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राजस्थान में वसुंधरा फैक्टर ने भी दिखाया असर, सचिन इसलिए हुए सुलह पर मजबूर

भाजपा के सहयोगी दल रालोपा के सांसद हनुमान बेनीवाल ने उन पर आरोप लगाया कि वह गहलोत सरकार को बचाने के लिए अपने समर्थक विधायकों को फोन कर रही हैं।

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Published on: 11 Aug 2020 6:40 PM GMT
राजस्थान में वसुंधरा फैक्टर ने भी दिखाया असर, सचिन इसलिए हुए सुलह पर मजबूर
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Rajasthan Politics

अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली: करीब एक महीने से गरमाई राजस्थान की सियासत ने एक बार फिर करवट ली है। विधानसभा सत्र शुरू होने से पहले सचिन पायलट की घर वापसी से अशोक गहलोत खेमे के सारे समीकरण फिर दुरुस्त हो गए हैं। सचिन पायलट की घर वापसी के लिए सियासी गलियारों में कई कारण बताए जा रहे हैं। मगर इन सबके बीच भाजपा की वरिष्ठ नेता और प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की चर्चा सबसे ज्यादा है। सियासी जानकारों का कहना है कि सचिन पायलट की घर वापसी में वसुंधरा फैक्टर ने भी बड़ी भूमिका निभाई है।

वसुंधरा ने नहीं ली कोई दिलचस्पी

राजस्थान की सियासत को नजदीक से देखने वाले जानकारों का कहना है कि सचिन पायलट की बगावत के बाद वसुंधरा राजे लगातार चुप्पी साधे रहीं और उन्होंने गहलोत सरकार गिराने में कोई भी दिलचस्पी नहीं दिखाई। वसुंधरा राजे को इस बात का बखूबी अहसास था कि गहलोत सरकार गिरने पर यदि भाजपा की सरकार बनी तो भी मुख्यमंत्री पद उन्हें नहीं मिलने वाला। यही कारण है कि वे राजस्थान की सियासी उठापटक का दूर से ही नजारा देखती रहीं। बीच में तो उन पर गहलोत सरकार को बचाने तक के आरोप लगे।

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Vasundhara Raje Vasundhara Raje

भाजपा के सहयोगी दल रालोपा के सांसद हनुमान बेनीवाल ने उन पर आरोप लगाया कि वह गहलोत सरकार को बचाने के लिए अपने समर्थक विधायकों को फोन कर रही हैं। वसुंधरा राजे की चुप्पी और उनकी निष्क्रियता से भी सचिन पायलट खेमे को भारी झटका लगा। सियासी जानकारों का भी कहना है कि वसुंधरा की गहलोत सरकार गिराने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। इसकी एक बड़ी वजह भी बताई जा रही है कि पायलट की बगावत के बाद भाजपा की ओर से बनाई गई रणनीति में वसुंधरा को ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई।

सचिन खेमे में फैली निराशा

Sachin Pilot Sachin Pilot

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राजस्थान में भाजपा के 72 विधायकों में 40 से अधिक विधायक वसुंधरा के समर्थक बताए जाते हैं। बगावत के एक महीने बाद भी गहलोत सरकार गिराने में वसुंधरा की कोई दिलचस्पी न देखकर पायलट गुट को इस बात का अहसास हो गया कि गहलोत की कुर्सी नहीं जाने वाली है। इसी कारण कांग्रेस में वापसी का रास्ता खोजा जाने लगा और आखिरकार सचिन की राहुल और प्रियंका से मुलाकात के बाद इस पर मुहर भी लग गई।

वसुंधरा ने पूरा किया अपना मकसद

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जानकारों का कहना है कि वसुंधरा ने चतुराई से राजस्थान की सियासत में अपना मकसद पूरा कर लिया है। इसके जरिए उन्होंने दिल्ली में बैठे पार्टी के बड़े नेताओं को यह संदेश दे दिया है कि राजस्थान में उनकी अनदेखी करके भाजपा का काम नहीं चलने वाला। भाजपा की ओर से राजस्थान की सियासत में इन दिनों केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को महत्व दिया जा रहा है। ऐसे में वसुंधरा राजस्थान की सियासत में अपनी ताकत दिखाने में कामयाब रही हैं और उन्होंने एक बार फिर साबित किया है कि प्रदेश में पार्टी पर उनकी पकड़ कितनी मजबूत है।

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राजस्थान भाजपा में भैरो सिंह शेखावत का दौर समाप्त होने के बाद वसुंधरा राजे पार्टी की सबसे महत्वपूर्ण नेता बनकर उभरी हैं। उनके सियासी कद का राज्य भाजपा में कोई नेता नहीं है। हालांकि मोदी और शाह की जोड़ी से वसुंधरा की पटरी कभी नहीं बैठी। लेकिन राज्य की सियासत में उनकी मजबूत पकड़ को देखते हुए पार्टी आज तक उनकी अनदेखी करने का साहस नहीं जुटा सकी है। वे हमेशा दिल्ली में बैठे नेताओं से अपनी बात मनवाने में कामयाब होती रही हैं।

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