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वोट बहिष्कार भी नहीं आया काम, ग्रामीणों ने खुद पैसे इकट्ठा करके बनवाया पुल

ग्रामीणों का कहना है कि चुनाव में ये नेता केवल वोट के लिए पुल बनाने की बात हर बार कहते मगर चुनाव जीतते ही कभी लौट कर गांव नहीं आते।

Newstrack
Published on: 11 July 2020 4:54 PM IST
वोट बहिष्कार भी नहीं आया काम, ग्रामीणों ने खुद पैसे इकट्ठा करके बनवाया पुल
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नवादा: वादे चुनाव और वोट पाने का सबसे बड़ा हथियार है। वादे वो भी झूठे। जो कभी पूरे ही नहीं होते। अगर आप कभी किसी पार्टी या किसी व्यक्ति को इस लिए वोट करते हैं कि वो आपसे कहा हुआ आपका काम चुनाव जीतने के बाद कराएगा तो ये आपकी भूल है। कभी इन नेताओं और राजनीतिक पार्टियों के भरोसे नहीं बैठना चाहिए। आपको समस्या है आपके शहर मोहल्ले या इलाके की हालत खस्ता है तो इन्हें उससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

इन्हें तो बस वोट से और अपने जीतने से मतलब है। अगर ये हो गया तो बस अब ये आपको पहनचानते भी नहीं। और वो कहते हैं न कि किसी भी मुश्किल को अगर मिल कर सुलझाया जाए तो कोई मुश्किल मुश्किल है ही नहीं। ये ही करके दिखाया है नवादा के अम्हड़ी गांव के ग्रामीणों ने। इन ग्रामीणों ने मिल कर अपनी ऐसी समस्या का समाधान कर लिया जो सरकार और सिस्टम के मुंह पर तमाचा मारती है।

चुनाव में वोट बहिष्कार भी नहीं आया ग्रामीणों के काम

वो कहते हैं न कि सरकार और सिस्टम हमें सिर्फ अश्वासन देती है न कि समाधान। दरअसल अम्हड़ी गांव को दशकों से एक अदद पुल की दरकार थी। लेकिन सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। और नतीजन पुल नहीं बना। जिसकेस बाद इन ग्रामीणों ने वो किया जो सरकार और सिस्टम के मुंह पर सीधा तमाचा था। इन ग्रामीणों ने कई सालों तक पैसा इकट्ठा किया और उसके बाद खुद पुल का निर्माण अपने पास से करवाया। ग्रामीणों ने कहा कितने सांसद, विधायक एवं जनप्रतिनिधि आए। लेकिन कोरा आश्वासन के सिवा आज तक कुछ नहीं दिया। चुनाव में ये नेता केवल वोट के लिए पुल बनाने की बात हर बार कहते मगर चुनाव जीतते ही कभी लौट कर गांव नहीं आते।

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नेताओं के इस रवैये का विरोध करते हुए और एक अपनी मांग को पूरा कराने के लिए गांव वालों ने एक बड़ा कदम उठाया और लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनाव में वोट बहिष्कार भी किया। जिसके बाद जिला प्रशासन के अधिकारी भी उस वक्त आश्वासन देकर गए। मगर नतीजा कोइ नहीं निकला और पुल फिर भी नहीं बना। तब ग्रामीणों ने आपसी सहयोग से पुल बनाने का निर्णय लिया और आज नतीजा सभी के सामने है। एक पुल के नहीं रहने से तकरीबन तीन हजार से बड़ी आबादी सीधे इससे प्रभावित हो रही थी।

ग्रामीणों ने तीन साल तक पैसे जोड़ कर बनाया पुल

गांव वालों ने बताया कि उनके लिए पुल सबसे ज़रूरी था। जिसके लिए तकरीबन सभी ग्रामीणों ने तीन सालों तक लाखों रुपये इकट्ठा कर इस पुल को बनाया। गांव को जाने के लिए सबसे सहज रास्ता यही था मगर पुल के नहीं रहने से काफी परेशानी होती थी। खासकर बच्चों को स्कूल जाने में, इलाज कराने मरीजों को बाहर जाने में काफी मुश्किल थी। कोई अतिथि आ जाए तो सबसे अधिक शर्मिंदगी महसूस होती थी। बहरहाल ग्रामीणों की जीवटता से पुल बन चुका है। अब केवल दोनों तरफ से संपर्क पथ को जोड़ा जाना बाकी है। पुल के दोनों तरफ पक्की सड़क है लिहाजा ग्रामीणों के पास उसे जोड़ने के लिए पैसे नहीं हैं।

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हालांकि उनकी योजना है कि जल्दी ही फंड जुटाकर उसे भी जोड़ दिया जाएगा। फिलहाल यह मांग है कि प्रशासन कम से कम संपर्क पथ को जोड़ दे ताकि लोगों की समस्या पूरी तरह समाप्त हो जाए। स्थानीय बीडीओ से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि कनीय अभियंता के माध्यम से वो उस पुल का निरीक्षण करवाएंगे और वरीय पदाधिकारी के समक्ष बचे हुए कार्य का संज्ञान उनके समक्ष रखेंगे। बहरहाल सरकारी आश्वासनों और प्रक्रियाओं को मुंह चिढ़ाता पुल बनकर तैयार है। अब इंतजार इसके चालू होने का है।



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