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PM Modi: वोट के बदले नोट मामले में सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, पीएम मोदी की आई पहली प्रतिक्रिया
PM Modi on SC Judgement: 1998 में पीवी नरसिम्हा राव बनाम सीबीआई मामले में पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने माना था कि सांसदों को सदन के अंदर दिए गए किसी भी भाषण और वोट के लिए आपराधिक मुकदमा चलाने के खिलाफ संविधान के तहत छूट प्राप्त है।
PM Modi on SC Judgement: सुप्रीम कोर्ट द्वारा वोट के बदले नोट मामले में दिए गए फैसले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ी प्रतिक्रिया दी है। पीएम मोदी ने सुप्रीम कोर्ट के वोट के बदले नोट मामले पर दिए गए फैसले को ऐतिहासिक करार किया और कहा कि इससे देश में स्वच्छ राजनीतिक का मार्ग प्रशस्त होगा। बता दें कि देश की सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को वोट के बदले नोट मामले पर अपने ही 26 साल पुराने फैसले को पटलते हुए एक बड़ा फैसला दिया। वोट के बदले नोट मामले पर सांसदों को राहत देने पर असहमति जताते हुए कहा कि किसी को भी भ्रष्टाचार करने की छूट नहीं दी जा सकती है और न ही कोई विशेषाधिकार के तहत आता है।
एक महान निर्णय, स्वच्छ राजनीति सुनिश्चित करेगा
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने एक्स पर कहा कि, "सुप्रीम कोर्ट का एक महान निर्णय लिया है, जो स्वच्छ राजनीति सुनिश्चित करेगा और सिस्टम में लोगों का विश्वास गहरा करेगा।
घूसखोरी की छूट किसी को नहीं
वोट के बदले नोट मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने की। पीठ ने कहा कि 1998 के फैसले (जिसे पीवी नरसिम्हा राव फैसले के रूप में जाना जाता है) में पांच-न्यायाधीशों की पीठ की व्याख्या संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 के विपरीत थी। अनुच्छेद 105 और 194 संसद और विधानसभाओं में सांसदों और विधायकों की शक्तियों और विशेषाधिकारों से संबंधित हैं।
पीठ ने कहा कि अगर सांसद या विधायक पैसे लेकर सदन में भाषण या वोट देते हैं तो उनके खिलाफ मुकदमा चलाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 105 का हवाला देते हुए कहा कि किसी को घूसखोरी की कोई छूट नहीं है, चाहे वो सांसद हो या विधायक।
इस मामले पर करेगी शीर्ष अदालत विचार
शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा था कि वह इस बात की जांच करेगी कि क्या संसद और राज्य विधानसभाओं में भाषण देने या वोट देने के लिए रिश्वत लेने के लिए सांसदों को अभियोजन से दी गई छूट उन तक भी लागू है, भले ही उनके कार्यों में आपराधिकता जुड़ी हो।
पीठ में ये न्यायधीश रहे शामिल
सीजेआई फैसले का मुख्य भाग पढ़ते हुए कहा कि विधायिकाओं के सदस्यों द्वारा भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी को नष्ट कर देती है। इस सात-न्यायाधीशों पीठ में जस्टिस ए एस बोपन्ना, एम एम सुंदरेश, पी एस नरसिम्हा, जे बी पारदीवाला, संजय कुमार और मनोज मिश्रा शामिल थे।
जानिए क्या है पूरा मामला?
बता दें कि 1998 में पीवी नरसिम्हा राव बनाम सीबीआई मामले में पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने माना था कि सांसदों को सदन के अंदर दिए गए किसी भी भाषण और वोट के लिए आपराधिक मुकदमा चलाने के खिलाफ संविधान के तहत छूट प्राप्त है।