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.....मोदी सरकार में पिछड़ा वर्ग आरक्षण पर मंडरा रहा है खतरा ?
लखनऊ : मोस्ट बैकवर्ड क्लासेज एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. राम सुमिरन विश्वकर्मा ने कहा कि मोदी सरकार में पिछड़ा वर्ग आरक्षण पर खतरा मंडरा रहा है।
उन्होंने कहा कि देश में अनुसूचित जातियों को 15 प्रतिशत, अनुसूचित जनजातियों को 7.5 प्रतिशत तथा अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है। इसके बावजूद भी ओबीसी को केंद्रीय शिक्षण-प्रशिक्षण संस्थानों व केंद्रीय विश्वविद्यालयों में आरक्षण नहीं दिया गया है।
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विश्वकर्मा ने केंद्र व राज्य सरकारों से अन्य पिछड़ा वर्ग का कोटा पूरा करने के लिए बैकलॉग भर्ती शुरू करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि झूठा दिखावा कर मोदी सरकार पिछड़ों के साथ सामाजिक अन्याय कर रही है।
उन्होनंे मोदी सरकार से अनुसूचित जाति/जनजाति के साथ ओबीसी पदोन्नति में आरक्षण देने तथा 21 अप्रैल, 2017 के निर्णय को शिथिल करने के लिए उच्चतम न्यायालय की पूर्ण पीठ व संविधान पीठ के सामने सरकार का पक्ष रखकर 50 प्रतिशत के अंदर आरक्षित वर्ग को सीमित रखने के निर्णय में बदलाव कर कटऑफ मेरिट के आधार पर ओबीसी, अनुसूचित जाति/जनजाति को अनारिक्षत पदों में स्थान दिलाए जाने की मांग की है।
डॉ. विश्वकर्मा ने आरटीई के तहत मिले जवाब के आधार पर बताया, "केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 8852 प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर कार्यरत हैं, जिसमें सवर्ण 7771, ओबीसी 1081, अनुसूचित जाति 558 व अनुसूचित जनजाति के 268 हैं। देश के विश्वविद्यालयों में 90 प्रतिशत कुलपति सवर्ण, 6.9 प्रतिशत ओबीसी, 3.1 प्रतिशत अनुसूचित जाति के हैं और अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व शून्य हैं। प्रथम श्रेणी की नौकरियों में सामान्य वर्ग 76.8 प्रतिशत, ओबीसी 6.9 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति 4.8 प्रतिशत व अनुसूचित जाति 11.5 प्रतिशत हैं। देश में 8676 मठों के मठाधीशों -90 प्रतिशत ब्राह्मण, चार प्रतिशत ओबीसी, छह प्रतिशत अन्य सवर्ण हैं।"