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Narco Test: क्या होता है नार्को टेस्ट, जिससे गुजरेगा आफताब पूनावाला

Narco Test: परीक्षण की अनुमति के लिए पुलिस द्वारा अदालत का रुख करने के बाद अफताब पूनावाला ने न्यायाधीश को यह कहते हुए सहमति दे दी कि उसे टेस्ट के बारे में पता है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 18 Nov 2022 11:57 AM IST
aaftab poonawala
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अफताब पूनावाला (photo: social media ) 

Narco Test: अपनी लिव-इन पार्टनर श्रद्धा की हत्या के आरोपी 28 वर्षीय आफताब पूनावाला का नार्को टेस्ट कराने की अनुमति दिल्ली की एक अदालत ने दे दी है। परीक्षण की अनुमति के लिए पुलिस द्वारा अदालत का रुख करने के बाद अफताब पूनावाला ने न्यायाधीश को यह कहते हुए सहमति दे दी कि उसे टेस्ट के बारे में पता है। जानते हैं कि नार्को टेस्ट आखिर होता क्या है?

नार्को टेस्ट

जिस व्यक्ति का 'नार्को' या 'नार्कोएनालिसिस टेस्ट' किया जाना होता है उसके शरीर में सोडियम पेंटोथल नामक दवा का इंजेक्शन लगाया जाता है। इस दवा के असर से व्यक्ति एक कृत्रिम निद्रावस्था या अर्ध बेहोसही की अवस्था में पहुँच जाता है जिसमें उनकी कल्पना शक्ति बेअसर हो जाती है। इस कृत्रिम निद्रावस्था में व्यक्ति को झूठ बोलने में असमर्थ समझा जाता है, और उम्मीद की जाती है कि वह सही जानकारी प्रकट करेगा। इस अवस्था में जांचकर्ता घुमाफिरा के कई तरह के सवालात पूछते हैं।

क्या है ये दवाई

सोडियम पेंटोथल या सोडियम थायोपेंटल एक तेजी से काम करने वाला कम अवधि का एनेस्थेटिक है, जिसका उपयोग सर्जरी के दौरान रोगियों को बेहोश करने के लिए बड़ी मात्रा में किया जाता है। यह दवाओं के बार्बीचुरेट केटेगरी (जिसके सेवन से नींद आती है अथवा शांति मिलती है) से संबंधित है जो सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम पर अवसादक (डिप्रेसेंट) के रूप में कार्य करता है। माना जाता है कि ये दवा झूठ बोलने के संकल्प को कमजोर करती है इसलिए इसे कभी-कभी "ट्रुथ सीरम" भी कहा जाता है। कहा जाता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान खुफिया एजेंटों द्वारा इसका इस्तेमाल किया गया था।

इस केटेगरी की दवाओं में इनमें इथेनॉल, स्कोपोलामाइन, 3-क्विनुक्लिडिनिल बेंजिलेट, मिडाज़ोलम, फ्लुनाइट्राज़ेपम, सोडियम थियोपेंटल और अमोबार्बिटल शामिल हैं।

वैसे, पश्चिमी कानूनी प्रणालियों और कानूनी विशेषज्ञों द्वारा इन दवाओं को जांच उपकरण के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है। इस दवा के आलोचक इसे मानवधिकारों का उल्लंघन या यातना का एक रूप मानते हैं। बहरहाल, "ट्रुथ सीरम" को सबसे पहले डॉ. विलियम जेफरसन ब्लेकवेन द्वारा इस्तेमाल किया गया था। विलियम जेफरसन एक अमेरिकी न्यूरोलॉजिस्ट, मनोचिकित्सक और सैन्य चिकित्सक थे। उन्होंने 'कैटाटोनिक म्यूटिज्म नामक मनोविकार पर रिसर्च के दौरान प्रयोग के तौर पर बार्बीचुरेट्स दवाओं का इस्तेमाल किया था और उत्साहजनक नतीजे हासिल किये थे।

क्या यह पॉलीग्राफ टेस्ट जैसा ही है?

नार्को टेस्ट और पॉलीग्राफ टेस्ट अलग अलग हैं और दोनों में कोई समानता नहीं है। पॉलीग्राफ टेस्ट इस कांसेप्ट पर आधारित होता है कि किसी व्यक्ति के झूठ बोलने पर होने वाली उसकी शारीरिक प्रतिक्रियाएं सामान्य अवस्था से भिन्न होती हैं। पॉलीग्राफ टेस्ट में शरीर में दवाओं का इंजेक्शन लगाना शामिल नहीं होता है; बल्कि कार्डियो-कफ या संवेदनशील इलेक्ट्रोड जैसे उपकरण शरीर से जोड़े जाते हैं। जब टेस्ट के अधीन व्यक्ति से सवाल जवाब होते हैं तो उस दौरान इन उपकरणों से उस व्यक्ति के ब्लडप्रेशर, नाड़ी की दर, सांस लेने की दर, पसीने की ग्रंथि गतिविधि में बदलाव, ब्लड फ्लो आदि को मापा जाता है। यह निष्कर्ष निकालने के लिए कि क्या व्यक्ति सच बोल रहा है, धोखा दे रहा है, या अनिश्चित है, प्रत्येक प्रतिक्रिया को एक संख्यात्मक मान दिया जाता है। इस तरह के एक परीक्षण के बारे में कहा जाता है कि यह पहली बार 19वीं शताब्दी में इतालवी अपराध विज्ञानी सेसारे लोम्ब्रोसो द्वारा किया गया था, जिन्होंने पूछताछ के दौरान आपराधिक संदिग्धों के रक्तचाप में बदलाव को मापने के लिए एक मशीन का इस्तेमाल किया था। हालांकि, पॉलीग्राफ टेस्ट हो या नार्को टेस्ट, कोई भी विधि वैज्ञानिक रूप से 100 फीसदी सफल सिद्ध नहीं हुई है, और चिकित्सा क्षेत्र में भी ये विवादास्पद बनी हुई है।

नार्को टेस्ट के परिणाम

नार्को टेस्ट के परिणामों को कबूलनामा नहीं माना जाता है क्योंकि नशीली दवाओं से प्रेरित स्थिति में व्यक्ति के पास उन सवालों के जवाब देने में कोई विकल्प नहीं होता है जो उनके सामने रखे गए हैं। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय की रूलिंग है कि इस तरह के स्वेच्छा से लिए गए टेस्ट की मदद से बाद में खोजी गई किसी भी जानकारी या सामग्री को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।

मिसाल के तौर पर, अगर नार्को टेस्ट के दौरान पूनावाला किसी भौतिक सबूत, जैसे कि ह्त्या के हथियार के स्थान का खुलासा करता है, और पुलिस को बाद उसी जगह में सबूत का वह विशिष्ट टुकड़ा मिल जाता है तो ऐसी स्थिति में अभियुक्त के बयान को साक्ष्य के रूप में नहीं माना जाएगा, बल्कि भौतिक साक्ष्य को ऐसा माना जाएगा।

अब तक हुए हैं कई नार्को टेस्ट

अब तक कर्र मामलों में पुलिस अदालत की अनुमति से अभियुक्तों का नार्को टेस्ट करा चुकी है या करने की अनुमति मांगी है।

- 2002 के गुजरात दंगों के मामले, अब्दुल करीम तेलगी फर्जी स्टांप पेपर घोटाला, 2007 में निठारी हत्याकांड और 26/11 के मुंबई आतंकी हमले के मामले में पकड़े गए आतंकवादी अजमल कसाब पर नार्को टेस्ट का सबसे विशेष रूप से उपयोग किया गया था।

- सीबीआई ने जुलाई 2019 में उत्तर प्रदेश में उन्नाव रेप पीड़िता को ले जा रहे वाहन को टक्कर मारने वाले ट्रक के ड्राइवर और हेल्पर के ये टेस्ट कराने की मांग की थी।

- मई 2017 में, इंद्राणी मुखर्जी ने खुद लाई डिटेक्टर टेस्ट कराने की पेशकश की थी। सीबीआई ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उनके पास पहले से ही उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं।

- नोएडा के आरुषि हत्याकांड में उसके माता-पिता डॉ. राजेश तलवार और डॉ. नूपुर तलवार का पॉलीग्राफ टेस्ट कराया गया। उनके कंपाउंडर कृष्णा के नार्को टेस्ट का एक वीडियो मीडिया में लीक भी हो गया था।

- अगस्त 2019 में सीबीआई पंजाब नेशनल बैंक के एक पूर्व मैनेजर गोकुलनाथ शेट्टी का पॉलीग्राफ और नार्कोएनालिसिस टेस्ट कराना चाहती थी। ये मैनेजर भगोड़े ज्वैलर्स नीरव मोदी और मेहुल चोकसी से जुड़े 7,000 करोड़ रुपये के कथित धोखाधड़ी मामले में हिरासत में था। गोकुलनाथ शेट्टी ने टेस्ट के लिए अपनी सहमति देने से इनकार कर दिया था।

- अक्टूबर 2020 में यूपी सरकार ने हाथरस में ठाकुर जाति के चार पुरुषों द्वारा 19 वर्षीय दलित महिला के कथित गैंगरेप और हत्या की जांच के तहत पॉलीग्राफ और नार्को टेस्ट कराने की मांग की थी लेकिन पीड़ित परिवार ने इनकार कर दिया।

कैसे होता है टेस्ट

फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी के अधिकारियों के मुताबिक, टेस्ट के दौरान पहले जांचकर्ता केस को लैबोरेटरी में जमा करता है और उन्हें ब्रीफ करता है। फिर लैब के मनोवैज्ञानिक की जांच अधिकारी (आईओ) के साथ एक मीटिंग होती है। विशेषज्ञ, उस व्यक्ति के साथ भी बात्चेत करते हैं जिसका टेस्ट होना है और उसे परीक्षण के बारे में अवगत कराया जाता है। केवल मनोवैज्ञानिक संतुष्ट हो जाते हैं कि संदिग्ध समझ गया है, तो उसकी चिकित्सकीय जांच की जाती है और टेस्ट प्रक्रिया शुरू होती है। टेस्ट के दौरान फोटोग्राफी करने वाली टीम को प्रयोगशाला से भी भेजा जाता है।



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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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