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Munawwar Rana Death: ग़ज़ल को महबूबा के दामन से मां के आंचल में लाने वाला शायर
Munawwar Rana Death: मुनव्वर राना एक ऐसे शायर जिन्होंने ग़ज़ल को महबूबा के दामन से निकाल कर मां के आंचल में रख दिया । दुनिया में वह पहले शायर रहे जिन्होंने मां पर ग़ज़ल की एक पूरी किताब लिखी ।
Munawwar Rana Death: बीते कुछ वर्षों से वह बिगड़े स्वास्थ्य के कारण मुशायरों की महफिलों से दूर थे लेकिन चर्चा में लगातार थे । बीते कुछ समय से वह अपनी शायरी से अधिक अपने बयानों और पारिवारिक विवादों के कारण चर्चा में रहे थे । लेकिन इस मुखर, संवेदनशील और ख़ूबसूरत ग़ज़लों के शायर का आकलन इन बातों से कहीं ऊपर है । बात हो रही है प्रसिद्ध शायर मुनव्वर राना की, जो अब हमारे बीच नहीं हैं । दरअसल किसी भी लेखक का आकलन उसके लेखन और लेखन से इतर उसकी निजी जिंदगी, व्यवहार व व्यक्तित्व के आधार पर होता है । हालांकि बेहतर तो यही है कि लेखक का आकलन सिर्फ उसके कृतित्व के आधार पर ही हो, लेकिन ऐसा होता नहीं है ।
मां पर शायरी की किताब लिखने वाले पहले शायर
मुनव्वर राना एक ऐसे शायर जिन्होंने ग़ज़ल को महबूबा के दामन से निकाल कर मां के आंचल में रख दिया । दुनिया में वह पहले शायर रहे जिन्होंने मां पर ग़ज़ल की एक पूरी किताब लिखी । उनसे पहले भी मां पर शायरी हुई लेकिन वह इक्का दुक्का ग़ज़ल तक ही सीमित थी । राना साहब ने कई बेमिसाल ग़ज़लें मां पर लिखीं । उन्होंने न सिर्फ मां को शायरी में स्थापित किया बल्कि शायरी को भी मां का आंचल उढ़ाकर इज्ज़त बख्शी । उनके शेरों की बानगी देखिए-
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है,
मां बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है ।
दरअसल मुनव्वर राना साहब का अपनी मां से लगाव भी बहुत रहा । वह लिखते भी हैं कि-
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई,
मैं घऱ में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में मां आई ।
मुहाजिरों का दर्द उभार कर साहित्य में जगह बनाई
मुनव्वर राना की एक और चर्चित किताब है मुहाजिरनामा. पुस्तक में 1947 में भारत-पाकिस्तान के विभाजन के बाद वहां गए मुसलमानों को दिखाया गया है । इन लोगों को पाकिस्तान में मुहाजिर कहा गया । इनकी पीड़ा, अपना घर छोड़कर नए जगह में जाकर अपमानित होने को बहुत ही संवदनशील ढंग से पेश किय गया है । इस पुस्तक से ही मुनव्वर राना जी उर्दू साहित्य में स्थापित हुए थे । इसकी दो लाइनें देखिए-
मुहाजिर हैं मग़र हम एक दुनिया छोड़ आए हैं
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं ।
विवादों में रहे, साहित्य अकादमी वापस कर दिया था
राना साहब ने करीब 18 किताबें लिखीं । साहित्य में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें साल 2014 का साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया था, जिसे उन्होंने 2015 में वापस कर दिया था । साल 2014 के बाद उनके कई बयानों ने उन्हें विवादों में ला दिया था । उनकी गज़लों के मुरीद लोगों ने भी उनसे दूरियां बना ली थी । दरअसल एक लेखक जब राजनीतिक सिस्टम पर प्रतिक्रिया देता है तो उसे राजनीतिक आधार पर अपने विरोध के लिए भी तैयार रहना चाहिए । हालांकि राजनीति उन्हें कभी रास नहीं आई । उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार में उन्हें राज्य मंत्री दर्जा मिला था जिसे कुछ समय बाद उन्होंने छोड़ दिया था ।
दोस्तों के दोस्त थे
हालांकि शायरी की दुनिया में उनके जैसी लोकप्रियता कम ही शायरों को नसीब हुई है । कई साल पहले मैंने लखनऊ के एक हेयर कटिंग सैलून में राणा साहब के मां पर लिखे शेरों के मढ़े हुए पोस्टर लगे देखे थे । इसके साथ ही लखनऊ की महफिलों की तो वह जान थे । दोस्तों के दोस्त थे इसलिए कई बार अपने मित्रों के घरों पर महफिलों में आसानी से चले जाते थे । राना साहब का जीवन भी परंपरागत शायरों से कुछ अलग था । उनका ट्रांसपोर्ट का बड़ा कारोबार था । हालांकि उनके पिता के पास एक ही ट्रक था लेकिन उन्होंने इस कारोबार को काफी बड़ा कर दिया था । रायबरेली उनका घर था । आज हम कह सकते हैं कि शायरी की दुनिया ने तो अपना एक सितारा खोया ही है लखनऊ और रायबरेली ने भी अपना एक चाहने वाला खो दिया है ।