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Bhagat Singh: भगत सिंह पर नयी सुनवायी : लाहौर हाईकोर्ट की नाइंसाफी !!

Bhagat Singh: वर्ना लाहौर हाईकोर्ट (कल : 16 सितंबर 2023) के दिन शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह को फांसी (23 मार्च 1931) वाले मुकदमे की ईमानदार सुनवाई, नए सबूतों के आधार पर, पुनः शुरू कर सकती थी।

K Vikram Rao
Written By K Vikram Rao
Published on: 17 Sep 2023 1:57 PM GMT
Bhagat Singh
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Bhagat Singh(Pic:Newstrack)

Bhagat Singh: फिर एक बार पुष्टि हो गई कि ब्रिटिश साम्राज्यवादियों की अवैध औलाद है इस्लामी पाकिस्तान। उसके संस्थापक मियां मोहम्मद अली जिन्ना तो गोरे शासकों की कठपुतली रहे। मकसद स्पष्ट था कि अखंड भारत को विभाजन द्वारा कमजोर करें। वर्ना लाहौर हाईकोर्ट (कल : 16 सितंबर 2023) के दिन शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह को फांसी (23 मार्च 1931) वाले मुकदमे की ईमानदार सुनवाई, नए सबूतों के आधार पर, पुनः शुरू कर सकती थी। कारण : भगत सिंह को हत्या के मनगढ़ंत जुर्म में सजा दी गई थी। सरदार भगत सिंह को लाहौर (अविभाजित पंजाब) जेल में रखा गया था। वहीं अंधेरे में फांसी भी दी गई थी। पहले उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई थी। फिर फांसी। साथ में राजगुरु और सुखदेव को भी शहीद कर दिया।

भगत सिंह को ब्रिटिश शासन के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में मुकदमा थोपा गया था। याचिका में भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन के अध्यक्ष और याचिकाकर्ता वकील इम्तियाज राशिद कुरैशी ने कहा कि हत्या की प्राथमिकी (FIR) में भगत सिंह का नाम नहीं था। भगत सिंह के मामले पर सुनवायी कर रहे विशेष न्यायाधीशों ने गत सदी में मामले में 450 गवाहों को सुने बिना ही उन्हें मौत की सजा सुना दी थी। आजादी के आंदोलन के सिपाही भगत सिंह को पहले लंबे अरसे तक कारावास में रखा गया था। बाद में एक अन्य झूठे मामले में मौत की सजा सुनाई गई। लाहौर हाईकोर्ट ने गत शनिवार को लगभग एक दशक पहले दायर मामले को फिर से खोलने और उस याचिका पर सुनवाई के लिए एक वृह्द पीठ के गठन पर आपत्ति जताई, जिसमें समीक्षा के सिद्धांतों का पालन करते हुए भगत सिंह की सजा को रद्द करने का अनुरोध किया गया था। अधिवक्ता कुरैशी ने कहा कि वरिष्ठ वकीलों की एक समिति की यह याचिका एक दशक से हाईकोर्ट में लंबित है। उन्होंने कहा : ‘‘न्यायमूर्ति शुजात अली खान ने 2013 में एक वृह्द पीठ के गठन के लिए मामले को मुख्य न्यायाधीश के पास भेजा था, तब से यह स्थगित है।’’

भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन ने भगत सिंह की सजा के मामले को फिर से खोलने की मांग की थी। हालांकि लाहौर हाईकोर्ट ने कहा कि याचिका बड़ी पीठ के गठन के लिए सुनवाई योग्य नहीं है। याचिकाकर्ता कुरैशी ने बताया कि वरिष्ठ वकीलों के एक पैनल, जिसका वह भी सदस्य है, ने लाहौर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। एक दशक से यह टाल रही है। साल 2013 में तत्कालीन जस्टिस शुजात अली खान ने एक बड़ी पीठ के गठन के लिए मामले को मुख्य न्यायाधीश के पास भेजा था। अब हाईकोर्ट ने बड़ी पीठ के गठन पर आपत्ति जता दी है। लाहौर हाईकोर्ट में कहा गया है कि भगत सिंह ने उपमहाद्वीप की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी। भगत सिंह का उपमहाद्वीप में न केवल सिखों और हिंदुओं बल्कि मुसलमानों द्वारा भी सम्मान किया जाता है। याचिकाकर्ता ने कहा कि यह राष्ट्रीय महत्व का मामला है और इसे पूर्ण पीठ के समक्ष तय किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन पी. सैंडर्स की हत्या की प्राथमिकी में भगत सिंह का नाम ही नहीं था, जिसके लिए उन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी। गवाहों को मौका दिये बिना ही भगत सिंह को मौत की सजा सुनाई गई थी।

करीब एक दशक पहले अदालत के आदेश पर लाहौर पुलिस ने अनारकली थाने के रिकॉर्ड खंगाले थे। पुलिस अफसर सैंडर्स की हत्या की प्राथमिकी ढूंढने में कामयाबी हासिल की थी। उर्दू में लिखी यह प्राथमिकी 17 दिसंबर, 1928 को शाम साढ़े चार बजे दो ‘अज्ञात बंदूकधारियों’ के खिलाफ अनारकली पुलिस थाने में दर्ज की गई थी। कुरैशी ने कहा कि भगत सिंह का मामला देख रहे विशेष न्यायाधीशों ने गवाहों को सुना ही नहीं था। मगर उन्हें मौत की सजा सुना दी। उन्होंने कहा कि सिंह के वकीलों को जिरह करने का समय तक नहीं दिया गया था।

इस प्राथमिकी मे लिखा था : “17 दिसंबर, 1928 को शाम साढ़े चार बजे दो ‘अज्ञात बंदूकधारियों’ के खिलाफ अनारकली पुलिस थाने में दर्ज की गई थी। याचिका में भगत सिंह को मरणोपरांत राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किए जाने का भी अनुरोध किया गया था। भगत सिंह को ब्रिटिश शासन के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में मुकदमा चलाने के बाद 23 मार्च, 1931 को उनके साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी दे दी गई थी।” अब भारत के पंजाब हाईकोर्ट में याचिका दायर होनी चाहिए।

Durgesh Sharma

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