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एनआरसी: असम में 30 लाख की आबादी नहीं डाल सकेगी वोट !
असम में करीब 30 लाख की आबादी जिनका नाम एनआरसी में शामिल नहीं है उन्हें वोट देने के अधिकार से हाथ धोना पड़ सकता है। रेकॉर्ड के मुताबिक, ये ऐसे लोग हैं जो जिन लोगों ने अभी तक एनआरसी सूची में शामिल होने के लिए किसी भी प्रकार का दावा नहीं किया है।एनआरसी रिपोर्ट के मुताबिक, 40 लाख में से महज 10 लाख की आबादी ने ही इसके लिए फिलहाल दावा किया है।
गुवाहाटी : असम में करीब 30 लाख की आबादी जिनका नाम एनआरसी में शामिल नहीं है उन्हें वोट देने के अधिकार से हाथ धोना पड़ सकता है। रेकॉर्ड के मुताबिक, ये ऐसे लोग हैं जो जिन लोगों ने अभी तक एनआरसी सूची में शामिल होने के लिए किसी भी प्रकार का दावा नहीं किया है।एनआरसी रिपोर्ट के मुताबिक, 40 लाख में से महज 10 लाख की आबादी ने ही इसके लिए फिलहाल दावा किया है।
हालांकि असम में इन लोगों को नागरिकता साबित करने के लिए पर्याप्त अवसर मिले फिर भी दावों की संख्या बहुत ही कम रही।
एक अन्य अधिकारी का कहना था कि सभी को भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए पर्याप्त अवसर दिए गए हैं। इस बीच एनआरसी के राज्य समन्वयक कार्यालय की ओर से कहा गया है कि दावा पेश करने के दौरान वे डॉक्युमेंट स्वीकार नहीं किए जाएंगे,जो सूची से बाहर के हैं।
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सरकार के दृष्टिकोण से चुनाव आयोग का मतभेद
केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि नागरिकता के सबूत के रूप में एनआरसी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। लेकिन सरकार के इस दृष्टिकोण चुनाव आयोग से मतभेद रखता है जिसका मानना है कि जिन लोगों का नाम सूची में शामिल नहीं है उन्हें वोट देने से वंचित नहीं किया जा सकेगा।
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दावे और आपत्तियां की प्रक्रिया 15 दिसंबर तक
बता दें कि एनआरसी में दावे और आपत्तियां दाखिल करने की प्रक्रिया 15 दिसंबर को खत्म होगी। इसके कुछ दिनों बाद अंतिम सूची जारी की जाएगी।
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नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन
एनआरसी से पता चलता है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं। जिनके नाम इसमें शामिल नहीं होते हैं, उन्हें अवैध नागरिक माना जाता है। इसके हिसाब से 25 मार्च, 1971 से पहले असम में रह रहे लोगों को भारतीय नागरिक माना गया है।
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असम पहला राज्य है जहां भारतीय नागरिकों के नाम शामिल करने के लिए 1951 के बाद एनआरसी को अपडेट किया जा रहा है। एनआरसी का पहला मसौदा 31 दिसंबर और एक जनवरी की रात जारी किया गया था, जिसमें 1.9 करोड़ लोगों के नाम थे।
असम में बांग्लादेश से आए घुसपैठियों पर बवाल के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी अपडेट करने को कहा था। पहला रजिस्टर 1951 में जारी हुआ था। ये रजिस्टर असम का निवासी होने का सर्टिफिकेट है।
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इसके पहले असम में नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन का फाइनल ड्राफ्ट जारी होने के साथ ही राजनीतिक बवाल भी शुरू गया था। इस ड्राफ्ट में 40 लाख लोगों के नाम नहीं था। इसी के बाद से संसद से लेकर सड़क तक इसको लेकर हंगामा मचा हुआ है।उस समय से ही सभी विपक्षी दल एनआरसी को लेकर सरकार पर हमलावर हो गए हैं।यह मतदाओं की बहुत बड़ी संख्या है।