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Indian Govt On Quotas: मुस्लिम व ईसाई धर्म अपनाने वाले दलितों की स्थिति का किया जाएगा अध्ययन, तैयारी में सरकार
Indian Govt On Quotas: इस्लाम या ईसाई धर्म अपने वाले दलितों की सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति के बारे में अध्ययन किया जाएगा।
Indian Govt On Quotas: केंद्र सरकार (Central Government) उन दलितों के बारे में जानकारी इकट्ठा करने जा रही है, जिन्होंने हिंदू धर्म छोड़कर इस्लाम या ईसाई धर्म अपना लिया है। इनके सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति के बारे में अध्ययन किया जाएगा। सरकार इस काम के लिए एक नेशनल कमीशन (national commission) बनाने की तैयारी कर रही है, जो उन दलितों के बारे में स्टडी करेगा जिन्होंने बौद्ध और सिख धर्म को छोड़कर अन्य धर्मों में धर्मांतरण किया है।
बताया जा रहा है कि इसपर सरकार बहुत जल्द फैसला ले सकती है। अल्पसंख्यक मंत्रालय (minority ministry) ने इसपर अपनी सहमति प्रदान कर दी है। फिलहाल इस पर गृह, कानून, वित्त और सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्रालय के बीच विचार – विमर्श चल रहा है। प्रस्तावित नेशलन कमीशन में तीन या चार सदस्य हो सकते हैं। कमीशन के अध्यक्ष का दर्जा कैबिनेट रैंक के मंत्री के बराबर होगा।
सरकार को क्यों लेना पड़ रहा है ये फैसला
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में ऐसी कई याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें मुस्लिम और ईसाई धर्म अपनाने वाले दलितों को भी हिंदू, बौद्ध और सिख धर्म के दलितों की तरह आरक्षण देने की मांग की गई है। शीर्ष अदालत ने 30 अगस्त को इन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार को अपना रूख स्पष्ट कर तीन हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा था। इस मामले पर अगली सुनवाई 11 अक्टूबर को होने वाली है। इसे देखते हुए सरकार इन तबकों के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए एक कमिशन का गठन करने की सोच रही है। कमिशन 1 साल में अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप देगी।
संविधान में एससी आरक्षण के क्या हैं प्रावधान
संविधान की धारा 341 के तहत यह निर्धारित किया गया कि हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म से अलग होने वाले किसी भी व्यक्ति को अनुसूचित जाति का नहीं माना जा सकता है। हालांकि, शुरू में केवल ये हिंदू धर्म पर लागू होता था लेकिन साल 1956 में एक संशोधन के जरिए सिखों और 1990 में बौद्धों को इसमें शामिल किया गया था।
धर्मांतरण करने वाले दलितों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया कि धर्म परिवर्तन से सामाजिक बहिष्कार नहीं बदलता है। ईसाई धर्म के अंदर भी जातीय भेदभाव कायम है, भले ही धर्म इसकी इजाजत न देता हो।