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One Nation One Election: भारत में पहले भी हुए हैं एकसाथ चुनाव

One Nation One Election Bill Meaning: एक साथ चुनाव कराने की सिर्फ प्रथा ही थी इसका कोई कानूनी प्रावधान नहीं था न इस प्रथा को तोड़ने के लिए कोई कानून बना।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 18 Sept 2024 3:24 PM IST
One Nation One Election Bill Meaning:
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One Nation One Election Bill Meaning: 

One Nation One Election Bill Meaning: भारत में फिलहाल राज्यों के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब है कि पूरे देश में एकसाथ ही लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हों। यानी मतदाता लोकसभा और राज्य के विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर या चरणबद्ध तरीके से अपना वोट डालेंगे।

भारत में एक साथ मतदान का इतिहास 1951-52 में हुए पहले आम चुनावों से मिलता है। उस समय, लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव हुए थे। यह प्रथा 1957, 1962 और 1967 में हुए तीन आम चुनावों में जारी रही। हालाँकि, एक साथ चुनावों का चक्र 1968 और 1969 में बाधित हो गया, जब कुछ राज्य विधानसभाएँ समय से पहले भंग कर दी गईं थीं। 1970 में लोकसभा को भी समय से पहले ही भंग कर दिया गया था और 1971 में नए चुनाव हुए थे। तब से एक साथ चुनावों की प्रथा को पुनर्जीवित नहीं किया गया है। एक साथ चुनाव कराने की सिर्फ प्रथा ही थी इसका कोई कानूनी प्रावधान नहीं था न इस प्रथा को तोड़ने के लिए कोई कानून बना।

पैसा बचेगा

भारत चुनाव कराने में दुनिया में टॉप पर है। चुनावों में हमसे ज्यादा पैसा अमेरिका जैसा अमीर मुल्क भी खर्च नहीं करता। चुनाव आयोग और सरकार जो खर्च करती है उससे अलग राजनीतिक दल और नेता भी बेहिसाब खर्च करते हैं। और इस खर्च की भरपाई और कोई नहीं, हम और आप ही करते हैं ये भी याद रखिये। एक साथ चुनाव कराने से और कुछ नहीं तो समय और पैसा खूब बचेगा। हर चुनाव में बड़े पैमाने पर पैसा खर्च किया जाता है। जान लीजिये कि 2019 के लोकसभा चुनाव में करीब 60,000 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। ये कोई छोटी रकम नहीं है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 2009 के लोकसभा चुनावों में सरकारी खजाने पर लगभग 1,115 करोड़ रुपये और 2014 के चुनावों में लगभग 3,870 करोड़ रुपये का खर्च आया था। हालाँकि, पार्टियों और उम्मीदवारों के खर्च सहित, चुनावों पर खर्च किया गया वास्तविक धन कई गुना अधिक था। समझा जाता है कि चुनाव आयोग ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के एक साथ चुनाव कराने की लागत 4,500 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया है।

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