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One Nation One Election: वन नेशन वन इलेक्शन के फायदे और नुकसान
One Nation One Election Benefits and Side Effects: अगर एक देश एक चुनाव के फायदों की बात करें तो सबसे बड़ा फायदा सरकारी खजाने को वित्तीय बचत का होगा।
One Nation One Election Benefits and Side Effects: पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविद के पैनल की रिपोर्ट पर वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव को कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद अब एक बार फिर से वन नेशन वन इलेक्शन के फायदे और नुकसान पर बहस छिड़ गई है। वन नेशन वन इलेक्शन की नीति देश में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की बात करती है। इसका मतलब यह निकलता है कि देश के मतदाता लोकसभा और राज्य विधानसभा के लिए एक समय नहीं तो एक ही साल मतदान करेंगे। वर्तमान में कुछ ही राज्य ऐसे हैं जहां लोकसभा चुनाव के साथ चुनाव हो सकते हैं बाकी राज्यों का चुनावी चक्र अलग अलग सालों में है।
एक देश एक चुनाव के फायदे (One Nation One Election Ke Fayde Hindi)
अगर एक देश एक चुनाव के फायदों की बात करें तो सबसे बड़ा फायदा सरकारी खजाने को वित्तीय बचत का होगा। एक साथ चुनाव कराने से सरकारी खजाने और राजनीतिक दलों द्वारा कई चुनाव अभियानों पर खर्च होने वाली लागत काफी कम हो सकती है। दूसरी बात यह कि अलग अलग साल या समय पर चुनाव होने से बार बार चुनाव अधिकारियों और सुरक्षा बलों की तैनाती से जो बोझ पड़ता है उसमें वन नेशन वन इलेक्शन से कमी आएगी। तीसरी बात ये है कि बार बार के चुनावों से लगने वाली चुनावी आचार संहित का चलते बेहतर शासन और नीति के कार्यान्वयन में जो व्यवधान आता है वह बेहतर ढंग से सुनिश्चित हो सकेगा।
एक देश एक चुनाव के नुकसान और चुनौतियाँ (One Nation One Election Ke Nuksan Hindi)
एक देश एक चुनाव की कोविंद पैनल की सिफारिश को मंजूरी के बाद ये बात आ रही है कि इसे अमल में लाने के लिए संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि इस नीति को लागू करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 83, 85, 172, 174 और 356 में संशोधन की जरूरत होगी, जो संसद और राज्य विधानसभाओं की शर्तों और विघटन को नियंत्रित करते हैं।
ये व्यवस्था लागू करने के बाद किसी राज्य या केंद्र सरकार के कार्यकाल की समाप्ति से पहले उसके शीघ्र विघटन से निपटना एक बड़ी चुनौती होगी। इसके साथ ही क्षेत्रीय दलों को डर है कि एक साथ चुनावों के दौरान उनके स्थानीय मुद्दों पर राष्ट्रीय दलों भारी पड़ सकते हैं।
इस नीति के लागू होने के बाद चुनाव आयोग ने ईवीएम की खरीद के लिए हर 15 साल में लगभग ₹10,000 करोड़ की आवर्ती लागत का अनुमान लगाया है। जो कि अभी किस्तों में खर्च होती रहती है जिससे एकमुश्त लोड नहीं आता है। कांग्रेस और आप सहित कई विपक्षी दलों ने प्रस्ताव को "अलोकतांत्रिक" और संघीय ढांचे के लिए खतरा बताते हुए इसकी आलोचना की है।