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नीतीश के एनडीए में आने से भाजपा के भीतर-बाहर के समीकरण बदल जाएंगे

Rishi
Published on: 19 Aug 2017 7:43 PM IST
नीतीश के एनडीए में आने से भाजपा के भीतर-बाहर के समीकरण बदल जाएंगे
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पटना: मोदी सरकार व एनडीए के करीब पौने चार साल के कार्यकाल में पहली बाए ऐसा अहम मौका आया है जब नीतीश कुमार की अगुवाई वाले जदयू के तौर पर बिहार में उसकी साझेदार बनी एक बड़ी पार्टी केंद्र में उसके नेतृत्व वाले एनडीए में शामिल हुई है। जदयू के राज्यसभा में 12 सांसदों में से 9 के एनडीए का हिस्सा बनने के बाद भाजपा को बड़ी सौगात इसलिए मिली है कि बैठे बिठाए उच्च सदन में उसका संख्याबल विपक्ष से भारी हो गया।

भाजपा के दूसरे सहयोगी दलों से अलग हटकर देखें तो उत्तर भारत की हिंदी क्षेत्र की पार्टी जदयू और उसके नेता नीतीश कुमार के पाले में आने के बाद अब भाजपा ने सेकुलर सेाच की छोटी बड़ी पार्टियों को यह संकेत दे दिया है कि वह हर किसी के लिए दरवाजे खोल सकती है।

ज्ञात रहे कि 1996 में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी तो उस तौर पर समता पार्टी अध्यक्ष जॉर्ज फर्नांडीस एनडीए के संयोजक थे। एनडीए में उनकी मौजूदगी की वजह से भाजपा से दूरी बनाकर चलने वाली कई पार्टियां जैसे कि नेशनल कॉन्फ्रेंस, टीडीपी व ममता बनर्जी एनडीए का हिस्सा बनी रहीं। हालांकि तब अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री के तौर पर एकदम अलग छवि थी। क्षेत्रीय व छोटी गैर कांग्रेस पार्टियों के लिए भी एनडीए का हिस्सा बनकर रहना एक मजबूरी भी मानी जाती थी।

नीतीश की पार्टी केंद्र में मोदी सरकार में शामिल होती है या नहीं इस पर आने वाले कुछ दिनों में तस्वीर साफ होगी। इतना तय माना जा रहा है कि बतौर एक अहम साझेदार के तौर पर जदयू अध्यक्ष के नाते उन्हें एनडीए में कोई अहम पद की पेशकश का रास्ता साफ हो गया।

बिहार व यूपी में नीतीश कुमार के जातीय वोट बैंक यानी कुर्मी समुदाय को साधने का भी नीतीश से दोस्ती का एक बड़ा लाभ भाजपा की झोली में जाता दिख रहा है। बिहार में भले ही कुर्मी वोट बैंक मात्र 6 प्रतिशत तक हो लेकिन पूर्वी यूपी में 9 प्रतिशत कुर्मी समुदाय कई ऐसी लोकसभा सीटों पर प्रभावी भूमिका में है जहां भाजपा की ताकत कमजोर है। हालांकि विधानसभा सीटों की बात करें तो पाएंगे कि सभी 403 सीटों पर कहीं कम कहीं ज्यादा इस समुदाय का वोट बैंक है।

उत्तर प्रदेश जहां भाजपा को सबसे ज्यादा 71 सीटें मिली हैं वहां भाजपा अभी गंगवार, कटियार, वर्मा, निरंजन व सैंथवार जातियों पर ही सीमित है। पूर्वी यूपी में अपनादल के एक गुट पर उसकी निर्भरता है। नीतीश से दोस्ती का लाभ उसे बिहार के बाद यूपी व गुजरात में सबसे ज्यादा दिख रहा है।

हार्दिक पटेल व नीतीश की जुगलबंदी को झटका लगा

गुजरात में जदयू के एक मात्र विधायक छोटूभाई बासवा ने कांग्रेस के अहमद पटेल को वोट देकर राज्यसभा चुनाव में नीतीश कुमार की सलाह मानने से इंकार कर दिया लेकिन भाजपा यहां नीतीश कुमार से दोस्ती को अगले तीन माह में होने वाले चुनावों में भुनाने की पूरी कोशिश करेगी।

पाटीदारों के आरक्षण की मांग के आंदोलन को नीतीश कुमार ने समर्थन दिया था। पटेल और कुर्मी समुदाय को एक ही वंशज से जुड़ा माना जाता है। इसी बिंदु के कारण पाटीदार आंदोलन का नेतृत्व करने वाले हार्दिक पटेल दो साल से नीतीश कुमार के लगातार संपर्क में रहे। उनके बुलावे पर नीतीश गुजरात भी गए। हार्दिक ने एक दो बार नीतीश से भेंट करने पटना का भी दौरा किया। जाहिर है नीतीश के भाजपा से हाथ मिलाने से हार्दिक पटेल कमजोर पड़ेंगे।



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Rishi

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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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