोकसभा चुनाव दरवाजा खटखटा रहा है तब चाहे पक्ष और या विपक्ष बेरोजगारी के ही मुद्दे पर बात करने लगा हुआ है । विपक्ष इस मुद्दे को गरमाने का एक भी मौका छोड़ना नहीं चाहता है ।
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कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने अमेरिका में भारतीय लोगो के बीच भारत में बेरोजगारी की समस्या उठा कर मोदी सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी। राहुल ने सिर्फ मोदी सरकार को ही नहीं बल्कि खुद की सरकार में युवाओं को नौकरी न दिए जाने की भी बात कही थी ।
2014 के लोक सभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी रैली में कहा था ‘जब अटल सरकार थी तब छह करोड़ युवाओं को रोजगार मिला था । जब कि यूपीए सरकार में सिर्फ 27 लाख लोगो को ही रोजगार मिला । आप मुझे बताइए मेरे नौजवान मित्रों क्या ये कांग्रेस के हाथ में देश के नौजवानों का भविष्य सुरक्षित है।’
भाजपा ने जब देश की सत्ता संभाली थी उस समय 2013-14 में देश में बेरोजगारी दर 4.9 फीसदी थी, जो अगले एक साल में 2015-16 में थोड़ा-सा बढ़कर 5.0 फीसदी हो गई। आगरा में एक जनसभा में मोदी ने कहा था, 'अगर भाजपा सत्ता में आती है तो हम एक करोड़ रोजगार का सृजन करेंगे, जो यूपीए की सरकार घोषणा करने के बावजूद कर नहीं सकी।' अगर मोदी के इस वादे पर भरोसा करे तो अब तक देश में 3 करोड़ नई नौकरियां होनी चाहिए थी, लेकिन हकीकत में इसका 5 फीसदी भी नहीं हो पाया है।
श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के आधार पर तैयार आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक देश में नौकरी पैदा करने वाले 8 प्रमुख सेक्टरों में पिछले कुछ सालों में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। 2009 में यूपीए सरकार के दोबारा सत्ता में आने के बाद से 2014 तक इन सेक्टरों में कुल 35 लाख नौकरियां दी गईं। इसमें यूपीए के आखिरी ढाई साल यानी 2012 से मई 2014 के बीच 8.86 लाख नौकरियां आईं। जबकि 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद के ढाई सालों में सिर्फ 6.41 लाख नई नौकरियां ही आयीं।
श्रम मंत्रालय द्वारा पांचवे वार्षिक रोजगार-बेरोजगार सर्वेक्षण (2015-16) की रिपोर्ट में कहा गया था कि सामान्य प्रिंसिपल स्टेटस के आधार पर बेरोजगारी दर पांच फीसदी रही। सामान्य प्रिंसिपल स्टेटस के अनुसार, सर्वेक्षण से पूर्व के 365 दिनों में 183 या उससे अधिक दिन काम करने वाले लोगों को बेरोजगार नहीं माना जाता।
इस सर्वेक्षण में औपचारिक और अनौपचारिक अर्थव्यवस्था दोनों को शामिल किया गया है। इसके अलावा सार्वजनिक रोजगार कार्यक्रमों के तहत काम करने वाले दिहाड़ी मजदूरों को भी शामिल किया गया।
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प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक, जुलाई 2014 से दिसंबर 2016 के बीच उत्पादन, कारोबार, निर्माण, शिक्षा, स्वास्थ्य, सूचना प्रौद्योगिकी, परिवहन एवं आतिथ्य सेवा तथा रेस्तरां सेक्टरों में 641,000 रोजगार का सृजन हुआ। इसमें भी जनवरी, 2016 से मार्च, 2016 के बीच पैदा हुए रोजगार शामिल नहीं हैं, क्योंकि उनके आंकड़े नहीं मिल सके।
इसकी तुलना में जुलाई, 2011 से दिसंबर, 2013 के बीच इन्हीं क्षेत्रों में 12.8 लाख रोजगार सृजित हुए थे। ये आंकड़े सरकार द्वारा गैर-कृषि इकाइयों से जुटाए गए हैं।
कुल मिलाकर यूपीए के आखिरी ढाई साल यानी 2012 से मई 2014 के बीच 8.86 लाख नौकरियां आईं। जबकि 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद के ढाई सालों में सिर्फ 6.41 लाख नई नौकरियां ही आयीं।
बेरोजगारी दूर करने में नाकाम मोदी सरकार के पास अब भी सिर्फ कांग्रेस को कोसने के सिवाए कुछ और नहीं है। रोजगार देने में भले ही सरकार विफल रही हो लेकिन सत्ताधारी पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह कहते है कि 'कांग्रेस हमारा 3 साल का हिसाब मांगती है जनता आपसे 3 पीढ़ी का हिसाब मांग रही है ।'
हमेसा से ही देश में जब बात बढ़ती बेरोजगारी की आती है तो अपनी विफलताओं को छुपाने के लिए राजनीतिक दलों का हमेसा से ऐसा ही रवैया रहा है । बीजेपी कांग्रेस से उनके कार्यकाल के दौरान हुए कार्यों पर सवाल उठाती है। तो वहीँ खुद रोजगार देने में विफल रही कांग्रेस के उपाध्यक्ष अब अमेरिका में कह रहे है कि उनके पास नौकरिया पैदा करने का फार्मूला है ।
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संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट ने मोदी सरकार को झटका दिया है । रिपोर्ट के मुताबिक 2017-18 में भी भारत में बेरोजगारी में कुछ भी कमी आने की उम्मीद नहीं है।
रिपोर्ट के अनुसार, साल 2017 में भारत में बेरोजगारों की संख्या 1 करोड़ 70 लाख बढ़ गई। जो 2018 में 1 करोड़ 80 लाख होने का अनुमान है यानी अगले साल 10 लाख और लोग बेरोजगार हो जाएंगे।
अब 2019 का लोक सभा चुनाव करीब है और पीएम मोदी अभी से ही चुनाव की तैयारियों में जुट चुके है उस वक़्त ये रिपोर्ट उनके और बीजेपी के लिए मुसीबते पैदा कर सकती है । हालांकि सरकार अब भी 2020 तक 5 करोड़ नई नौकरियों का दावा कर रही है लेकिन उसके पहले 2019 में चुनाव हैं और अगर मोदी युवाओं को रोजगार देने में कामयाब नहीं होते है तब शायद यूपीए की ही तरह बीजेपी का भी हाल हो सकता है ।