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OMG! दुनिया भर के महासागरों को सता रही है रेत की भूख

raghvendra
Published on: 5 Jan 2018 11:30 AM GMT
OMG! दुनिया भर के महासागरों को सता रही है रेत की भूख
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दुनिया भर के महासागरों को रेत की भूख सता रही है। लेकिन इंसान इतनी रेत खोद रहा है कि पूरा इकोसिस्टम चरमराने लगा है। तटीय इलाकों में इसका असर साफ दिखने लगा है। पुद्दुचेरी का समुद्र तट हो या मोरक्को का तटीय शहर तंजीर। दोनों जगहों पर कभी सुनहरी रेत से भरा खूबूसरत बीच हुआ करता था। समुद्र की लहरें हर वक्त उस रेत के साथ खेला करती थीं। लेकिन अब ये तस्वीरें सिर्फ अतीत का हिस्सा हैं। पुद्दुचेरी और तंजीर में अब सुनहरी रेत से सजे बड़े बीच नहीं हैं बल्कि पत्थरों से टकराता समुद्र है।

तंजीर का बीच रेत की अधांधुंध चोरी से उजड़ गया। लेकिन रेत चुरायी किसने और क्यों? इसका जवाब जर्मन एनवॉयरॉन्मेंट एजेंसी (यूबीए) के हेरमान केसलर देते हैं, ‘हमारे पास बहुत ज्यादा रेत है लेकिन उसकी बहुत ज्यादा मांग भी है।’ टूथपेस्ट से लेकर स्टोन वॉश जींस तैयार करने में रेत का इस्तेमाल होता है।

मिट्टी के बर्तनों, किचेन के सिंक, टॉयलेट सीट, वॉशबेसन और कांच समेत कई चीजें रेत की मदद से ही बनाई जाती हैं। रेत में मौजूद सिलिकन कंप्यूटर और स्मार्टफोन की चिप में भी मौजूद होता है। दुनिया भर में जो सिलिकन उद्योग खड़ा है, उसके लिए ज्यादातर सिलिका, रेत से ही निकलता है।

लेकिन रेत की सबसे ज्यादा मांग निर्माण उद्योग में है. इमारतें और पुल बनाने के लिए रेत अहम कच्चा माल है। ईंट, असफाल्ट और कंक्रीट में भी रेत लगती है। एक आम घर के निर्माण में ही करीब 200 टन रेत इस्तेमाल होती है, एक किलोमीटर लंबा हाईवे बनाने के लिए 30,000 टन रेत की जरूरत पड़ती है और एक परमाणु बिजली घर बनाने में करीब 1.2 करोड़ टन रेत इस्तेमाल होती है।

संयुक्त राष्ट्र एनवॉयरॉन्मेंट प्रोग्राम (यूएनईपी) की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में हर साल रेत की खपत करीब 40 अरब टन हो चुकी है। एक शोधकर्ता के अनुसार, रेत एक जीवाश्म संसाधन है। रेत बनने में लाखों साल लगते हैं, लेकिन खनन के जरिये कुछ दशकों में इसे खत्म किया जा सकता है। रेत को लेकर जागरूकता की सख्त जरूरत है।

और ऐसा नहीं है कि सिर्फ एक या दो देश ही इस समस्या से जूझ रहे हैं।

सिंगापुर रेत का सबसे बड़ा खरीदार है। कई छोटे द्वीपों वाले इस देश ने बीते 40 साल में समुद्र में रेत भर जमीन का विस्तार किया। खरबों टन रेत झोंकने के बाद भी सिंगापुर सिर्फ 130 वर्गकिलोमीट जमीन ही हासिल कर सका। सिंगापुर के लिए ज्यादातर रेत इंडोनेशिया, मलेशिया, वियतनाम और कंबोडिया से आई लेकिन अब चारों देशों ने अपने बीचों से रेत का निर्यात बैन कर दिया है। प्रतिबंध के चलते एक मीट्रिक टन रेत का दाम 2.55 यूरो से बढक़र 161 यूरो हो चुका है।

ज्यादातर देशों में रेत बजरी के खनन का काम भ्रष्टाचार और अपराधों से जुड़ा है। केसलर कहते हैं, ‘जो लोग इसके खनन में हैं वे धमकियों और हत्याओं से भी नहीं घबराते।’ जमैका से नाइजीरिया तक रेत के खनन में अपराधी छाये हुए हैं। भारत में रेत माफिया अपनी क्रूरता के लिए बदनाम हैं। कहीं तटों से रेत चुराई जा रही है तो कहीं नदियां रेत से महरूम कर दी गई हैं। एक ही रात में दुनिया भर में अरबों टन रेत चोरी की जाती है। ज्यादातर रेत आस पास हो रहे निर्माण में ही खप जाती है।

रेगिस्तान की रेत काम की नहीं

यह चोरी दोधारी तलवार साबित हो रही है। तट पर मौजूद रेत समुद्र की लहरों को सीधे जमीन से टकराने से पहले ही सोख लेती है। लेकिन इसके अभाव में समुद्र का पानी जमीन काटता जा रहा है। नदियों से रेत चुराने के चलते तटों तक नयी बालू भी समुद्र तक नहीं पहुंच रही है और दोहरी मार पड़ रही है। रेत पानी को साफ करने के काम भी करती है। नदी की रेत में कई बैक्टीरिया होते हैं जो समुद्र में घुलने के बाद एक नए इकोसिस्टम में सक्रिय हो जाते हैं लेकिन रेत अगर समुद्र तक पहुंचेगी ही नहीं, तो यह प्रक्रिया भी रुक जाएगी।

रेत के अंधाधुंध खनन पर लगाम लगानी होगी। इसके अलावा और कोई चारा नहीं है। रेगिस्तान की रेत बहुत बारीक होती है और उसमें मिट्टी भी बहुत होती है, लिहाजा वह बहुत अच्छी नहीं मानी जाती। ऐसे में ले देकर समुद्र और नदी की रेत ही बचती है जो लगातार घटती जा रही है। रेत खंगालता इंसान अभी इस काबिल नहीं हुआ है कि वह लैब या फैक्ट्री में कुदरत जैसी रेत बना सके।

केसलेर कहते हैं, हमें रेत चाहिए, इसका कोई और विकल्प नहीं है। भारत में रेत का अवैध खनन कितना होता है इसका कोई आंकड़ा नहीं है। हां, इतना जरूर है कि 2015-16 में खनिज के अवैध खनन के 19 हजार मामले दर्ज किये गये। इन खनिज में रेत भी शामिल है।

बजरी और बालू

दुनिया में बालू और बजरी का खनन सबसे ज्यादा किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि विश्व में जितना खनन होता है उसमें बालू और बजरी का हिस्सा 85 फीसदी है। 2014 की एक रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में सालाना 40 बिलियन टन बालू और बजरी का खनन होता है।

इसकी तुलना में कोयले और तेल का दोहन तो कुछ भी नहीं है। चीन की पोयांग झील का हाल देखिये, यह विश्व की सबसे बड़ी बालू की खान मानी जाती है। हर साल इस झील से 236 मिलियन वर्ग फुट बालू निकाली जाती है। इतनी बड़ी तादाद में बालू निकाले जाने का नतीजा ये है कि इस झील का स्वरूप ही बदल गया है।

कितना अवैध खनन, कोई आंकड़ा नहीं

भारत में रेत का अवैध खनन कितना होता है इसका कोई आंकड़ा नहीं है। हां, इतना जरूर है कि 2015-16 में खनिज के अवैध खनन के 19 हजार मामले दर्ज किये गये। इन खनिज में रेत भी शामिल है। अनुमान है कि भारत में हर साल लगभग 15 करोड़ डॉलर की रेत अवैध तरीके से निकाली जा रही है। इनमें गुजरात और महाराष्ट्र प्रमुख राज्य हैं। मुम्बई की वसई की खाड़ी के इलाके से रेत का अवैध खनन करने में ही ढेरों लोग लगे हुए हैं।

ये लोग रेत निकालने के लिए लगभग 40 फीट गहरे पानी में उतरते हैं। यहां पानी एकदम काला और गंदा है और ये सिर्फ एक लोहे के सरिये के सहारे 12 मीटर पानी में लोहे की बाल्टी लेकर उतर जाते हैं। हालांकि भारत में कानूनी तौर पर सक्शन पंप की मदद से नदियों से रेत का खनन किया जाता है और उसकी तुलना में इस खनन की मात्रा बहुत अधिक नहीं है लेकिन निर्माण क्षेत्र में बढ़ती रेत की मांग की वजह से इस तरह की गैरकानूनी खनन प्रक्रिया जारी है। इस काम में जोखिम होने के बावजूद रेत निकालने वाले मजदूर लगातार यह काम कर रहे हैं। एक पूरी नाव रेत और बजरी निकालने की कीमत 1 हजार रुपए है।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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