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New Parliament Construction: नए संसद को खड़ा करना वाले जरा उन हाथों को भी सलाम कर लें
New Parliament Construction: हजारों अनजान लोगों को आप जरूर सलाम करें, अभिवादन करें जिन्होंने इस भव्य इमारत को खड़ा किया है। नये संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इमारत बनाने वाले श्रमिकों को शॉल ओढ़ा कर तथा स्मृति चिन्ह देकर समानित किया है। इन 60 हजार श्रमिकों को "श्रम योगी" कहा गया है।
New Parliament Construction: देश की नई चमचमाती संसद। तमाम विवाद हुए बातें हुईं। बहुत से नेताओं, संतों, पुजारियों आदि के नाम आये। लेकिन उन हजारों अनजान लोगों को आप जरूर सलाम करें, अभिवादन करें जिन्होंने इस भव्य इमारत को खड़ा किया है। नये संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इमारत बनाने वाले श्रमिकों को शॉल ओढ़ा कर तथा स्मृति चिन्ह देकर समानित किया है। इन 60 हजार श्रमिकों को "श्रम योगी" कहा गया है।
पर्दे के पीछे
नया, विशाल और आधुनिक संसद भवन, नरेंद्र मोदी सरकार की सबसे बड़ी परियोजनाओं में से एक है। इसे साकार करने के लिए दो साल से अधिक समय से हजारों मजदूर टिन के विशाल हरे पर्दे के पीछे काम करते रहे हैं। संसद भवन के उद्घाटन संबंधित राजनीतिक विद्वेष से दूर, ऑन-साइट और ऑफ-साइट काम करने वाले 60 हजार श्रमिक और उनके सुपरवाइजर इमारत को तैयार करने के लिए चुपचाप काम पर लगे रहे और अब भी लगे हुए हैं। ये मजदूर देश के कोने कोने से आये और चुपचाप अपने काम पर लगे रहे।
पुराना संसद भवन चुपचाप, शालीनता से खड़ा है, जबकि सब गहमागहमी सड़क के पार बिल्कुल नए त्रिकोणीय ढांचे में ट्रांसफर हो गई है। एक राजमिस्त्री, 40 वर्षीय अरुण का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों से, वह दिन में 12 घंटे काम कर रहे हैं और प्रति माह लगभग 17,000 रुपये कमाते हैं। उन्होंने कहा - हमने दो शिफ्टों में सातों दिन चौबीसों घण्टे काम किया है। हम महामारी के दौरान भी नहीं रुके।
बिहार के एक मजदूर का कहना है कि इमारत के कुछ हिस्सों में मचान का काम अभी भी जारी है और इसे पूरा होने में कुछ और महीने लगेंगे। मध्य प्रदेश के एक अन्य मजदूरका कहना है कि कुछ कक्षों में आवश्यक साज-सज्जा को छोड़कर भवन के अंदर अधिकांश काम पूरा कर दिया गया है।
कोई जाति न धर्म
हर जाति और धर्म के ये लोग दो साल तक कड़ी मेहनत करते रहे। इनका एक ही धर्म है - मेहनत और काम के औजार। उन्होंने इतिहास के एक हिस्से के निर्माण में अपनी भूमिका निभाई। अपने योगदान को वे हमेशा अपने ज़ेहन में संजो कर रखेंगे। मुरैना के रहने वाले मजदूर राम मूर्ति कहते हैं, "काम बहुत कठिन था, लेकिन अगर लोग हमसे पूछें कि हमने क्या किया, तो हम कह सकते हैं कि हमने संसद भवन बनाया, वह भी दो साल में।"
देश के लिए इतना तो करना पड़ेगा
27 वर्षीय मजदूर सोहित कहते हैं, हम देश के लिए कम से कम इतना तो कर सकते हैं। हम संसद भवन के अंदर नहीं बैठेंगे अपने काम को देख कर अच्छा लगता है।