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NDA में आने के बाद भले नीतीश को फायदा न हो, लेकिन मोदी को मिलेगी संजीवनी

Rishi
Published on: 30 July 2017 2:31 PM IST
NDA में आने के बाद भले नीतीश को फायदा न हो, लेकिन मोदी को मिलेगी संजीवनी
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पटना : बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस और जनता दल (युनाइटेड) का महागठबंधन तोड़कर 26 जुलाई को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के महज 16 घंटों बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के समर्थन से एक बार फिर नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बन गए हैं।

माना जा रहा है कि भाजपा के साथ दूसरी पारी में नीतीश भले ही अपना राजनीतिक कद नहीं बढ़ा पाए, परंतु नीतीश के राजग में आने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राह जरूर आसान हो गई है।

वैसे माना यह भी जा रहा है, कि करीब चार दशक पूर्व राज्य और केंद्र में एक ही सरकार के होने से बिहार को भी फायदा मिलेगा।

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नीतीश की भाजपा की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में यह दूसरी पारी है। पहली पारी में उन्होंने 17 वर्षो के बाद 2013 में खुद ही गठबंधन तोड़ लिया था।

नीतीश की पहचान नरेंद्र मोदी के प्रतिद्वंद्वी के तौर पर मजबूत नेता के रूप में उभरी थी। विपक्ष में नीतीश की पहचान एक स्वच्छ छवि और अनुभवी नेता की थी। ऐसे में नीतीश का राजग में आना प्रधानमंत्री मोदी के लिए राह आसान बनाने वाली कही जा रही है।

बिहार की राजनीति को नजदीक से जानने वाले राजनीतिक विश्लेषक सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि नीतीश और नरेंद्र मोदी दोनों के लिए यह स्थिति जरूरत और फायदेमंद की है। मोदी को जहां 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए बिहार जैसे प्रमुख राज्य में जद (यू) का साथ मिल गया, वहीं जद (यू) भी फिर अपनी भूल सुधारते हुए अपने पुराने दोस्तों के साथ हो लिए।

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उन्होंने कहा, "मोदी के लिए क्षत्रपों को नाखुश कर 2019 में बहुमत पा लेना आसान नहीं है। इसे ऐसे देख सकते हैं कि नीतीश के राजग में आने से ही विपक्षी दलों की एकता की रणनीति की हवा निकल गई है। उत्तर प्रदेश और गुजरात में भी इसका असर दिखाई दे रहा है।"

गोरक्षा के मामले में हिंसा और धर्मनिरपेक्षता को लेकर किशोर कहते हैं, "इसमें भी दोनों दलों को परेशानी नहीं होगी। नरेंद्र मोदी भी गोरक्षा के नाम पर हिंसा को जायज नहीं ठहराते।"

उनका कहना है, "नीतीश भाजपा के सबसे पुराने धर्मनिरपेक्ष सहयोगी हैं। इसके पूर्व भी उन्होंने भाजपा के साथ रहते हुए सांप्रदायिक ताकतों पर नकेल कसी थी, जिसमें भाजपा का भी साथ मिला था।"

भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बनते ही नीतीश ने धर्मनिरेक्षता को लेकर विधानसभा में कहा कि लोग अपने भ्रष्टाचार के पाप को धर्मनिरपेक्षता के चोले से छिपाना चाहते हैं।

इधर, पत्रकार संतोष सिंह भी कहते हैं, "हाल के दिनों में इस गठबंधन को कोई दिक्कत नहीं है। नीतीश के राजग में आने से केंद्र सरकार को आगामी चुनाव के लिए 'संजीवनी' मिल गई है।"

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उन्होंने हालांकि यह जरूर कहा कि अब राजग बड़े गठबंधन में तब्दील हो चुकी है, जिसमें नीतीश को कम हिस्सेदारी में ही संतोष करना पड़ेगा। वैसे इसके अलावा उनके सामने कोई दूसरा रास्ता भी नहीं है।

सिंह स्पष्ट कहते हैं, "भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता को भी नीतीश ने समझ लिया था। बिहार के इस राजनीतिक उलटफेर में सबसे बड़ी जीत प्रधानमंत्री मोदी की हुई है, जिनके लिए भविष्य की राजनीति के रास्ते का सबसे बड़ा कांटा अब निकल चुका है।"

जद (यू) के प्रवक्ता नीरज कुमार कहते हैं कि नीतीश कुमार ने कभी भी खुद को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बताया है। नीतीश ने तो कई मौकों पर कहा है, "मुझमें प्रधानमंत्री बनने की योग्यता नहीं है।"

बकौल नीरज, "नीतीश की पहचान उनकी कार्यशैली रही है। उनका चेहरा विकास और सद्भाव का रहा है। सुशासन और भ्रष्टाचार के खिलाफ की छवि है। भाजपा भी भ्रष्टाचार के खिलाफ है। इस गठबंधन का फायदा बिहार को होगा।"

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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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