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प्राकृतिक रेशों से कंपोजिट प्लास्टिक बनाने की नई विधि विकसित

बढ़ती पर्यावरणीय चुनौतियों को देखते हुए दुनियाभर में ईको-फ्रेंडली पदार्थों के विकास पर जोर दिया जा रहा है। भारतीय शोधकर्ताओं ने अब जूट और पटसन जैसे प्राकृतिक रेशों के उपयोग से पर्यावरण अनुकूल कंपोजिट प्लास्टिक का निर्माण किया है।

Anoop Ojha
Published on: 14 March 2019 3:41 PM IST
प्राकृतिक रेशों से कंपोजिट प्लास्टिक बनाने की नई विधि विकसित
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उमाशंकर मिश्र

बढ़ती पर्यावरणीय चुनौतियों को देखते हुए दुनियाभर में ईको-फ्रेंडली पदार्थों के विकास पर जोर दिया जा रहा है। भारतीय शोधकर्ताओं ने अब जूट और पटसन जैसे प्राकृतिक रेशों के उपयोग से पर्यावरण अनुकूल कंपोजिट प्लास्टिक का निर्माण किया है।भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मंडी के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित यह पॉलीप्रोपाइलीन और पॉलीइथिलीन आधारित कंपोजिट प्लास्टिक है। माइक्रोवेव ऊर्जा के उपयोग से इस कंपोजिट प्लास्टिक में जूट और पटसन के रेशों को मिश्रित करके इसके गुणों में सुधार किया गया है। कंपोजिट दो या अधिक पदार्थों से निर्मित पदार्थ होते हैं, जिनके संघटकों के भौतिक एवं रासायनिक गुण भिन्न होते हैं।



प्राकृतिक रेशों की मदद से कंपोजिट प्लास्टिक बनाना काफी चुनौतिपूर्ण होता है। इसके लिए रेशों को पॉलिमर सांचे में वितरित करके उच्च तापमान पर प्रसंस्कृत किया जाता है। असमान ताप वितरण, सीमित प्रसंस्करण क्षमता, लंबी उत्पादन प्रक्रिया, अधिक ऊर्जा खपत और उच्च लागत जैसी बाधाएं उत्पादन को कठिन बना देती हैं। इसके अलावा, लंबी हीटिंग प्रक्रिया के दौरान प्राकृतिक रेशों का स्थिर नहीं रहना भी एक समस्या है।

रेशों से युक्त कंपोजिट प्लास्टिक का उपयोग एयरोस्पेस प्रणालियों से लेकर ऑटोमोबाइल्स, उद्योगों और विभिन्न उपभोक्ता उत्पादों में होता है। रेशों से बने कंपोजिट प्लास्टिक आमतौर पर उपयोग होने वाली धातुओं से हल्के होते हैं। इसके अलावा, इसमें मजबूती, कठोरता और फ्रैक्चर प्रतिरोध जैसे यांत्रिक गुण भी पाए जाते हैं।

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कंपोजिट प्लास्टिक के उत्पादन के लिए आमतौर पर ग्लास एवं कार्बन रेशों का उपयोग होता है, जो इसे महंगा बना देते हैं। इसके अलावा, ये रेशे अपघटित नहीं होते और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। इसी कारण प्लास्टिक को मजबूती प्रदान करने के लिए वैज्ञानिक जूट और पटसन जैसे प्राकृतिक रेशों पर अध्ययन करने में जुटे हैं।

इस अध्ययन का नेतृत्व कर रहे शोधकर्ता डॉ सन्नी ज़फर ने बताया कि “प्राकृतिक रेशों के उपयोग से पॉलिमर संरचना को बांधकर मजबूत बनाया जा सकता है और उसके गुणों में बढ़ोतरी की जा सकती है। माइक्रोवेव ऊर्जा को तेजी से गर्म होने के लिए जाना जाता है। इसे लैब में बेहतर उत्पादों के विकास के लिए भी उपयोगी पाया गया है। माइक्रोवेव की मदद से त्वरित हीटिंग प्रक्रिया के जरिये रेशों को विघटित किए बिना कंपोजिट प्लास्टिक का निर्माण किया जा सकता है।”

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अध्ययनकर्ताओं में शामिल आईआआईटी-मंडी के शोधार्थी मनोज कुमार सिंह ने बताया कि “प्लास्टिक के अन्य रूपों की अपेक्षा प्राकृतिक रेशों से युक्त प्लास्टिक आसानी से अपघटित हो सकते हैं। इस तरह के प्लास्टिक के उत्पादन से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने में भी मदद मिल सकती है। भारत में विभिन्न प्राकृतिक रेशे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं, जो कंपोजिट प्लास्टिक के उत्पादन में उपयोगी हो सकते हैं।”

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शोधकर्ताओं का कहना है कि इस प्रक्रिया से प्राप्त कंपोजिट प्लास्टिक पारंपरिक प्रक्रियाओं से उत्पादित कंपोजिट सामग्री के समान ही हैं। स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी, एक्स-रे डिफ्रेक्शन जैसे तरीकों द्वारा कंपोजिट प्लास्टिक के गुणों का विश्लेषण और यूनिवर्सल टेस्टिंग मशीन का उपयोग करके इसके यांत्रिक गुणों का मूल्यांकन किया गया है।

डॉ. जफ़र का कहना है कि “प्राकृतिक रेशों से बने कंपोजिट प्लास्टिक में नमी के अवशोषण और कम दीर्घकालिक स्थिरता जैसी बाधाओं को दूर करने के लिए अधिक अध्ययन की आवश्यकता है।” यह अध्ययन शोध पत्रिका थर्मोप्लास्टिक कंपोजिट मैटेरियल्स में प्रकाशित किया गया है।

(इंडिया साइंस वायर)



Anoop Ojha

Anoop Ojha

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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