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Crimes Against Women: जो मौन हैं समय लिखेगा, उनका भी अपराध
Most Crimes Against Women: हम तभी रो पाते हैं जब हमारे घर में किसी के साथ हैवानियत होती हैं। तभी हम खाना खाते वक्त टीवी पर मणिपुर या कहीं की भी घटना देखते सुनते हैं । लेकिन भूख नहीं मरती, बस सब्जी में टमाटर की कमी खलती है। सीमा हैदर की सेल्फी लेती फोटो ज्यादा इंटरेस्टिंग है।
Most Crimes Against Women: टमाटर 200 रुपये किलो के आसपास मंडरा रहा है। लेकिन अब यह भी खबर नहीं रही। सीमा हैदर भी अब उबाऊ हो गई है। मणिपुर भी बासी हो गया। वैसे भी ये टीवी चैनलों में बड़ी खबर नहीं थी। महिलाओं को नग्न कर सड़क पर घुमाए जाने का वीडियो वायरल हो जाने पर कुछ उत्सुकता जगी थी । लेकिन फिर सब शांति है। ऐसे ही अन्य मामलों की खबरें आ रही हैं । लेकिन अब कोई हल्ला नहीं है। स्वतंत्रता सेनानी की 80 वर्षीय पत्नी को उसके घर समेत फूंक डाला गया, किसी लड़की की गर्दन उड़ा दी गई। ये सब अब रूटीन खबरें रह गई हैं।
लेकिन क्या वाकई में हमें हैरान होने की जरूरत है? कतई नहीं, सौ फीसदी नहीं। क्योंकि ऐसे वाकये तो हर राज्य, हर शहर, हर जगह होते रहे हैं और हो रहे हैं, और होते भी रहेंगे। तभी तो हमारी कलेक्टिव संवेदना मर चुकी है। हम तो महिलाओं, बच्चियों, लड़कियों, दुल्हनों, छात्राओं पर इंतिहाई ज़ुल्म देख, सुन और पढ़ कर सुन्न हो चुके हैं। हम तभी रो पाते हैं जब हमारे घर में किसी के साथ हैवानियत होती हैं। तभी हम खाना खाते वक्त टीवी पर मणिपुर या कहीं की भी घटना देखते सुनते हैं । लेकिन भूख नहीं मरती, बस सब्जी में टमाटर की कमी खलती है। सीमा हैदर की सेल्फी लेती फोटो ज्यादा इंटरेस्टिंग है। दिल्ली का निर्भया कांड और लखीमपुर में लड़कियों के साथ थाने में रेप और मर्डर तो पुरानी खबरें हैं। इनको याद करने में भी दिमाग पर जोर देना पड़ता है।
मणिपुर में भले ही भयानक पन्ने खुल रहे हों लेकिन पूरे देश का यही हाल है। इसी महीने की खबरें देखिए - भोपाल में विवाहिता के साथ रेप, खंडवा में 15 साल की रेप पीड़िता, दतिया में दो लड़कियों से रेप, बुलढाणा महाराष्ट्र में लड़कियों के साथ गैंगरेप, मुंबई में महिला के संग रेप, जोधपुर में दलित लड़की के साथ गैंगरेप, बंगाल में गैंगरेप। बाराबंकी में अपनी बहन का सिर काट कर सड़क पर चलते युवक की तस्वीरें।
कहाँ कहाँ की घटनाएं गिनाई जाएं? हर जगह डरावनी है। घर, पार्क, खेत, पुलिस थाने - हर जगह भेड़िए घात लगाए बैठे हैं। ट्रेनों तक में हिफाज़त से सफर कट जाए, कोई गारंटी नहीं है। लगता है किसी को पॉक्सो एक्ट, उम्र कैद, फांसी, जेल, बदनामी किसी चीज का डर नहीं है।
डराने वाले हालात हैं और डरना जरूरी भी है। किसी सरकार, पार्टी, समुदाय को मत कोसिये। महिलाओं को निशाना बनाने में सबमें पूर्ण भाईचारा पूरा लोकतंत्र है, कोई किसी से कम नहीं है।
हम ऐसे हैं ही, इसमें शायद की भी गुंजाइश नहीं है। "बेटी बचाओ" को बस एक नारा बना कर रख दिया है हमने। ऑनर किलिंग, दहेज हत्या क्या कोई आज की बात है? दशकों से इनकी खबरें पढ़ते आये हैं। लेकिन इन्हें रोक नहीं पाए। क्या आपको पता है कि 1 जनवरी से 31 दिसंबर 2021 के बीच भारत में पुलिस द्वारा दर्ज किए गए 60 लाख अपराधों में से 4,28,278 मामले महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़े थे। यह छह वर्षों में 26.35 फीसदी की वृद्धि है। 2016 में 3,38,954 मामले दर्ज हुए थे। 2021 में अधिकांश मामले अपहरण और अपहरण, बलात्कार, घरेलू हिंसा, दहेज हत्या और हमले के थे। इसके अलावा, 107 महिलाओं पर एसिड से हमला किया गया, 1,580 महिलाओं की तस्करी की गई, 15 लड़कियों को बेच दिया गया और 2,668 महिलाएं साइबर अपराध का शिकार हुईं। उसी साल पुलिस ने रेप के 31,878 केस दर्ज किए ये संख्या 2020 में दर्ज 28,153 केसों।की तुलना में भारी वृद्धि दर्शाती है। लेकिन 2016 में रेप के 39,068 मामले दर्ज किए गए थे, यानी कमी तो आई है! फिर भी हर साल रेप के हजारों केस दर्ज होने से भारत को "विश्व की बलात्कार राजधानी" नाम धर दिया गया है।
आज मणिपुर को लेकर हल्ला है। ऐसा ही हल्ला कभी दिल्ली के निर्भया कांड को लेकर हुआ था। 15 दिसंबर, 2012 का वाकया था। 11 साल बीत चुके हैं। 21 मार्च, 2013 कल बलात्कार संबंधी कानून संशोधित किये गए।क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट 2013 लाया गया और रेप के लिए मौत की सज़ा का प्रावधान किया गया। लेकिन असर क्या हुआ? 2023 में मणिपुर, राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, बंगाल... सब आपके सामने हैं। किस किस को रोइये, किस किस को कोसिये। 15 जुलाई,2004 की मणिपुर की राजधानी इम्फाल की एक घटना शायद ही किसी को याद हो। याद दिला दें कि मणिपुर की महिलाओं के संगठन "मीरा पैबी" की 12 सदस्यों ने असम राइफल्स के मुख्यालय के गेट के सामने निवस्त्र हो कर प्रदर्शन किया था। उसकी अब क्या ही बात करें। खैर, महिला सुरक्षा, महिला अस्मिता, बेटी बचाओ, नारी शक्ति जैसे तमाम शब्द गढ़े गए हैं और आगे भी गढ़े जाएंगे। मणिपुर तो एक आईना है पूरे समाज का।
मणिपुर जैसे मातृसत्तात्मक समाज का यह हाल है तो खापों वालों की क्या कहा जाए। कभी फुरसत में हों तो सोचिएगा जरूर। क्योंकि आप भी इसी समाज का हिस्सा हैं।द्वापर में द्रोपदी का अपमान हुआ। उसका दंड केवल दुस्सासन ने नहीं भोगा।बल्कि कर्ण, भीष्म, कृपाचार्य व द्रोणाचार्य को भी भुगतना पड़ा। कौरवों की अठारह अक्षीणी सेना मारी गई। दुर्योधन तो सबसे बाद में मरा। इसी तरह त्रेता युग में रावण ने माँ सीता के सम्मान के साथ खिलवाड़ किया। सोने की लंका जल गई। पुलस्ति वंश का सर्वनाश हो गया। मेघनाथ, अतिकाय, अक्षय कुमार, कुंभकर्ण, अहिरावण को भी मरना पड़ा। रावण तो सबसे बाद में मारा गया। मणिपुर में व कलकत्ता में महिलाओं के साथ जो हुआ। उसका दंड हम सब को सबसे पहले भोगना पड़ेगा। पाप को मौन रुप से देखने वाले लोग सबसे पहले दंड के शिकार होंगे।यह इतिहास बताता है। इतिहास खुद को दोहराता भी है। यह हम सब को नहीं भूलना चाहिए ।