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ऐतिहासिक घटना! जिसने सालभर में बदल दी आम जनजीवन की तस्वीर
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले साल 8 नवंबर को अचानक 500 और 1000 रुपये के नोटों को रद किये जाने का ऐलान कर सबको भौंचक्का कर दिया था। मोदी ने नोटबंदी को भ्रष्टाचार, कालाधन, जाली नोट और आतंकवाद के खिलाफ उठाया गया कदम बताया था। अब इस ऐतिहासिक घटना को एक साल पूरा हो गया है और कोई भी इस फैसले के प्रभाव से अछूता नहीं रह गया है। सालभर के भीतर बाजार के साथ आम जनजीवन की भी पूरी तस्वीर बदल गई है।
क्या रहे प्रभाव
- बैंक मालामाल : एनपीए यानी बट्टे खाते से जृझ रहे बैंक नोटबंदी से मालामाल हो गए हैं। इतना पैसा बैंकिंग सिस्टम में आ गया है कि बैंक अब ज्यादा ऋण दे सकेंगे, ज्यादा निवेश कर सकेंगे।
- बिल्डरों पर लगाम : नोटंबदी से रियल एस्टेट सेक्टर में सफाई हुई है। यह सेक्टर ब्लैक मनी बनाने और खपाने का बड़ा जरिया बन गया था। अब इस सेक्टर में पारदर्शिता आ रही है। इस सेक्टर में नोटबंदी के प्रभाव को सरकार की दूसरी रिफॉर्म पॉलिसी से जोडक़र भी देखना चाहिए, जिसमें रेरा और जीएसटी जैसे सुधार शामिल हैं। नोटबंदी के छह महीने बाद इन्हें लागू किया गया था।
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- नकली नोटों पर लगाम : नोटबंदी का मकसद नकली नोटों पर लगाम लगाना भी था। लोकसभा में सरकार ने जानकारी भी दी कि 19.53 करोड़ रुपये के जाली नोट नोटबंदी के बाद पकड़े गए।
- होम लोन सस्ता : नोटबंदी के बाद स्टेट बैंक समेत कई बैंकों ने होम लोन की दरें घटाईं। स्टेट बैंक का होम लोन 8.30 फीसदी पर हो गया है। ये सबसे सस्ता होम लोन है।
- शेयर बाजार की छलांग : नोटबंदी के बाद से बाजार सन्नाटे में आ गया था। लेकिन तबसे बीएसई इंडेक्स 22 फीसदी बढ़ चुका है और निवेशकों की दौलत 30 लाख करोड़ से ज्यादा बढ़ चुकी है।
- पैन कार्ड : पैन कार्ड पंजीकरण में तीन गुना वृद्धि हुई है।
डिजिटल लेनदेन : अक्टूबर 2017 में ही 50 हजार करोड़ रुपए के डिजिटल भुगतान हुए जो पिछले साल की तुलना में 41 फीसदी ज्यादा हैं।
- फर्जी कंपनियों पर लगाम : 2.97 लाख शेल कंपनियों की पहचान भी की गयी है। इनमें से 2.24 लाख का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया गया। ये कंपनियां दो या अधिक साल से निष्क्रिय थीं।
- इनकम टैक्स भरने वाले बढ़े : 2016-17 में इनकम टैक्स भरने वाले लोगों की संख्या में पिछले साल के मुकाबले 25 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। 2015-16 में जहां 2.23 करोड़ लोगों ने इनकम टैक्स रिटर्न भरा था,वहीं 2016-17 में 2.79 करोड़ लोगों ने इनकम टैक्स रिटर्न भरा।
हवाला में कमी : हवाला के जरिए होने वाला लेनदेन नोटबंदी के बाद से 50 प्रतिशत कम हुआ है।
- महंगाई पर कंट्रोल : वित्त मंत्रालय के अनुसार पिछले तीन साल में औसत महंगाई दर 5 फीसदी से नीचे रही और जुलाई-2016 से जुलाई-2017 तक औसत दर 2 फीसदी के आसपास थी।
- रैंकिंग सुधरी : विश्व बैंक की ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ लिस्ट में भारत 130 से 100वीं रैंकिंग पर आ गया है। टैक्स पेइंग इंडेक्स में 53 रैंकिंग का सुधार हुआ है। अब इंडिया 172 से 119वीं पोजिशन पर आ गया है।
- रोजगार पर मार : सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनमी के आकड़ों के अनुसार नोटबंदी के बाद 2017 के शुरुआती 4 महीनों में तकरीबन 15 लाख नौकरियां गयी हैं। नोटबंदी के बाद कुछ महीनों में असंगठित क्षेत्र में लाखों लोगों की नौकरियां गई थीं, लेकिन समय बीतने के साथ नगदी का लेन देन अब सामान्य हो गया है। ऐसे में नौकरियों पर भी इसका सकारात्मक असर पडऩा लाजिमी है।
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- जीडीपी पर असर : सबसे बड़ा नकारात्मक प्रभाव देश की जीडीपी पर देखने को मिला है। जीडीपी की वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की पहली अप्रैल-जून की तिमाही में घटकर 5.7 प्रतिशत पर आ गई है। यह इसका तीन साल का सबसे निचला स्तर है।
प्रिटिंग-सप्लाई में सेना ने की मदद
नोटबंदी के बाद और सैलरी मिलने का दौर शुरू होने से पहले एयरफोर्स ने 210 टन करंसी की सप्लाई प्रिंटिंग प्रेस से बैंकों के सेंटर्स तक की। 200 जवानों को नोटों की छपाई में मदद के लिए लगाया गया।
काफी रिसर्च के बाद लागू हुआ फैसला
भारत में नोटबंदी जैसा ऐतिहासिक और बड़ा फैसला अचानक नहीं हुआ था। इसके लिए बाकायदा एक साल तक रिसर्च चला और तब यह निर्णय लिया गया। प्रधानमंत्री के एक ऐलान से महज चार घंटे में 86 फीसदी करंसी यानी 15.44 लाख करोड़ रुपए के नोट चलन से बाहर हो गए। यह रकम 60 छोटे देशों की जीडीपी के बराबर है।
नोटबंदी का ऐसा फैसला 1978 के बाद हुआ था। तब जनता पार्टी की सरकार ने 1000, 5000 और 10000 हजार के नोटों को बंद कर दिया था। एक विशेष एजेंसी के मुताबिक मोदी ने तब के राजस्व सचिव हसमुख अढिया समेत 6 लोगों की टीम बनाई। जब मोदी गुजरात के सीएम थे तो 2003 से 2006 के बीच अढिया उनके प्रिंसिपल सेक्रेटरी थे। इस टीम ने 1 साल तक मोदी के घर पर रिसर्च की थी।
प्लान सीक्रेट रखने के लिए गुजराती में ही बातचीत होती थी। मोदी ने 8 नवंबर को महज तीन मंत्रियों के साथ कैबिनेट मीटिंग की। इस मीटिंग में मोदी ने कहा- मैंने पूरी रिसर्च कर ली है। अगर नोटबंदी का फैसला नाकाम रहा तो इसकी जिम्मेदारी भी मेरी ही होगी।
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पहले 18 नवंबर की तारीख नोटबंदी के लिए तय की गई थी, लेकिन प्लान लीक होने का जोखिम था। इसलिए 8 नवंबर को ही फैसला कर लिया गया। रिजर्व बैंक ने बताया था कि नोटों को बंद करने के फैसले को बोर्ड की मीटिंग में शाम 5.30 बजे मंजूरी दी गई। रात 8 बजे मोदी ने इसका ऐलान कर दिया था।
नोटबंदी की सालगिरह
125 करोड़ भारतीयों ने निर्णायक जंग लड़ी और जीती। मैं भारत के लोगों का सम्मान करता हूं जिन्होंने देश से करप्शन और ब्लैक मनी को खत्म करने के लिए उठाए गए सरकार के फैसलों का साथ दिया।
नरेंद्र मोदी
नोटबंदी एक ट्रैजिडी है। हम उन लाखों ईमानदार लोगों के साथ खड़े हैं जिनकी जिंदगी और जीने के तरीके को प्रधानमंत्री के बिना सोचे-समझे उठाए गए कदम ने तबाह कर दिए। एक आंसू भी हुकूमत के लिए खतरा है, तुमने देखा नहीं आंखों का समंदर होना।
राहुल गांधी
मोदी सरकार ने नोटबंदी से न सिर्फ कालेधन और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई बल्कि इससे वित्तीय प्रणाली को सुचारू कर मजबूत अर्थव्यवस्था की नींव रखी। नोटबंदी और कालेधन के लिए एसआईटी जैसे बड़े निर्णय देश को कालेधन और भ्रष्टाचार से मुक्त करने की मोदी सरकार की प्रतिबद्धता को प्रमाणित करते हैं। काला धन विरोधी दिवस मोदी जी के साहसिक नेतृत्व और देश से कालेधन और भ्रष्टाचार की समाप्ति के लिए ऐतिहासिक फैसले नोटबंदी को समर्पित है।
अमित शाह
दुनिया के पांच अर्थशास्त्रियों ने कहा था
- फायदे से ज्यादा नुकसान: कौशिक बसु
भारत के पूर्व चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर कौशिक बसु ने न्यूयॉर्क टाइम्स में लिखा था कि मोदी सरकार का नोटबंदी का फैसला ‘गुड इकोनॉमिक्स’ कतई नहीं है। इससे फायदों से ज्यादा नुकसान होंगे। जीएसटी को आप गुड इकोनॉमिक्स की कैटेगरी में रख सकते हैं, लेकिन नोटबंदी को नहीं रख सकते।
- बेईमान ज्यादा सतर्क हो जाएंगे: पॉल क्रूगमैन
इकोनॉमिक्स का नोबेल पाने वाले पॉल क्रूगमैन ने कहा था, बड़े नोटों को बंद करने से भारत की इकोनॉमी को बड़ा फायदा होते नहीं दिख रहा। इस फैसले से सिर्फ करप्ट लोग भविष्य में ज्यादा अलर्ट हो जाएंगे। लोगों के व्यवहार में सिर्फ एक ही परमानेंट बदलाव आएगा, वह यह कि बेईमान लोग अपने पैसे को काले से सफेद करने के मामले में ज्यादा सतर्क हो जाएंगे और उसके ज्यादा नए तरीके ढूंढ लेंगे।
- बुनियाद हिलाने वाला मनमाना फैसला: अमत्र्य सेन
इकोनॉमिक्स के नोबेल से सम्मानित अमत्र्य सेन ने कहा था, नोटबंदी का फैसला नोटों की अहमियत, बैंक खातों की अहमियत और भरोसे पर चलने वाली पूरी इकोनॉमी की अहमियत को कम कर देता है। ये मनमाना फैसला है। बीते 20 साल में भारत ने काफी तेजी से तरक्की की है, लेकिन इसकी बुनियाद एक-दूसरे से कहे गए भरोसे के शब्द हैं। नोटबंदी का मनमाना फैसला यह कहने के बराबर है कि हमने वादा तो किया था, लेकिन हम उस वादे को पूरा नहीं कर सकते।
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- नसबंदी जैसा अनैतिक फैसला: स्टीव फोब्र्स
बिजनेस मैगजीन फोब्र्स के एडिटर इन-चीफ स्टीव फोब्र्स ने एक संपादकीय में लिखा था, नोटबंदी का फैसला जनता के पैसे पर डाका डालने जैसा है। 1970 के दशक में नसबंदी जैसा अनैतिक फैसला लिया गया था, लेकिन उसके बाद से नोटबंदी तक ऐसा फैसला नहीं लिया गया था। मोदी सरकार ने देश में मौजूद 86 फीसदी लीगल करेंसी एक झटके में अवैध कर दी। यह कदम देश की इकोनॉमी को तगड़ा झटका देगा।
- जड़ें जमा चुका करप्शन खत्म नहीं होगा: गाय सोरमन
फ्रेंच इकोनॉमिस्ट गाय सोरमन ने कहा था कि जड़ें जमा चुके करप्शन को नोटबंदी खत्म नहीं कर सकती। नरेंद्र मोदी का शासन में जल्दबाजी दिखाना कुछ निराश करने वाला है। मुझे लगता है कि इकोनॉमी को चलाने के लिए पहले से तय उपायों को अपनाना बेहतर कदम होता।