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Munawwar Rana Death: ग़ज़ल को महबूबा के दामन से मां के आंचल में लाने वाला शायर

Munawwar Rana Death: मुनव्वर राना एक ऐसे शायर जिन्होंने ग़ज़ल को महबूबा के दामन से निकाल कर मां के आंचल में रख दिया । दुनिया में वह पहले शायर रहे जिन्होंने मां पर ग़ज़ल की एक पूरी किताब लिखी ।

Raj Kumar Singh
Written By Raj Kumar Singh
Published on: 15 Jan 2024 4:44 AM GMT (Updated on: 15 Jan 2024 6:30 AM GMT)
Munawwar Rana
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Munawwar Rana  (photo: social media )

Munawwar Rana Death: बीते कुछ वर्षों से वह बिगड़े स्वास्थ्य के कारण मुशायरों की महफिलों से दूर थे लेकिन चर्चा में लगातार थे । बीते कुछ समय से वह अपनी शायरी से अधिक अपने बयानों और पारिवारिक विवादों के कारण चर्चा में रहे थे । लेकिन इस मुखर, संवेदनशील और ख़ूबसूरत ग़ज़लों के शायर का आकलन इन बातों से कहीं ऊपर है । बात हो रही है प्रसिद्ध शायर मुनव्वर राना की, जो अब हमारे बीच नहीं हैं । दरअसल किसी भी लेखक का आकलन उसके लेखन और लेखन से इतर उसकी निजी जिंदगी, व्यवहार व व्यक्तित्व के आधार पर होता है । हालांकि बेहतर तो यही है कि लेखक का आकलन सिर्फ उसके कृतित्व के आधार पर ही हो, लेकिन ऐसा होता नहीं है ।

मां पर शायरी की किताब लिखने वाले पहले शायर

मुनव्वर राना एक ऐसे शायर जिन्होंने ग़ज़ल को महबूबा के दामन से निकाल कर मां के आंचल में रख दिया । दुनिया में वह पहले शायर रहे जिन्होंने मां पर ग़ज़ल की एक पूरी किताब लिखी । उनसे पहले भी मां पर शायरी हुई लेकिन वह इक्का दुक्का ग़ज़ल तक ही सीमित थी । राना साहब ने कई बेमिसाल ग़ज़लें मां पर लिखीं । उन्होंने न सिर्फ मां को शायरी में स्थापित किया बल्कि शायरी को भी मां का आंचल उढ़ाकर इज्ज़त बख्शी । उनके शेरों की बानगी देखिए-

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है,

मां बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है ।

दरअसल मुनव्वर राना साहब का अपनी मां से लगाव भी बहुत रहा । वह लिखते भी हैं कि-

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई,

मैं घऱ में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में मां आई ।


मुहाजिरों का दर्द उभार कर साहित्य में जगह बनाई

मुनव्वर राना की एक और चर्चित किताब है मुहाजिरनामा. पुस्तक में 1947 में भारत-पाकिस्तान के विभाजन के बाद वहां गए मुसलमानों को दिखाया गया है । इन लोगों को पाकिस्तान में मुहाजिर कहा गया । इनकी पीड़ा, अपना घर छोड़कर नए जगह में जाकर अपमानित होने को बहुत ही संवदनशील ढंग से पेश किय गया है । इस पुस्तक से ही मुनव्वर राना जी उर्दू साहित्य में स्थापित हुए थे । इसकी दो लाइनें देखिए-

मुहाजिर हैं मग़र हम एक दुनिया छोड़ आए हैं

तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं ।


विवादों में रहे, साहित्य अकादमी वापस कर दिया था

राना साहब ने करीब 18 किताबें लिखीं । साहित्य में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें साल 2014 का साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया था, जिसे उन्होंने 2015 में वापस कर दिया था । साल 2014 के बाद उनके कई बयानों ने उन्हें विवादों में ला दिया था । उनकी गज़लों के मुरीद लोगों ने भी उनसे दूरियां बना ली थी । दरअसल एक लेखक जब राजनीतिक सिस्टम पर प्रतिक्रिया देता है तो उसे राजनीतिक आधार पर अपने विरोध के लिए भी तैयार रहना चाहिए । हालांकि राजनीति उन्हें कभी रास नहीं आई । उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार में उन्हें राज्य मंत्री दर्जा मिला था जिसे कुछ समय बाद उन्होंने छोड़ दिया था ।


दोस्तों के दोस्त थे

हालांकि शायरी की दुनिया में उनके जैसी लोकप्रियता कम ही शायरों को नसीब हुई है । कई साल पहले मैंने लखनऊ के एक हेयर कटिंग सैलून में राणा साहब के मां पर लिखे शेरों के मढ़े हुए पोस्टर लगे देखे थे । इसके साथ ही लखनऊ की महफिलों की तो वह जान थे । दोस्तों के दोस्त थे इसलिए कई बार अपने मित्रों के घरों पर महफिलों में आसानी से चले जाते थे । राना साहब का जीवन भी परंपरागत शायरों से कुछ अलग था । उनका ट्रांसपोर्ट का बड़ा कारोबार था । हालांकि उनके पिता के पास एक ही ट्रक था लेकिन उन्होंने इस कारोबार को काफी बड़ा कर दिया था । रायबरेली उनका घर था । आज हम कह सकते हैं कि शायरी की दुनिया ने तो अपना एक सितारा खोया ही है लखनऊ और रायबरेली ने भी अपना एक चाहने वाला खो दिया है ।

Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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