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नोटबंदी के बाद GST पर 'ममता' सख्त, मोदी सरकार को लागू करने में हो सकती है देरी
नई दिल्ली: नोटबंदी की छाया अगले साल 1 अप्रैल से लागू होने वाले वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) कानून पर साफ पड़ती दिखाई दे रही है। सभी चीजों पर एक समान कर को लेकर कुछ आपत्तियों के बाद राज्य सरकारें इसे लागू करने पर सहमत हो गई थीं लेकिन पिछले 8 नवंबर से हुए नोटबंदी के कारण अब इसमें देर होना साफ दिखाई दे रहा है। हालांकि केंद्र सरकार ने अभी उम्मीद नहीं छोड़ी है कि इसे आने वाले पहले अप्रैल से लागू कर दिया जाए।
समर्थन की कोशिश नाकाफी
पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी नोटबंदी के खिलाफ पूरी तरह मुखर हैं। वह अन्य राज्यों में जाकर समर्थन जुटाने की कोशिश कर रही हैं। ममता ने इसी सिलसिले में यूपी की राजधानी और बिहार की राजधानी का भी दौरा किया था। इन्हें यूपी सरकार का समर्थन भी मिला वाबजूद इसके निराश ही हाथ लगी। बिहार में लालू प्रसाद यादव के समर्थन के वाबजूद उन्हें ये सुनने को मिला कि 'वो दीदी हैं दादा बनने की कोशिश नहीं करें।'
दीदी का विरोध अब जीएसटी पर
नोटबंदी के बाद नंबर है जीएसटी का। जिसे पीएम नरेंद्र मोदी का दूसरा प्रोजेक्ट माना गया। नोटबंदी को लेकर विरोध के कारण अब ममता जीएसटी का भी विरोध कर रही हैं। जीएसटी को लेकर पिछले रविवार 11 दिसंबर को बैठक हुई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। विपक्ष के सुझाव और कुछ संशोधनों के बाद जीएसटी संसद के दोनों सदनों में पारित हो चुका है। विधेयक में राज्य और केंद्र के अधिकार और मुआवजे को लेकर चर्चा होनी थी लेकिन रविवार की बैठक में इसमें चर्चा नहीं हो सकी। अब अगली बैठक 22 और 23 दिसंबर को होनी है।
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जीएसटी को 15 राज्यों का समर्थन
संसद का वर्तमान शीतकालीन सत्र आगामी 16 दिसंबर तक है। लिहाजा ये तय है कि तीनों प्रावधान वर्तमान सत्र में नहीं रखे जा सकते हैं। इन प्रावधानों को लागू करने के लिए 15 राज्यों के समर्थन की जरूरत होगी जहां केंद्र सरकार को परेशानी होती दिखाई नहीं देती। देश के 13 राज्यों में बीजेपी की सरकार है। बिहार और उडीसा जीएसटी को समर्थन देने का वायदा कर चुके हैं। बिहार तो पहला राज्य बना जिसने जीएसटी का समर्थन किया था। जीएसटी को लेकर ही नीतीश और बीजेपी करीब आते दिखे थे।
ममता चाहती हैं बढे मुआवजा राशि
जीएसटी को लागू करने में तीन प्रावधान पर चर्चा होनी है। जीएसटी पर केंद्र और राज्यों के अधिकार, समेकित जीएसटी और मुआवजे की राशि। ममता बनर्जी की दलील है कि नोटबंदी के बाद मुआवजे की राशि बढ़ाई जानी चाहिए ताकि उनके राज्य को ज्यादा घाटा नहीं हो। हालांकि, ये दलील बेमानी है क्योंकि अन्य राज्यों ने ऐसी कोई मांग नहीं उठाई है। नोटबंदी के बाद ममता के धुर विरोधी वामपंथी दल भी ऐसी ही बात कर रहे हैं। केरल सरकार ने भी मुआवजे को लेकर अपना विरोध जताया है लेकिन ये विरोध उतना मुखर नहीं है। ममता बनर्जी का कहना है कि नोटबंदी के बाद उसके अपने घरेलू उत्पाद पर इसका बुरा असर पड़ना तय है। इसलिए मुआवजे का प्रतिशत बढ़ाया जाना चाहिए।
ममता की आपत्ति करवा सकती है देरी
संसद के दोनों सदनों में पारित हो जाने के बाद अब राज्यों को इसे लागू करना ही होगा। संसद का बजट सत्र आगामी फरवरी में होगा। केंद्र सरकार का प्रयास होगा कि तीनों प्रावधानों को इसी में पारित करा लिया जाए। इसके अलावा राज्यों की विधानसभाओं में भी इसे पारित कराना होगा। हालांकि आपत्ति उठाकर इसमें देरी की जा सकती है लेकिन रोका नहीं जा सकता। ममता बनर्जी यही कर रही हैं।