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One Nation One Election: 'एक देश एक चुनाव' बिल को केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी, मौजूदा संसद सत्र में बिल पेश होने की संभावना

One Nation One Election: एक देश एक चुनाव बिल को केंद्रीय कैबिनेट ने आज मंजूरी प्रदान कर दी। मौजूदा शीतकालीन सत्र में ही बिल को पेश किया जा सकता है। बिल पास होने के बाद विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ कराये जा सकेंगे।

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Newstrack Network
Published on: 12 Dec 2024 2:32 PM IST (Updated on: 12 Dec 2024 3:33 PM IST)
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One Nation One Election (Pic:Newstrack)

One Nation One Election: एक देश एक चुनाव बिल को केंद्रीय कैबिनेट ने आज मंजूरी प्रदान कर दी। मौजूदा शीतकालीन सत्र में ही बिल को पेश किया जा सकता है। बिल पास होने के बाद विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ कराये जा सकेंगे। बिल को चर्चा के लिये सरकार जेपीसी के पास भी भेज सकती है। सरकार चाहती है कि बिल पर आम सहमति बने इसके लिये सरकार बिल को जेपीसी के पास भी भेजने से नहीं हिचक रही। इसके साथ ही सभी राज्यों के विधानसभा के अध्यक्षों को भी आमंत्रित किया जा सकता है और साथ ही साथ देश प्रबुद्ध लोगों से भी रायशुमारी भी की जा सकती है। सरकार को भरोसा है कि बिल पर आम सहमति बन जाएगी।

पूर्व राष्ट्रपति की अगुवाई में बनी थी कमेटी

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी समिति ने 62 राजनीतिक दलों से संपर्क किया था। इनमें से 32 दलों ने 'एक देश, एक चुनाव' के प्रस्ताव का समर्थन किया, जबकि 15 दलों ने इसका विरोध किया और 15 दलों ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। 'एक देश, एक चुनाव' मोदी सरकार की प्रमुख प्राथमिकताओं में से एक है। 2024 के लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में भी बीजेपी ने इस मुद्दे का उल्लेख करते हुए कहा था कि समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए काम किया जाएगा।

क्या है मकसद ?

एक देश, एक चुनाव का प्रस्ताव, जो कि बीजेपी के चुनावी घोषणापत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, एक नया और साहसिक कदम है, जिसके तहत लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एक साथ आयोजित करने का विचार है। इसका मुख्य उद्देश्य चुनावों के खर्च को कम करना और प्रशासनिक बोझ को घटाना है।

यह विचार नया नहीं है। भारत में 1951 से 1967 तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते थे। तब लोग केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के लिए एक ही समय में मतदान करते थे। हालांकि, 1968-69 में कुछ राज्यों के पुनर्गठन और नए राज्यों के गठन के कारण यह प्रणाली स्थगित कर दी गई थी।

लेकिन अब, समय के साथ-साथ इस प्रस्ताव पर फिर से गंभीर विचार किया जा रहा है। अगर यह योजना लागू होती है तो न केवल चुनावी खर्च में कमी आएगी, बल्कि चुनावी प्रक्रिया में भी पारदर्शिता और सुगमता बढ़ेगी। यह कदम भारत की चुनावी व्यवस्था में एक नई क्रांति का प्रतीक हो सकता है, जो संसाधनों की बचत और समय की प्रभावी उपयोगिता सुनिश्चित करेगा।



Shivam Srivastava

Shivam Srivastava

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