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नोटबंदी ने आम बजट, 5 राज्यों के चुनाव, राष्ट्रपति चुनाव तक खींच दी हैं लकीरें
नई दिल्ली : मोदी सरकार ने संसद के शीतकालीन सत्र के बाद भले ही देश भर मे बैंकों में नोटों की पर्याप्त आपूर्ति का काम चुनौती के तौर पर लिया है, लेकिन केंद्र सरकार की अगली अग्नि परीक्षा बजट सत्र में होगी। राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी से जुड़े व्यक्तिगत भ्रष्टाचार को लोकसभा में पेश करने की धमकी को आगे बढ़ाकर बजट सत्र के लिए पिटारा खुला कर दिया है। कांग्रेस समेत बाकी क्षेत्रीय पार्टियों के तरकश के तीरों का प्रभाव अब इस बात पर निर्भर करेगा कि नए साल में 1 जनवरी से15 जनवरी तक बैंकों व एटीएम में नोटों की उपलब्धता को मोदी सरकार व रिजर्व बैंक कितना चाक-चौबंद कर पाने में सफल हो पाएगी।
बता दें कि मोदी सरकार ने इस बार सालाना बजट पेश करने की तारीख 1 फरवरी 2017 तय कर दी है जबकि अब तक फरवरी की 28-29 तारीख परंपरागत तौर पर बजट पेश किया जाता रहा है। नोटबंदी के बाद बजट के स्वरूप को लेकर देश के प्रमुख अर्थशास्त्रियों जिनमें मोदी सरकार की पैरोकारी करने इकनॉमिस्ट भी शामिल हैं, देश में भारी आर्थिक मन्दी आने व जीडीपी में गिरावट होने की चेतावनी दे चुके हैं। ठीक छह सप्ताह बाद मोदी सरकार का बजट कैसे मौजूदा आर्थिक मंदी के बीच देश को आगे बढ़ाने का रास्ता निकालेगा और कैसे रोजगार बढ़ाने मौद्रिक स्थिरता और निवेशकों का फिर से भरोसा जगा पाने में सफलता मिल पाएगी।
नोटबंदी पर पूरे सत्र में व्यवधान के बाद सरकार इसलिए आसानी से बच निकली है कि उसे संसद के जरिए देश को यह बताने की जुर्रत नहीं पड़ी कि इतना बड़ा फैसला लेने के पहले बैंकों में नोटों की आपूर्ति बनाने की दिशा में दूरदर्शिता व समझदारी से काम क्यों नहीं लिया गया। सरकार को राहुल गांधी की ओर से पीएम मोदी को घेरने की बात दो सप्ताह पहले पता लग चुकी थी इसलिए सत्ता पक्ष यानी भाजपा ने तय कर लिया था कि लोकसभा में किसी तरह डिबेट को रोका जाए और इस बहाने राहुल को पीएम मोदी के खिलाफ सबूत पेश करने से ऐनकेन प्रकारेण वंचित किया जाए। आखिर हुआ भी यही कि सत्ता पक्ष ने खुद ही विपक्ष की भूमिका निभाते हुए जो चाहा वह कर दिखाया।
यूपी, पंजाब व उत्तराखंड के चुनावों में नोटबंदी का तात्कालिक असर भाजपा व उसके सिपहसालारों को बेचैन कर रहा है। भाजपा सांसदों का एक बड़ा वर्ग एक-दो दिन तक ही नोटबंदी के समर्थन में दलीलें देते रहे लेकिन जब उन्हें अपने क्षेत्रों से जन प्रतिक्रियाओं के आक्रोश का फीडबैक मिला तो कई भाजपा सांसदों ने दबी जुबान से ही नोटबंदी को आत्मघाती कदम बताना आरंभ कर दिया। भाजपा को अगर यूपी-उत्तराखंड व पंजाब में सत्ता हासिल करने लायक जनसमर्थन हासिल नहीं हुआ तो मोदी सरकार के लिए राष्ट्रपति चुनावों का गणित इसलिए गड़बड़ा जाएगा क्योंकि ऐसी सूरत में यूपी जैसे बड़े राज्य में भाजपा विरोधी सरकार आने से एनडीए के बजाय विपक्ष का पलड़ा भारी हो जाएगा। अभी तक सिर्फ उपराष्ट्रपति पद के लिए ही एनडीए का पलड़ा भारी है क्योंकि इस पद के लिए लोकसभा व राज्यसभा के सांसदों को ही वोट का अधिकार होता है।