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Rahul Gandhi: अपील में देरी के चलते चली गई सदस्यता, जानिए क्या है सदस्यता खत्म होने का नियम
Rahul Gandhi: राहुल गांधी के मामले में उनकी सदस्यता जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत रद की गई है। यदि वह तत्काल उच्च न्यायालय में अपील कर देते तो सदस्यता बची रह सकती थी। इसी में विलंब करने के कारण सदस्यता रद कर दी गई।
Rahul Gandhi: संसद या असेम्बली के सदस्यों की सदस्यता खत्म होने या सदस्यता के लिए अयोग्य ठहराए जाने के बारे में कुछ नियम व प्रावधान हैं। राहुल गांधी के मामले में उनकी सदस्यता जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत रद की गई है। यदि वह तत्काल उच्च न्यायालय में अपील कर देते तो सदस्यता बची रह सकती थी। इसी में विलंब करने के कारण सदस्यता रद कर दी गई। अगर चुनाव से पहले उच्च न्यायालय द्वारा उनकी सजा को निलंबित या पलट नहीं दिया जाता है तो राहुल गांधी को 2024 में लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने के जोखिम का सामना करना पड़ सकता है।
जनप्रतिनिधित्व कानून 1951
ये कानून कहता है कि अगर कोई व्यक्ति अदालत द्वारा दोषी पाए जाने के बाद कम से कम दो साल की सजा पाता है तो वह अयोग्य ठहरता है। ऐसे में वह व्यक्ति सज़ा पूरी होने के बाद से 6 साल के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जाएगा। लेकिन इसी कानून में सदस्यों को इसमें एक छूट या राहत भी मिलती है। इसके अनुसार, मौजूदा सांसदों, विधायकों और विधानपरिषद सदस्यों को दोषी ठहराए जाने के दिन से अपील के लिए 3 महीने की छूट मिलती है।
संविधान का अनुच्छेद 102
इसमें कहा गया है कि इन आधार पर किसी व्यक्ति की सदन की सदस्यता खत्म की जा सकती है :
- यदि कोई व्यक्ति केंद्र या राज्य सरकार में लाभ के पद पर है। यहां लाभ का पद का मतलब उस पद से होता है जिस पर रहते हुए कोई शख्स सरकार की ओर से किसी भी तरह की सुविधा लेने का अधिकारी है। अगर कोई व्यक्ति इस पद का लाभ ले रहा है तो वह लोकसभा का सदस्य नहीं रह सकता।
- उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है और कोर्ट ने उसे मानसिक तौर पर अयोग्य करार दे दिया है।
- यदि कोई व्यक्ति दीवालिया घोषित हो गया है।
- यदि वह भारत का नागरिक नहीं है।
- यदि उसकी नागरिकता खत्म कर दी गई है या उसने दूसरे देश की नागरिकता स्वीकार कर ली हो।
- अगर वह संसद द्वारान बनाए किसी कानून के तरह अयोग्य ठहराया गया है।
दलबदल कानून का दायरा
संविधान के तहत किसी सांसद को दलबदल कानून के तहत भी अयोग्य पाने जाने पर सदस्यता से वंचित करने का प्रावधान है। इसका प्रावधान संविधान की 10वीं सूची में है। ये प्रावधान कहता है कि यदि कोई सदस्य अगर दलबदल कानून के तहत अयोग्य हो जाए– अगर वह स्वैच्छा से अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़ दे जिससे मिले टिकट के आधार पर वह जीतकर सदन में आया है या अगर वह पार्टी व्हिप का उल्लंघन करते हुए वोटिंग करे या सदन से वोटिंग में गैरमौजूद रहे तो उसे अयोग्य ठहराया जा सकता है।