एनआरसी: तो जिला कलेक्टर देंगे नागरिकता,‘असम सम्मलित महासंघ’ में असंतोष

Anoop Ojha
Published on: 30 Oct 2018 9:45 AM GMT
एनआरसी: तो जिला कलेक्टर देंगे नागरिकता,‘असम सम्मलित महासंघ’ में असंतोष
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गुवाहाटी: असम के नेशनल सिटिजन रजिस्टर (एनआरसी) का मामला फिर से गरमा रहा है। बाहर से भले ही लगता हो कि सब शांत है लेकिन असम व पड़ोसी राज्यों में गतिविधियां तेज हैं।एनआरसी में जिनके नाम नहीं हैं उनको अपनी नागरिकता सिद्ध करने का एक आखिरी मौका दिया गया है। लेकिन इसमें सरकारी तंत्र और राजनीतिक दलों का भी अपना गेमप्लान चल रहा है। जिससे असम के मूल निवासियों में असंतोष है।

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हुआ ये है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उत्तर-पूर्व के सात राज्यों के कुछ जिला कलेक्टरों को अनुमति दी है कि वे पड़ोसी देशों से आए धार्मिक अल्पसंख्यकों (हिंदू, सिख, इसाई, जैैन, पारसी व बौद्ध) को मानवीय आधार पर भारत की नागरिकता दे दें। केंद्र के इस कदम की खूब आलोचना हो रही है कि जब मामला सुप्रीमकोर्ट में चल रहा है तो ऐसा आदेश क्यों दिया गया। और किसी भी गैर-नागरिक को किस आधार पर ऐसी तरजीह दी जा रही है? असम के तीस जनजातीय संगठनों के महासंघ ‘असम सम्मलित महासंघ’ ने इस छूट को गैरकानूनी करार दिया है और कहा है कि केंद्र ने ये कुछ राज्यों के चुनावों व अगले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रख कर किया है।

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केंद्र का नोटीफिकेशन २२ दिसंबर से प्रभावी होगा और इसके तहत यूपी, दिल्ली, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात और छत्तीसगढ़ के जिला कलेक्टरों को नागरिकता देने की इजाजत प्रदान की गई है।

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दूसरी ओर एनआरसी के कोआर्डिनेटर प्रतीक हजेला ने आरोप लगाया है कि नागरिकता रजिस्टर में अवैध प्रवासियों के नाम जोडऩे के प्रयास किए जा रहे हैं। असल में एनआरसी में नाम जुड़वाने के लिए जिन १५ दस्तावेजों को साक्ष्य माना गया था उनमें से 5 दस्तावेज अब हटा दिए गए हैं। यानी अब साक्ष्य के तौर पर 10 दस्तावेज ही मान्य होंगे। अब भाजपा, कांग्रेस और यूडीएफ जैसे दल और समूह इन 5दस्तावेजों को पुन: लिस्ट में शामिल करने की मांग कर रहे हैं।

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हजेला का कहना है कि इन 5 दस्तावेजों को फिर से शामिल करने की मांग करना असल में अवैध प्रवासियों को एनआरसी में डालने की योजनाबद्ध कोशिश है।

Anoop Ojha

Anoop Ojha

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