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कहां से आया जानलेवा निपाह वायरस?

raghvendra
Published on: 8 Jun 2018 3:47 PM IST
कहां से आया जानलेवा निपाह वायरस?
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नयी दिल्ली: निपाह वायरस का आतंक केरल के बाद बाकी राज्यों में भी अपने पांव पसार रहा है। पश्चिम बंगाल से निपा का एक मामला सामने आने के बाद लोगों में तेजी से इस वायरस का डर बढ़ रहा है। चिकित्सकों का कहना है कि इस वायरस का कोई कारगर इलाज नहीं है, बल्कि बचाव ही इसका इलाज है। केरल में निपा वायरस से 10 से ज्यादा लोगों की मौत के बाद राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र द्वारा देशभर में हाई अलर्ट जारी किया गया है। नोएडा स्थित फोर्टिस अस्पताल के पल्मोनोलॉजी विभाग की मृणाल सरकार ने बताया, निपाह वायरस के बारे में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि मनुष्यों या जानवरों के लिए इसका कोई टीका उपलब्ध नहीं है। अगर कोई मनुष्य निपा वायरस से संक्रमित होता है, तो ऐसी स्थिति में सहायक देखभाल ही एकमात्र विकल्प है।

निपाह एक ऐसी बीमारी है जो मनुष्यों और जानवरों दोनों को प्रभावित करती है। यह वायरस आमतौर पर फ्रूट बैट यानी चमगादड़ और सूअरों को संक्रमित करता है। यह संक्रमित चमगादड़, सूअर या मनुष्यों से सीधे संपर्क के द्वारा फैल सकता है। निपा वायरस एन्सेफलाइटिस यानी मस्तिष्क की सूजन का कारण बन सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक, इस वायरस की पहचान 1998 में मलेशिया के कंपंग सुंगई निपाह में हुई थी। उस दौरान सूअर इस वायरस के मेजबान थे। 2004 में बांग्लादेश में चमगादड़ से दूषित होने वाले खजूर के उपयोग के परिणामस्वरूप निपाह वायरस इंसानों में फैल गया था। सूअरों और चमगादड़ों के अलावा यह वायरस अन्य पालतू जानवरों को भी संक्रमित करने में सक्षम है।

निपाह से बचाव के उपाय बताते हुए मृणाल सरकार कहती हैं, ऐसे फलों को नहीं खाना चाहिए जो कटा हो या उसे किसी जानवर ने खाया हो। पालतू जानवरों को भी चमगादड़ों से दूषित फल नहीं खाने देना चाहिए और यहां तक कि ऐसे फल मिलने पर उसे घर के बाहर भी नहीं फेंकना चाहिए, ऐसी स्थिति में अन्य जानवरों या पक्षियों में संक्रमण फैलने की आशंका हो सकती है। संक्रमित खजूर खाने से बचना चाहिए। साथ ही अस्पतालों में मरीजों की देखभाल करने वाले चिकित्साकर्मियों को गाउन, दस्ताने और मास्क पहनना चाहिए।

लक्षणों पर दें ध्यान

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 75 प्रतिशत की मृत्युदर के खतरे के साथ यह वायरस अत्यधिक घातक हो सकता है। ऐसे लोग, जिनके आसपास सूअर हैं, उन्हें इस वायरस से खतरा ज्यादा है और यह सूअरों का मांस खाने वाले लोगों को भी अपनी चपेट में ले सकता है। इंसानों में इसके संक्रमण के बाद तेज बुखार और श्वसन संबंधी परेशानी हो सकती है। यह मस्तिष्क को बुरी तरह प्रभावित करता है, जिससे पीडि़त के सिर में तेज दर्द होता है। इस संक्रमण के लिए कोई विशिष्ट चिकित्सा, कोई टीका या कोई एंटीवायरल थेरेपी नहीं है।

कैसे बचें

निपाह से बचने के लिए ध्यान रखें कि कोई फल, जैसे नारियल या फिर खजूर को खरीदते या खाते वक्त यह देंखे कि फल पूरी तरह साबुत होना चाहिए। वह कहीं से भी कटा या उस पर निशान नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही फलों को अच्छी तरह पानी से धोना चाहिए। अपने हाथों से भी अच्छी तरह धोएं।

डब्ल्यूएचओ द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार, हर किसी शख्स के हाथ धोने की अवधि कम से कम 30 सेंकड तक होनी चाहिए। सार्वजनिक स्थानों या यात्रा के दौरान संभव हो तो एन95 मास्क का उपयोग करना चाहिए। खांसते या छींकते समय हाथों का नहीं, हमेशा टिशू पेपर या किसी कपड़े का इस्तेमाल करना चाहिए। किसी भी लक्षण के नजर आने पर तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।

क्या है निपाह?

  • निपाह एक तरह का संक्रमण फैलाने वाला वायरस है। इसे ‘निपाह वायरस एन्सेफलाइटिस’ भी कहा जाता है। भारत में इसके कुछ मामले केरल में सामने आए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक यह वायरस इंसान और जानवर दोनों पर हमला कर सकता है।
  • डब्ल्यूएचओ के मुताबिक इस वायरस की पहचान साल 1998 में सिंगापुर और मलेशिया में हुई। उस वक्त यह सिर्फ सुअरों में देखने को मिलता था। लेकिन फिर यह इंसानों को भी प्रभावित करने लगा।
  • डब्लयूएचओ के मुताबिक इस वायरस का नेचुरल होस्ट फ्रूट बैट (चमगादड़) होता है। ये वायरस चमगादड़ों के मूत्र, लार और शरीर से निकलने वाले द्रव में होता है। फिर जो भी इनके संपर्क में आता है, उसमें यह वायरस घर कर लेता है।
  • साल 2004 में भारत और बांग्लादेश में इस वायरस के कुछ मामले सामने आए। इनमें देखा गया कि ऐसे लोग जिन्होंने खजूर के पेड़ से मिलने वाली ताड़ी या खजरी को पिया, उन्हें इस वायरस ने अपनी चपेट में लिया। क्योंकि ये वही पेड़ थे जो चमगादड़ों से प्रभावित हुए थे।
  • निपाह वायरस हवा से नहीं फैलता, बल्कि वायरस प्रभावित व्यक्ति के संपर्क में आने से फैलता है। ऐसे में बुखार के साथ सिर दर्द, थकान, भटकाव, मेंटल कंफ्यूजन महसूस होता है। अगर समय रहते इसकी पहचान नहीं की जाती तो महज 24-48 घंटे में व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है।
  • अब तक इसके उपचार के लिए कोई पुख्ता वैक्सीन नहीं बनी है।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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