अब बाहर निकालो अवैध बांग्लादेशियों को, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उठी मांग

Illegal Bangladeshi : सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को बरकरार रखा है। इसके तहत अप्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने के लिए 1971 की कट-ऑफ तारीख को वैध ठहराया गया है।

Neel Mani Lal
Newstrack Neel Mani Lal
Published on: 17 Oct 2024 2:25 PM GMT
अब बाहर निकालो अवैध बांग्लादेशियों को, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उठी मांग
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Illegal Bangladeshi : सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद असम में विपक्षी दलों और विभिन्न संगठनों ने मांग की है कि सरकार 24 मार्च, 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों का पता लगाने और उन्हें निकाल बाहर करने की प्रक्रिया शुरू करे।

क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को बरकरार रखा है। इसके तहत अप्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने के लिए 1971 की कट-ऑफ तारीख को वैध ठहराया गया है।

1971 की कट-ऑफ तारीख 1985 के असम समझौते से जुड़ी है, जिसे तत्कालीन राजीव गांधी सरकार और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के बीच छह साल तक चले असम आंदोलन के अंत में किया गया था। समझौते में कहा गया है कि 24 मार्च, 1971 के बाद असम में प्रवेश करने वाले अवैध अप्रवासियों, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, का पता लगाया जाना चाहिए और उन्हें बाहर निकाल देना चाहिए।

कुछ विपक्षी दलों ने मांग की है कि असम को नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) के दायरे से बाहर रखा जाए, क्योंकि यह 1971 की कट-ऑफ तारीख के विपरीत है। सीएए को लागू करते हुए, केंद्र ने बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर, 2014 तक भारत में प्रवास करने वाले छह गैर-मुस्लिम समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता देने की व्यवस्था की है।

समझौते के खंड 6 में कहा गया है - असमिया लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषाई पहचान और विरासत की रक्षा, संरक्षण और संवर्धन के लिए, यथा उपयुक्त, संवैधानिक, विधायी और प्रशासनिक सुरक्षा उपाय प्रदान किए जाएंगे।

फैसले का स्वागत

कांग्रेस, ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ), रायजोर दल, असम जातीय परिषद (एजेपी) के अलावा एएएसयू और असम पब्लिक वर्क्स (एपीडब्ल्यू) ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है।

आसू के अध्यक्ष उत्पल सरमा ने कहा है कि इस फैसले के साथ ही अदालत ने इस बहस को खत्म कर दिया है कि विदेशियों का पता लगाने और उन्हें निर्वासित करने का आधार 1971 या 1951 होना चाहिए। सरकार को 25 मार्च 1971 के बाद असम में आए सभी अवैध प्रवासियों को बाहर निकालना चाहिए। उन्होंने कहा कि आसू के साथ-साथ केंद्र और असम की भाजपा सरकारें इस बात से खुश नहीं हैं कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से केवल 19 लाख लोग बाहर रह गए हैं। उन्होंने कहा - हमने एनआरसी आवेदकों के दस्तावेजों के पुनः सत्यापन की मांग करते हुए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, लेकिन भाजपा सरकारों ने ऐसा नहीं किया। हम मांग करते हैं कि वे पुनः सत्यापन की मांग करते हुए न्यायालय में हलफनामा दायर करें। उन्हें 25 मार्च, 1971 के बाद आए अवैध अप्रवासियों का पता लगाने में भी तेजी लानी चाहिए और उन्हें बाहर निकालना चाहिए।

राज्य कांग्रेस प्रमुख भूपेन कुमार बोरा ने इस फैसले को ऐतिहासिक असम समझौते में न्यायालय द्वारा अपना विश्वास जताने के रूप में देखा। एआईयूडीएफ विधायक रफीकुल इस्लाम ने कहा कि न्यायालय ने लंबे समय से चले आ रहे मुद्दे को सुलझा दिया है। उन्होंने कहा कि इस फैसले के बाद, हम चाहते हैं कि सरकार 1971 के बाद असम में आए अप्रवासियों का पुनर्वास न करे। अगर भाजपा उनसे इतना प्यार करती है, तो वह उन्हें गुजरात या अन्य जगहों पर पुनर्वासित कर सकती है।रायजोर दल के प्रमुख अखिल गोगोई ने राज्य के लोगों से अदालत के फैसले को स्वीकार करने का आग्रह किया है। गोगोई ने कहा, असम के लोगों के पास इस फैसले को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। अब उन्हें एकजुट होकर 24 मार्च, 1971 के बाद असम में आए सभी अप्रवासियों, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, को वापस भेजने का फैसला करना होगा।

एजेपी प्रमुख लुरिनज्योति गोगोई ने कहा कि चूंकि अदालत ने अवैध अप्रवासियों का पता लगाने और उन्हें वापस भेजने के लिए 1971 को आधार वर्ष के रूप में मान्य किया है, इसलिए केंद्र को असम में सीएए को निरस्त करने और असम समझौते के खंड 6 को लागू करने के लिए कदम उठाने चाहिए।

Rajnish Verma

Rajnish Verma

Content Writer

वर्तमान में न्यूज ट्रैक के साथ सफर जारी है। बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की। मैने अपने पत्रकारिता सफर की शुरुआत इंडिया एलाइव मैगजीन के साथ की। इसके बाद अमृत प्रभात, कैनविज टाइम्स, श्री टाइम्स अखबार में कई साल अपनी सेवाएं दी। इसके बाद न्यूज टाइम्स वेब पोर्टल, पाक्षिक मैगजीन के साथ सफर जारी रहा। विद्या भारती प्रचार विभाग के लिए मीडिया कोआर्डीनेटर के रूप में लगभग तीन साल सेवाएं दीं। पत्रकारिता में लगभग 12 साल का अनुभव है। राजनीति, क्राइम, हेल्थ और समाज से जुड़े मुद्दों पर खास दिलचस्पी है।

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