TRENDING TAGS :
करीम लाला : ये 15 बातें जो बयां करेंगी मुंबई के 'पहले डॉन' की कहानी
आज जब मुंबई और माफिया का नाम हमारे सामने आता है, तो सबसे पहले दाऊद इब्राहिम ही याद आता है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जब माफिया ने मुंबई पर राज जमाना शुरू किया था। उस समय तो दाऊद बच्चों में गिना जाता था। जानना नहीं चाहेंगे कौन था, वो जिसने मुंबई में बोये थे डर, आतंक और मौत के बीज?
मुंबई : आज जब मुंबई और माफिया का नाम हमारे सामने आता है, तो सबसे पहले दाऊद इब्राहिम ही याद आता है। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जब माफिया ने मुंबई पर राज जमाना शुरू किया था। उस समय तो दाऊद बच्चों में गिना जाता था। जानना नहीं चाहेंगे कौन था, वो जिसने मुंबई में बोये थे डर, आतंक और मौत के बीज?
ये भी देखें : छोटा राजन ने अपनी दुश्मनी को बना दिया धर्मयुद्ध, 24 पॉइंट में जानिए डॉन का सफर
- आज का मुंबई 30 के दशक में बम्बई हुआ करता था, जैसे आज मुंबई जाने का सपना आखों में पलता है। वैसा ही उस दौर में भी हुआ करता था। अफगानिस्तान से एक युवक आया था बम्बई। जिसकी आखों में था बड़ा आदमी बनने का सपना। नाम था अब्दुल करीम शेर खान। कोई नहीं जानता था कि एक दिन उसके नाम का सिक्का शहर में चलेगा, हर खासोआम उसे सलाम करने उसके घर जाएगा।
- अब्दुल करीम शेर खान आगे चल कर करीम लाला बन बैठा था। तस्करी, सुपारी किलिंग, कब्जा ये सारे काम करीम के इशारे पर होते थे। इस समय तक बम्बई में काफी बड़ी संख्या में अफगानी बस्तियां बस चुकी थी। जहां करीम के चाहने वाले उसके लिए जान लेने और देने वाले रहते थे। लाला उनके लिए मसीहा था।
- करीम का जन्म 1911 में अफगानिस्तान के कुनार सूबे में हुआ था। ज्यादा कामयाबी हासिल करने की चाह उसे बम्बई खीँच लाई थी। यहां लाला ने दक्षिण बम्बई में ग्राण्ट रोड स्टेशन के पास वाली बायदा गली में एक मकान किराए पर ले, उसमें जुए का एक अड्डा खोला और नाम दिया सोशल क्लब।
- क्लब में आने वालों को उधार भी मिलता था। फिर क्या था कम समय में ही सोशल क्लब बम्बई का नामी क्लब बन गया। इस जुआघर में उस समय के नामी मवाली बैठे, और उन्होंने करीम को अपना बॉस बना लिया। पैसे लेकर मारपीट, झगडे निपटने से शुरू हुआ सफ़र सुपारी किलिंग और तस्करी तक जा पहुंचा था। और इस तरह सामने आया बम्बई का पहला माफिया डॉन। कहा जाता है, कि पुलिसवाले भी करीम से दूर रहते थे।
- बम्बई डॉक पर करीम का राज चलता था। उस समय उनके बिना चाहे कोई भी जहाज न तो वहां से निकल सकता और न ही आ सकता था। करीम के फंटर पहले कंटेनर से अपने हीरे और जवाहरात निकालते उसके बाद ही वहां कोई और काम होता था।
- 40 के दशक में करीम लाला किंग बन चुका था। इसके बाद उसने बम्बई में कई शराबखाने और जुए के अड्डे खोले। इसके बाद लाला का रहन सहन बदल गया। पठानी सूट पहनने वाला लाला अब सफेद सफारी सूट पहनने लगा था। उसके हाथ में एक छड़ी रहती, जो कि असल में एक गुप्ती थी जिसने न जाने कितनों का खून बहाया होगा।
- करीम अफगानी समुदाय के लिए गॉडफादर बन गया था। वो रोज दरबार लगाता, जिसमें वो लोगों की बात सुनता और उन्हें वहीं सुलझा देता।
- एक रोचक बात भी है, जो लाला को अलग इंसान के तौर पर खड़ा करती है। जब कोई उसके पास तीन तलाक या तलाक का मुद्दा लेकर आता तो। वो कहा करता था कि मैं मिलुंगा लेकिन अलग नहीं करुंगा। लाला समझाता था कि तलाक समस्या का हल नहीं होता।
- करीम के साथ ही बम्बई में हाजी मस्तान का भी उदय हुआ था, लेकिन मस्तान क्रूर नहीं था। उसके पास दिमाग था और वो बेवजह खून बहाना पसंद नहीं करता था। इन दोनों के साथ ही तमिल डॉन वरदाराजन मुदलियार उर्फ वरदा भाई भी बम्बई के कुछ हिस्से पर काबिज था।
- तीनों के बीच धंधे को लेकर कुछ कहासुनी हुई। लेकिन बाद में तीनों ने हाथ मिला लिया और बम्बई को आपस में बांट लिया। तीनों में समझौता था कि कोई भी एक-दूसरे के साथ कभी झगड़ा नहीं करेगा। कुछ समय बाद दाऊद ने हाजी मस्तान के साथ काम शुरू किया और उसने करीम लाला के इलाके में सेंध लगानी शुरू कर दी। लेकिन मौत के डर की वजह से वो कभी लाला के सामने नहीं आता था।
- जब लाला को इस बात का पता चला तो उसने दाऊद को सरेआम पीटा। लेकिन मस्तान से दोस्ती के कारण उसे जान से नहीं मारा। इसके बाद भी दाऊद अपनी हरकतों से बाज नहीं आया और करीम के इलाकों में धंधा करता रहा।
- एक दिन करीम के आदमियों ने दाऊद और उसके भाई शब्बीर को घेर लिया। दाऊद बचकर भाग गया, जबकि शब्बीर इस गैंगवार में मारा गया।
- 80 के दशक में लाला बीमार रहने लगा था।दाऊद मजबूत हो चुका था। 81 से 85 के बीच करीम और दाऊद के बीच दिनदहाड़े खूनी खेल शुरू हो गया। बम्बई जलने लगी थी।
- पुलिस परेशान थी लेकिन उसके हाथ कुछ नहीं लग रहा था। दाऊद अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिए करीम के गैंग का चुन-चुन कर सफाया कर रहा था। 1986 में दाऊद के फंटरों ने करीम के भाई रहीम की हत्या कर दी।
- 90 साल की उम्र में 19 फरवरी 2002 को मुंबई में करीम लाला की मौत हुई। लेकिन यहां एक राज अभी भी नहीं खुला कि दाऊद ने लाला की जान क्यों नहीं ली। जबकि उसने लाला के सभी करीबियों को मौत के घाट उतार दिया था।
Next Story