TRENDING TAGS :
स्टेशन अभी दूर है: आउटर पर थम जाते हैं ट्रेनों के पहिये, रफ्तार से गुजर जाता है समय
यदि किसी एक जोन की गाड़ी दूसरे जोन में समय से पहुंच भी जाती है तो अपने जोन की ट्रेन को आगे निकालने की कवायद में ट्रेन को आउटर पर रोक दिया जाता है। इसके बारे में रेलवे ट्रैफिक के अधिकारी बखूबी जानते हैं
सुधांशु सक्सेना
लखनऊ: ट्रेन यात्रियों की आम शिकायत है कि ट्रेनें टाइम से नहीं चलतीं। गंतव्य तक पहुंचने में घंटों लेट हो जाती हैं। किसी भी दिशा से आने वाली ट्रेनें रास्ते भर टाइम से चलती भी हैं तो लखनऊ के आउटर सिग्नल पर आ कर खड़ी हो जाती हैं।
हैरत की बात है कि प्लेटफार्म खाली होने के बावजूद यह स्थिति रहती है और ट्रेनें प्लेटफार्म तक आते-आते खासी लेट हो जाती हैं।
जोन में होड़ थाम देती है रफ्तार
चारबाग स्टेशन पर ट्रेन संचालन से जुड़े अधिकारी स्वीकार करते हैं कि रात 8 बजे के बाद चारबाग आने वाली हर 90 से 100 ट्रेनों में से लगभग 40 ट्रेनें आउटर पर काफी देर तक खड़ी रहती हैं। ऐसा भी नहीं है कि यह समस्या कोई नई है और रेलवे को मालूम नहीं है। सारी जानकारी होने के बावजूद समाधान का कोई प्रयास होता नहीं दिखाई देता।
रेलवे के एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि लखनऊ में ट्रेनों के दो जोन का कार्यालय है। एक उत्तर रेलवे और एक उत्तर पूर्व रेलवे। इन दोनों में आपस में होड़ मची रहती है। यदि किसी एक जोन की गाड़ी दूसरे जोन में समय से पहुंच भी जाती है तो अपने जोन की ट्रेन को आगे निकालने की कवायद में ट्रेन को आउटर पर रोक दिया जाता है। इसके बारे में रेलवे ट्रैफिक के अधिकारी बखूबी जानते हैं, लेकिन एक-दूसरे से समन्वय स्थापित करने के बजाय इस प्रकार की गतिविधि को बढ़ावा दिया जाता है।
49 साल में पांच गुना बढ़ीं ट्रेनें
रेलवे के ट्रेन संचालन से जुड़े रहे एक रिटायर्ड अधिकारी ने बताया कि पिछले 49 सालों में चारबाग स्टेशन पर आने वाली ट्रेनों की संख्या में पांच गुना से भी ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। लेकिन प्लेटफार्म की संख्या में आनुपातिक वृद्धि नहीं हो पाई। इस समय हर एक प्लेटफार्म पर 40 से 45 गाडिय़ों का भार है।
वर्ष 1972 में यहां दो नए प्लेटफार्म बनाए गए थे जबकि आवश्यकता इससे कहीं अधिक थी। उस समय चारबाग आने वाली कुल ट्रेनों की संख्या 60 के आसपास थी। आज इनकी संख्या 300 के आसपास है। इसके चलते संचालन में दिक्कतें आती हैं और ट्रेनें लेट हो जाती हैं। अक्सर स्पेशल ट्रेनों को समय से पहुंचाने की होड़ में भी कई ट्रेनें उपेक्षा का शिकार हो जाती हैं।
अप और डाउन पर रहता है लोड
ट्रेनों के लेट होने के पीछे अप और डाउन लाइनों पर ट्रेन लोड भी काफी हद तक जिम्मेदार है। उदाहरण के लिए दिलकुशा से चारबाग स्टेशन तक आने के लिए केवल एक अप और डाउन लाइन है। इसी तरह दिलकुशा से एक लाइन गोरखपुर की ओर जाती है जो कि बाराबंकी के बाद फैजाबाद निकल जाती है। इसी तरह दिलकुशा से लखनऊ-सुल्तानपुर, लखनऊ-प्रतापगढ़ और लखनऊ-इलाहाबाद रूट की ट्रेनें रवाना होती हैं।
इस तरह इन पांचों दिशाओं से आने वाली ट्रेनों के पास चारबाग स्टेशन तक पहुंचने के लिए केवल एक ही लाइन उपलब्ध रहती है। यही हाल चारबाग से इन दिशाओं में रवाना होते समय भी रहता है।
प्लेटफार्म खाली न होने से आउटर पर खड़ी रहती हैं ट्रेनें
ट्रेनों के आउटर पर खड़े रहने का प्रमुख कारण है कि चारबाग पर प्लेटफार्म खाली नहीं रहते हैं। उदाहरण के लिए चारबाग के प्लेटफार्म नंबर 1 से 10 बजकर 15 मिनट पर लखनऊ मेल दिल्ली के लिए रवाना होती है। इसके ठीक बाद रात 11 बजकर 30 मिनट पर एक एक्सप्रेस ट्रेन को इसी दिशा में रवाना किया जाता है।
इसके साथ प्लेटफार्म नंबर 2 पर रात 10 बजकर 30 मिनट पर चंडीगढ़ एक्सप्रेस जाती है। इसे प्लेटफार्म पर रात 10 बजे ही लगा दिया जाता है। जबकि इसी समय गोमती एक्सप्रेस प्लेटफार्म नंबर 3 पर आकर करीब 45 मिनट खड़ी रहती है। वहीं प्लेटफार्म नंबर 7 से सहारनपुर की गाड़ी जाती है जो डेढ़ से 2 घंटे प्लेटफार्म पर खड़ी रहती है। ऐसे में प्लेटफार्म नंबर 4, 5 और 6 से ही बाकी ट्रेनों का आगमन और प्रस्थान होता है।
ये ट्रेनें आउटर पर रहती हैं खड़ी
श्रमजीवी एक्सप्रेस को उतरेठिया से लखनऊ के बीच एक घंटा रोका जाता है। बेगमपुरा एक्सप्रेस को 45 मिनट रोका जाता है। दून एक्सप्रेस को सदर बाजार के पास 20 मिनट, आम्रपाली एक्सप्रेस को सदर बाजार के पास 15 मिनट, सदभावना एक्सप्रेस को सदर बाजार के पास 10 मिनट, वैशाली एक्सप्रेस को 15 मिनट से आधा घंटा, मरुधर को सदर बाजार के पास 20 मिनट रोका जाता है।
इसी तरह बरेली-वाराणसी एक्सप्रेस को आलमनगर में 20 मिनट, चंडीगढ़ एक्सप्रेस को आलमनगर के पास 15 मिनट, अवध आसाम को आलमनगर और चारबाग होम सिग्नल के पास 30 मिनट, पुष्पक एक्सप्रेस को अमौसी से चारबाग के बीच 30 मिनट, राप्तीसागर को अमौसी और चारबाग होम सिग्नल पर मिलाकर 30 मिनट रोका जाता है।
इनके अलावा भी कई ट्रेनें आउटर पर खड़ी की जाती हैं। यही कारण है कि इन रूटों पर चलने वाली ट्रेनों की रफ्तार को लेकर चाहे जो भी दावा किया जाए, लेकिन ट्रेनें हमेशा लेट हो जाती हैं।
जल्द व्यवस्था सुधारने का दावा
उत्तर रेलवे के जनसंपर्क अधिकारी विक्रम सिंह ने बताया कि ट्रेनों के लेट होने के पीछे लोड अधिक होना ही प्रमुख कारण है। इस समस्या को सुलझाने की दिशा में हम काम कर रहे हैं। चारबाग की क्षमता बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं। वहीं उत्तर पूर्व रेलवे के जनसंपर्क अधिकारी आलोक श्रीवास्तव का कहना है कि कई चरणों में रेल लाइनें बिछाने और रूट रिले प्रणाली पर काम हो रहा है। जल्द ही व्यवस्था में सुधार आएगा।
एनईआर रेलवे कर्मचारी संघ के पदाधिकारी अजय वर्मा ने बताया कि चारबाग पर क्षमता वृद्धि की तात्कालिक आवश्यकता है। यहां करीब 110 करोड़ के काम पेंडिंग हैं। अफसर इन्हें तेजी से पूरा करने में लगे हुए हैं। रेलवे बोर्ड ने मानकनगर से चारबाग और चारबाग से दिलकुशा तक दो रेल लाइन बिछाने का कार्य करवाने का निर्देश दिया है जिस पर तुरंत काम होना चाहिए।
चारबाग पर दो प्लेटफार्म भी बनने हैं। इसे भी अधिकारियों ने शुरू नहीं किया। इस काम के लिए 80 करोड़ का बजट महीनों पहले ही आ चुका है, लेकिन इस दिशा में टेंडर तक नहीं आमंत्रित किए गए। सिग्नल प्रणाली की बेहतरी व रूट रिले इंटरलॉकिंग का कार्य होना चाहिए। कई अधिकारी अपने-अपने जोन की ट्रेन को पास करवाने के लिए कुछ ट्रेनों को बेवजह रोक देते हैं और दोष कर्मचारियों पर मढ़ देते हैं। इसे भी खत्म करने की जरूरत है।
इन गाडिय़ों की थमी रफ्तार
बुधवार को लखनऊ उत्तर रेलवे की लखनऊ-कानपुर मेमू ट्रेन शाम 4 बजकर 10 मिनट पर चारबाग से चली और शाम 4 बजकर 23 मिनट पर मानकनगर रेलवे स्टेशन पहुंची। यहां करीब 15 मिनट खड़े रहने के बाद ही ट्रेन को आगे रवाना किया गया।
इसी प्रकार लखनऊ-कासगंज पैसेंजर 4 बजकर 30 मिनट पर चारबाग से चली और 4 बजकर 30 मिनट पर मानकनगर आउटर पहुंची और यहां 20 मिनट खड़ी रही। कारण जानने पर पता चला कि चारबाग से पहले पडऩे वाले मानकनगर स्टेशन पर सिर्फ तीन प्लेटफार्म हैं और यहां 28 ट्रेनों का बुधवार को हॉल्ट तय है।
इसी तरह राजधानी के गोमतीनगर रेलवे स्टेशन पर 18 ट्रेनों का हॉल्ट होता है। यहां पर भी मात्र 3 प्लेटफार्म हैं। बुधवार को कृषक एक्सप्रेस यहां पर सुबह 4 बजकर 48 मिनट पर आई,लेकिन उसे करीब 20 मिनट यहां रुकना पड़ा। इसी तरह यहां पर अवध एक्सप्रेस सुबह 7 बजकर 42 मिनट पर पहुंची मगर 15 मिनट रुकी रही।
आउटर पर ब्रेक, 8 घंटे के लगते हैं 13 घंटे
चारबाग स्टेशन से दिल्ली जाने के लिए अक्सर नीलाचल एक्सप्रेस से सफर करने वाले यात्री मनोज कुमार बताते हैं कि पुरी से नई दिल्ली तक चलने वाली नीलाचल एक्सप्रेस पुरी से लखनऊ की दूरी तय करते समय आधे घंटे से ज्यादा कभी लेट नहीं होती। लेकिन लखनऊ से दिल्ली पहुंचने में तीन से चार घंटे लेट हो जाती है।
यह ट्रेन सुबह 10 बजकर 55 मिनट पर पुरी से चलती है। इसका लखनऊ पहुंचने का समय दोपहर एक बजकर 15 मिनट है। इसे रात 9 बजकर 45 मिनट पर नई दिल्ली पहुंचना होता है। लेकिन कभी रात एक बजे तो कभी दो बजे पहुंचती है।
लखनऊ से दिल्ली के बीच कई आउटरों पर इसे रोका जाता है। लखनऊ से दिल्ली तक का 8 घंटे का सफर 12 से 13 घंटे का हो जाता है। यही हाल कमोबेश फरक्का एक्सप्रेस, कटिहार एक्सप्रेस, शहीद एक्सप्रेस समेत दर्जनों ट्रेनों का रहता है।
पौने तीन घंटे में पांच किलोमीटर
जम्मूतवी से चारबाग आने वाली बेगमपुरा एक्सप्रेस से आए यात्री सागर सक्सेना बताते हैं कि ट्रेन को पहले आलमनगर स्टेशन पर 15 मिनट रोका गया। इसके बाद चारबाग के होम सिग्नल पर करीब 25 मिनट खड़ा कर दिया गया। ट्रेन ने महज 5 से 6 किलोमीटर की दूरी तय करने में 40-45 मिनट का समय ले लिया।