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Mulayam Singh Yadav: सैफई वालों को सभी दांव आते हैं, तभी तो मुलायम ने पास की हर अग्नि परीक्षा

Mulayam Singh Yadav Saifai: आज सैफई को मुलायम सिंह (mulayam singh yadav saifai house) के गाँव के तौर पर जाना जाता है। पर शिकोहाबाद का रिटोली उनका मूल गाँव है।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh MishraPublished By Praveen Singh
Published on: 16 May 2022 11:45 AM GMT
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Mulayam Singh Yadav Saifai: कहा जाता है- "होनहार बिरवान के होत चिकने पात।" यह बात मुलायम सिंह यादव पर पूरी तरह खरी नज़र आती है। आज भले ही लोगों को लगता हो कि उन्होंने तीन बार मुख्यमंत्री बनने, बेटे को बड़ी चतुराई से सत्ता हस्तांतरण करने और बड़ों बड़ों को धोबिया पाट मारने में बड़े बड़े जुगत किये। वह भी तब जब सर्वविदित है कि सैफ़ई वालों को धोबिया पाट ही नहीं सभी दांव आते हैं। आज सैफई को मुलायम सिंह (mulayam singh yadav saifai house) के गाँव के तौर पर जाना जाता है। पर शिकोहाबाद का रिटोली उनका मूल गाँव है।हक़ीक़त है कि छुटपन से ही मुलायम के न केवल सपने बड़े थे। बल्कि इन सपनों को पूरा करने के लिए ज़रूरी गुण धर्म भी उनमें थे।

करहल के जैन इंटर कॉलेज में मुलायम सिंह (Mulayam Singh Yadav Education) पढ़ा करते थे। इस कालेज के मैनेजर थे- महेंद्र कुमार जैन।नेता जी इनके घर में रहकर ही पढ़ा करते थे। एक दिन जैन साहब की तिजोरी गलती से खुली रह गयी, वह खुली तिजोरी छोड़ कर बाहर अपने काम काज से चले गये। मुलायम सिंह जी को इनके जाने के बाद पढ़ने विद्यालय जाना था। मुलायम सिंह ने जब देखा कि जैन साहब की तिजोरी खुली रह गयी है, तब उनने विद्यालय जाने का कार्यक्रम निरस्त कर दिया।जिस कमरे में खुली तिजोरी रखी थी, मुलायम सिंह उसके दरवाज़े पर ही पहरेदारी करने के लिए जा डटे।


जैन साहब जब लौट कर घर वापस आये तो मुलायम सिंह को घर में देख बहुत नाराज़ हुए। स्कूल न जाने के लिए मुलायम सिंह यादव की डाँट डपट होने लगी। पर बाद में जब उन्होंने बताया कि तिजोरी खुली छूट जाने की वजह से वह पढ़ने नहीं गये तब जाकर जैन साहब का ग़ुस्सा शांत हुआ।

मुलायम सिंह (mulayam singh yadav family tree) के मामा के गाँव के पास का एक व्यक्ति बलवंत ने एक बार चोरी कर ली।उसने एक पंडित जी का दो हज़ार रूपये चुरा लिया। पंडित जी ने मुलायम सिंह से शिकायत की। मुलायम सिंह के कुछ लोग बलवंत की पैरवी कर रहे थे। मुलायम सिंह असमंजस में थे। बलवंत को पुलिस उठा ले गयी थी। मुलायम सिंह पुलिस कप्तान के पास गये। सब बात उन्होंने सही सही कप्तान को बताया। कहा कि बलवंत को छोड़ दें। पुलिस कप्तान ने मुलायम सिंह की बात मानकर बलवंत को छोड़ दिया। बलवंत ने मुलायम सिंह के सामने क़ुबूल किया कि पैसा चुराया हूँ। खाया पिया। पूजा पाठ कराया । सबको भोजन ज़िमाया। मुलायम सिंह जी बताते हैं कि "पंडित जी को हमने एक काम दिया । जिसमें उनका छह हज़ार रूपये बचा। इस तरह दोनों का भला हो गया।"


जसंवतनगर से नत्थू सिंह जी विधायक थे। उन्हें पता चला कि मुलायम सिंह यादव बीए पास कर चुके हैं। राजनीति में उनकी रुचि है। तभी नत्थू सिंह ने कहा कि अब उनकी जगह मुलायम सिंह विधायक का चुनाव लड़ेंगे। क्योंकि मैं कम पढ़ा लिखा हूँ। मैं मुलायम सिंह के लिए अपनी सीट छोड़ता हूँ। नत्थू सिंह जी को मुलायम सिंह यादव अपना गुरू बताते हैं। नत्थू सिंह के बेटे को मुलायम सिंह ने कई बार विधान परिषद भेजा। नत्थू सिंह जसवंतनगर छोड़ कर चुनाव लड़ने करहल चले गये। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक़ 1977 में जब मुलायम सिंह जी मंत्री बने तब बंद कमरे में नत्थू सिंह जी क़रीब पंद्रह मिनट तक खूब नाचे। नत्थू सिंह के बहनोई थे- ज़िलेदार सिंह। जिलेदार सिंह सिंचाई में काम करते थे।उन्होंने शिवपाल सिंह यादव से पंगा लिया। शिवपाल ने जिलेदार सिंह को पटक दिया। नत्थू सिंह ने शिवपाल सिंह को एक हज़ार रूपये का इनाम दिया। नत्थू सिंह जी बी ब्लाक के 68 नंबर कमरे में रहते थे। कोई उनसे उनका पता पूछता था तब वह बताते थे," दो कम सत्तर मकान नंबर है।" नत्थू सिंह लंबे, गोरे और बेहद आकर्षक थे।

मुलायम सिंह नेता भले क्षेत्रीय रहे पर क़द हमेशा राष्ट्रीय रहा। डॉ राम मनोहर लोहिया (ram manohar lohia and mulayam singh yadav) की तरह ही। जबकि चरण सिंह केवल हिंदी बेल्ट के नेता थे। 1942 से 1967 तक लोहिया का स्वर्ण काल रहा। 4 नवंबर,1992 को मुलायम सिंह ने पार्टी बनायी। कहा जाता है कि सोशलिस्ट हमेशा टूट जाते हैं। पर मुलायम के नेतृत्व में कभी टूटे नहीं। 1992 के बाद लोहिया को नये संदर्भों में लाने वाले मुलायम सिंह यादव हैं। मुलायम के बारे में कहा जाता है कि वह बहादुर हैं। संकल्प के धनी हैं, फ़ैसले एक सेकेंड में करते हैं। साथ निभाते हैं। डिसाइसिव हैं। मुलायम एक्शनिस्ट हैं। ये बातें उन्हें बड़ा नेता बनाती हैं।


हालाँकि मुलायम सिंह यादव का मंत्री बनने का सफ़र भी कम परेशानी भरा नहीं रहा। मुलायम सिंह से जुड़े ख़ास सूत्र बताते हैं कि चरण सिंह को लोगों ने उनके बारे में एक किताब दी। जिसमें मुलायम सिंह के बारे में काफ़ी ख़राब बातें लिखी थीं। लेकिन तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि," दस ईमानदार, चरित्रवान लोगों की लिस्ट बने तो उसमें मुलायम सिंह ज़रूर होंगे।" चरण सिंह मुलायम में संभावनाएँ देखते थे। जबकि राज नारायण को राजनीति में मुलायम सिंह फूटी आँख नहीं सुहाते थे।

मुलायम सिंह के मुख्यमंत्री बनने की कहानी भी कम रोचक नहीं है।


इस कहानी में पत्रकार के. विक्रम राव का रोल कम नहीं हैं। जब मुलायम सिंह यादव व अजित सिंह के बीच मुख्यमंत्री बनने का निर्णायक समय आया तो गुजरात के चिमन भाई पटेल पर्यवेक्षक बन कर आये थे। के. विक्रम राव गुजरात में लंबे समय तक पत्रकारिता कर चुके थे। डायनामाइट कांड में इमेरजेंसी में जार्ज फ़र्नाडिस के साथ गुजरात के जेल में ही बंद थे। लिहाज़ा गुजरात के नेताओं के लिए वह परिचय के मोहताज नहीं थे।

घनशयाम ओझा ने चिमन भाई पटेल को हराया था। के. विक्रम राव ने चिमन भाई पटेल से अकेले मिलकर लखनऊ रेलवे स्टेशन पर कहा कि मुलायम सिंह जी मेजारिटी में हैं। मुलायम सिंह जी के चरण सिंह से रिश्ते ठीक थे। राजनारायण से दूरी आयी तो चरण सिंह के साथ चले गये। मुलायम सिंह को राज नारायण कहा करते थे कि तुम चंबल में डाकुओं को प्रश्रय देते हो। मुलायम सिंह को राजनारायण मंत्री भी बनाना नहीं चाहते थे। जब राम नरेश यादव के मंत्रिमंडल में मुलायम सिंह मंत्री बने तो राजनारायण ने पूछा कि कैसे बने ? तब राम नरेश यादव ने कहा कि चौधरी चरण सिंह का बहुत प्रेशर था। उस समय सत्य प्रकाश मालवीय का नाम भी मुख्यमंत्री की रेस में आया था। राजनारायण की चलती तो मुलायम सिंह को ख़त्म कर देते। राम नरेश यादव के बाद अजित सिंह का नाम मुख्यमंत्री के लिए चला तो कहा गया कि वह तो लखनऊ की सड़कों को ही नहीं जानते हैं। चुनाव हुआ मुलायम सिंह बाइस वोट से जीत गये।

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