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Mulayam Singh Yadav Birth Anniversary: अकेले दम पर बदल दी सियासत

Mulayam Singh Yadav Birth Anniversary: समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह की आज जयंती पर पूरा देश उन्हें यादव कर रहा है। हाल ही में उनका लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 11 Oct 2022 9:40 PM IST (Updated on: 22 Nov 2022 10:22 AM IST)
Interesting facts about Mulayam Singh Yadav
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Interesting facts about Mulayam Singh Yadav (Social Media)

Mulayam Singh Yadav Birth Anniversary: मुलायम सिंह यादव की आज जयंती है। इस मौके पर समाजवादी पार्टी ने विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया है। इसी के साथ मुलायम सिंह यादव द्वारा शुरू किये गए समाजवादी आंदोलन को भी नये सिरे से धार दिये जाने की तैयारी है। इसी के साथ मुलायम सिंह के निधन के बाद घिरे शोक के बादल छंटने की शुरुआत हो रही है। क्योंकि "आया है, सो जायेगा। राजा, रंक फ़क़ीर।" यह तो दुनिया का दस्तूर है। यह दस्तूर सब जानते समझते हैं। फिर भी जो चला जाता है, वह बहुत सी टीस दे जाता हैं। मुलायम सिंह यादव ऐसे ही लोगों में शुमार हैं। क्योंकि जो भी उनसे कभी मिला, कुछ न कुछ लिये बिना नहीं लौटा। उन्होंने देते समय कभी इस बात का ख़्याल नहीं रखा कि उनकी अपनी झोली में क्या व कितना है?

उन्होंने देश में तब ओबीसी राजनीति शुरू की जब अगड़ों की सियासत का दौर था। बाद में सभी राजनीतिक दल सोशल इंजीनियरिंग या किसी अन्य मार्फ़त लौट कर ओबीसी सियासत के इर्द गिर्द आकर जुट गये।

Mulayam Singh Yadav (Image : Ashutosh Tripathi, Newstrack)

कोई स्थाई दुश्मन नहीं

फ़र्श से अर्श तक की अपनी जीवन यात्रा में मुलायम सिंह ने इस कहावत के आधे हिस्से का बहुत ईमानदारी से निर्वाह किया, जिसमें कहा जाता है कि राजनीति में स्थाई शत्रु व स्थाई मित्र नहीं होते। मुलायम सिंह ने मित्र तो स्थाई बनाये पर शत्रु स्थाई नहीं रहे। तभी तो अखिलेश के काल में वह चौबीस साल बाद मायावती के साथ खड़े होने में नहीं हिचके।


यह भूल बैठे कि मुख्यमंत्री रहते हुए भी कांशीराम ने मिलने के लिए चार घंटे इंतज़ार करवाया था। कल्याण सिंह के साथ पारी खेलने में भी उनने कोई गुरेज़ नहीं किया। सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनने नहीं दिया। यह ज़िक्र लालकृष्ण आडवाणी जी ने अपनी किताब में किया है। पर उत्तर प्रदेश में जब अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा तो मुलायम ने कोई विरोध नहीं किया।

Mulayam Singh Yadav (Image : Ashutosh Tripathi, Newstrack)

कांग्रेस के चिर शत्रु

मुलायम सिंह को लोग भाजपा का चिर शत्रु समझते थे। पर हक़ीक़त यह थी कि मुलायम कांग्रेस के चिर शत्रु थे। इसका एक कारण यह भी था कि आज़ादी के बाद से ही यादव कांग्रेस के खिलाफ वोट देने वाला तबका था। दूसरे, जब मुलायम सिंह को राजीव गांधी से उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार के लिए समर्थन लेना था तब नारायण दत्त तिवारी नहीं मदद किये होते तो समर्थन नहीं मिलता।


सोनिया गांधी से एक मुलाक़ात के समय मुलायम सिंह को महज़ इसलिए दिकक्त हुई क्योंकि वह अमर सिंह के साथ गये थे।

सही जगह और सही आदमी

मुलायम सिंह को यह पता था कि अपनी राजनीतिक सफलता के लिए किस आदमी और किस जगह से क्या क्या जुटाना है। मुलायम सिंह ने चौधरी चरण सिंह का उत्तराधिकार अजित सिंह से झपट लिया। मुलायम सिंह, चंद्रशेखर के साथ रहते थे पर प्रधानमंत्री चुनने में वह विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ चले गये। हालाँकि बाद में चंद्रशेखर के पास लौट आये। मुलायम वामपंथियों के साथ जुगल बंदी करके राजनीति करते थे पर उत्तर प्रदेश से वामपंथ का सफ़ाया कर दिया। जब वामपंथियों ने राष्ट्रपति पद के लिए ए पी जे अब्दुल कलाम के सामने लक्ष्मी सहगल को खड़ा किया तो नेता जी कलाम के साथ चल गये। परमाणु करार के समय मनमोहन सरकार के सामने अल्पमत का संकट आया तो मुलायम सिंह ने अपना संमर्थन देकर सरकर बचाई। कुश्ती के दांव पेंच की वजह से मुलायम सिंह राजनीति के अखाड़े में भी उतने ही सफल रहे जितने पहलवानी में । वह भी तब जब उनकी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं थी।

Mulayam Singh Yadav (Image : Ashutosh Tripathi, Newstrack)

जमीन पर उतारा समाजवाद

डॉ राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण, नरेंद्र देव आदि नेताओं ने भले ही समाजवाद को सिद्धान्त के रूप में खड़ा किया हो पर मुलायम सिंह की ही क़ाबिलियत थी कि उनने इसे ज़मीन पर उतारा। व्यवहार में परिवर्तित किया। उत्तर प्रदेश के लोगों को समाजवादी सरकार के लाभ जीने का अवसर दिया। वह दवाई, पढ़ाई व सिंचाई के सवाल को लेकर बहुत संजीदा रहते थे। वह चाहते थे कि यह चीजें सभी लोगों को मुफ़्त मिलें। मुलायम सिंह रिश्तों के न केवल धनी थे, बल्कि किसी ने उनके साथ दो कदम दूरी तय की हो तो नेता जी उसे ताउम्र निभाते थे।

समाजवादी पार्टी के गठन के समय की एक घटना वह सुनाते थे। वह कहते थे कि उनका कोई भी साथी नहीं चाहता था कि अलग पार्टी बने। केवल आज़म खां मुलायम सिंह के पक्ष में थे। यही वजह रही कि मुलायम सिंह, आज़म के हर नखरे उठाते रहे। जनेश्वर मिश्र ने पार्टी बनाने का विरोध तो किया था पर मुलायम सिंह जब बेगम हजरत महल पार्क में बने मंच पर पहुँचे तो वो पहले से ही मंच पर बैठे मिले।

मुलायम सिंह ने यादव बिरादरी को सामाजिक व आर्थिक रूप से इतनी मजबूती दी कि आज उत्तर प्रदेश के किसी इलाक़े में कोई फ़ंक्शन कोई भी करे और सेलिब्रिटी मेहमानों की लिस्ट बनाये तो चाहे अनचाहे दो - तीन - चार यादव उस सूची का हिस्सा ज़रूर होंगे।

Mulayam Singh Yadav (Image : Ashutosh Tripathi, Newstrack)

देवीलाल व रामाराव

मुलायम सिंह को चुनाव में सबसे पहले किसी ने आर्थिक मदद दी थी तो वह थे- चौधरी देवी लाल। मुलायम सिंह समय को लेकर एक बहुत रोचक क़िस्सा सुनाते थे। क़िस्सा एन टी रामाराव से जुड़ा था। तब एन टी रामाराव विपक्षी राजनीति के धुरी थे। मुलायम सिंह जी को उनसे कुछ राजनीतिक चर्चा करनी थी। रामाराव जी ने पाँच बजे का समय दिया। मुलायम सिंह ह जी उन दिनों यूपी भवन में रूका करते थे। सुबह के साढ़े चार बजे यूपी भवन के रिसेप्शन से मुलायम सिंह जी के कमरे में फ़ोन आया। फ़ोन आंध्र प्रदेश भवन से आया था।


फ़ोन पर मुलायम जी को बताया गया कि आप पहुँचो नहीं। आपका पाँच बजे को अप्वाइटमेंट है। मुलायम सिंह जी के होश फ़ाख्ता हो गये। वह तो सायं पाँच बजे का समय समझ रहे थे। पर वह तेज़ी से उठे। केवल कपड़े बदले। और आंध्र प्रदेश भवन पहुँच गये। वहाँ देखा एन टी रामा राव जी मेकअप करके डाइनिंग टेबुल पर तैयार बैठे हैं। मुलायम सिंह जी के मुताबिक़ मैंने दातुन नहीं किया था, फ़्रेश नहीं हुआ था। पर यदि यह सब मैं बताता तो समय निकल जाता। मुलायम सिंह बग़ल के टॉयलेट में गये। मुँह धुला। नाश्ते पर बैठ गये। एन टी रामाराव जी से बात हो पाई।

फैसलों के नेताजी

मुलायम सिंह नहीं रहे पर उनके फ़ैसलों की छाप भारतीय राजनीति व समाज में लंबे समय तक रहेगी। मुलायम सिंह ने 1990 में अयोध्या में कार सेवकों पर गोली चलवाई जिसमें एक दर्जन से ज़्यादा कारसेवक मारे गये। वह "मुल्ला मुलायम" हो गये। पर उसी समय से देश की राजनीति में हिंदूवादी शक्तियों का आविर्भाव का काल शुरू हुआ जो आज नरेंद्र मोदी के काल तक जा पहुँचा है। मुलायम सिंह अपने कई बयानों को लेकर विवाद का हिस्सा भी बने। लेकिन उन्होंने जो कहा उस पर टिके रहे। वह पक्ष के पहाड़ थे। जिसके साथ खड़े रहे, डिगे नहीं। 2012 में 226 सीटें जीत कर उन्होंने अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बना कर समाजवाद को लंबी व नई उम्र दी।


मुलायम अपने पीछे समाजवादी और जमीनी राजनीति की विरासत छोड़ गए हैं जिसे हमेशा याद किया जाएगा और संदर्भित किया जाएगा। मुलायम उस पीढ़ी और उस युग के बचे खुचे नेताओं में से थे जो "नेताजी" होते हुये भी आम आदमी थे।

नायक, नेताजी, धरती पुत्र राजनीतिक के कुशल खिलाड़ी या मेरे अग्रज क्या कहूं...हम सब के नेताजी मुलायम सिंह यादव नहीं रहे....मेरी पीड़ा को शब्द नहीं मिल रहे। निःशब्द हूं, स्तब्ध हूं। ईश्वर उन्हें अपने चरणों में जगह दें हम सबको सहने की शक्ति दें।

(लेखक पत्रकार हैं ।)



Bishwajeet Kumar

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