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West Bengal News: तृणमूल और गवर्नर के बीच नया ड्रामा, लटका हुआ है शपथ ग्रहण
West Bengal News: राजभवन ने 25 जून को संविधान के अनुच्छेद 188 का हवाला देते हुए इस बात को रेखांकित किया कि विधायकों के शपथ ग्रहण पर राज्यपाल का अंतिम निर्णय होता है।
West Bengal News: पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और राज्यपाल के बीच एक नया गतिरोध चल रहा है। इस बार मसला तृणमूल पार्टी के दो विधायकों के शपथ ग्रहण को लेकर है। इन विधायकों ने हाल ही में उपचुनाव जीते थे।आज यानी 26 जून को दोनों विधायक सायंतिका बनर्जी (बारानगर) और रयात हुसैन सरकार (भागाबंगोला) राज्य विधानसभा परिसर में चार घंटे तक राज्यपाल सी वी आनंद बोस का इंतजार करते रहे। जबकि राज्यपाल बोस राजभवन में इन्हीं विधायकों का इंतजार करते बैठे रहे। उन्होंने दोनों विधायकों को शपथ ग्रहण के लिए दोपहर 12 बजे वहां आने के लिए कहा था।दरअसल, टीएमसी विधायक इसलिए राजभवन नहीं जाना चाहते क्योंकि राज्यपाल बोस ने मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य को एक महिला कर्मचारी द्वारा राज्यपाल के खिलाफ लगाए गए छेड़छाड़ के आरोप पर की गई टिप्पणी को लेकर राजभवन आने से रोक दिया था।
क्यों है गतिरोध
संवैधानिक रूप से राज्यपाल किसी विधायक को शपथ दिलाते हैं। लेकिन परंपरा के अनुसार उपचुनाव के मामले में राज्यपाल विधानसभा के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को यह काम सौंपते हैं। लेकिन इस मामले में राज्यपाल बोस ने इसके लिए हरी झंडी देने से इनकार कर दिया है। इसके बजाय उन्होंने मांग की है कि सायंतिका बनर्जी और रयात हुसैन सरकार राजभवन आकर उनसे शपथ लें। बनर्जी और सरकार ने 1 जून को हुए उपचुनाव में जीत हासिल की थी जिसमें उन्होंने क्रमशः भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों को आसानी से हराया था।
विधायकों ने क्या कहा?
राजभवन में सुरक्षा सहित विभिन्न मुद्दों पर राज्यपाल और टीएमसी के टकराव के बीच, दोनों विधायकों ने कहा है कि राज्यपाल को या तो स्पीकर या डिप्टी स्पीकर को उन्हें शपथ दिलाने के लिए अधिकृत करना चाहिए या अगर वह खुद शपथ दिलाना चाहते हैं तो खुद विधानसभा में आएं।
ममता ने लिखी चिट्ठी
24 जून को सयंतिका बनर्जी ने राज्यपाल बोस को पत्र लिखकर कहा कि वे स्पीकर बिमान बनर्जी को विधायकों को शपथ दिलाने दें। अगले दिन उन्होंने पत्रकारों से कहा : मैं विधानसभा की सदस्य हूं और मुझे यहीं से काम करना है। आम तौर पर यह होता है कि उपचुनाव के मामले में राज्यपाल शपथ दिलाने के लिए स्पीकर या डिप्टी स्पीकर को पत्र लिखते हैं। इसलिए मैंने राज्यपाल को पत्र लिखा और कहा कि मैं विधानसभा में शपथ लेना चाहती हूं। मेरी जीत को तीन हफ्ते बीत चुके हैं, लेकिन मैंने अभी तक अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के लिए काम करना शुरू नहीं किया है। रयात हुसैन सरकार ने भी कहा : मैं भी विधानसभा में शपथ लेना चाहती हूं। हम राज्यपाल के यहां आने का इंतजार कर रहे हैं।
राजभवन का क्या रुख है?
राजभवन ने 25 जून को संविधान के अनुच्छेद 188 का हवाला देते हुए इस बात को रेखांकित किया कि विधायकों के शपथ ग्रहण पर राज्यपाल का अंतिम निर्णय होता है। अनुच्छेद के अनुसार विधानसभा के प्रत्येक सदस्य को अपना स्थान ग्रहण करने से पहले राज्यपाल या राज्यपाल द्वारा ऐसा करने के लिए नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष शपथ लेनी चाहिए।अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर एक पोस्ट में, राजभवन ने ममता बनर्जी, जाकिर हुसैन और अमीरुल इस्लाम जैसे नव निर्वाचित सदस्यों के अतीत के उदाहरणों का हवाला दिया जिन्होंने 2021 में तत्कालीन राज्यपाल के समक्ष शपथ ली थी।दो साल पहले इसी तरह की स्थिति में टीएमसी के बालीगंज के विधायक बाबुल सुप्रियो अपने चुनाव के दो सप्ताह बाद भी विधायक के रूप में शपथ नहीं ले सके थे, क्योंकि स्पीकर और तत्कालीन राज्यपाल जगदीप धनखड़ के बीच शपथ ग्रहण समारोह की अध्यक्षता पर टकराव था। धनखड़ ने आखिरकार डिप्टी स्पीकर आशीष बनर्जी को यह काम सौंपा, जो टीएमसी से ही हैं। हालांकि विधायक शपथ न लेने के बावजूद कागजों पर विधानसभा के सदस्य बने रहते हैं, लेकिन शपथ लेने तक वे मतदान प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकते।