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One Nation One Election: किस सियासी दल को होगा फायदा और किसे उठाना पड़ेगा नुकसान,जानिए पूरा ब्योरा
One Nation One Election: कमेटी के सदस्यों की घोषणा भी जल्द ही हो जाएगी। केंद्र सरकार की ओर से संसद का विशेष सत्र 18 से 22 सितंबर के बीच बुलाए जाने के एक दिन बाद यह कदम उठाया गया है।
One Nation One Election: मोदी सरकार की ओर से संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने के बाद एक देश-एक चुनाव की चर्चाओं ने तेजी पकड़ ली है। अब मोदी सरकार ने इस दिशा में एक कदम और बढ़ाते हुए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाने का भी ऐलान किया है। कमेटी के सदस्यों की घोषणा भी जल्द ही हो जाएगी। केंद्र सरकार की ओर से संसद का विशेष सत्र 18 से 22 सितंबर के बीच बुलाए जाने के एक दिन बाद यह कदम उठाया गया है। हालांकि सरकार की ओर से अभी तक विशेष सत्र के एजेंडे का खुलासा नहीं किया गया है।
मुंबई में विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया की बैठक के दौरान मोदी सरकार की और से उठाए गए इस कदम ने विपक्षी दलों की उलझने भी बढ़ा दी हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समेत कई विपक्षी नेता मोदी सरकार की ओर से पहले चुनाव कराने की आशंका जता चुके हैं। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि यदि मोदी सरकार की ओर से वन नेशन,वन इलेक्शन की दिशा में कदम बढ़ाया गया तो किसे सियासी फायदा होगा और किसे नुकसान।
इन पांच राज्यों में टालना पड़ेगा चुनाव
देश के पांच राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव अगले कुछ महीनों में कराया जाना है। इन पांच राज्यों में इन पांचों राज्यों में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस समेत अन्य राजनीतिक दलों में चुनावी बाजी जीतने के लिए बड़ा अभियान छेड़ रखा है।
इन राज्यों में राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें हैं ।जबकि मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई में भाजपा की सरकार सत्तारूढ़ है। तेलंगाना में केसीआर की पार्टी बीआरएस की सरकार है। अगर एक देश-एक चुनाव पर सैद्धांतिक सहमति बनी तो इन राज्यों में विधानसभा के चुनाव कुछ समय के लिए टाले जा सकते हैं।
आंध्र प्रदेश-ओडिशा पर ज्यादा असर नहीं
आंध्र प्रदेश और ओडिशा में क्षेत्रीय दलों की सरकारें हैं। इन दोनों राज्यों में अप्रैल 2019 के दौरान विधानसभा चुनाव कराए गए थे। ओडिशा में नवीन पटनायक की अगुवाई में बीजू जनता दल ने जीत हासिल करते हुए सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की थी जबकि आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी की अगुवाई में वाईएसआर कांग्रेस ने बड़ी जीत हासिल की थी। ऐसे में इन दोनों राज्यों का विधानसभा चुनाव अगले साल लोकसभा चुनाव के साथ कराया जा सकता है और इसमें कोई ज्यादा दिक्कत नहीं दिख रही है।
महाराष्ट्र समेत इन राज्यों पर पड़ेगा असर
2019 के आखिर में देश के तीन और प्रमुख राज्यों में विधानसभा चुनाव कराए गए थे। इन राज्यों में महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा शामिल हैं। महाराष्ट्र में चुनाव के बाद कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) ने हाथ मिलाते हुए महाविकास अघाड़ी गठबंधन का गठन किया था और उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाया गया था। पिछले साल एकनाथ शिंदे की अगुवाई में शिवसेना में हुई बगावत के बाद उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था और शिंदे ने भाजपा के साथ हाथ मिलाते हुए सरकार बना ली थी।
हरियाणा में भाजपा को सरकार बनाने के लिए जेजेपी के नेता दुष्यंत चौटाला की मदद लेनी पड़ी थी और मनोहर लाल खट्टर मुख्यमंत्री बने थे। झारखंड में विपक्षी गठबंधन ने एनडीए को करारा झटका देते हुए चुनावी बाजी जीत ली थी और हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया गया था। इन तीनों राज्यों में 2024 के आखिर में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित है।
बिहार और दिल्ली में विपक्ष को लगेगा झटका
2020 में बिहार और दिल्ली में विधानसभा के चुनाव कराए गए थे। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में आम आदमी पार्टी ने बड़ी जीत हासिल की थी जबकि बिहार में एनडीए ने विपक्षी महागठबंधन को पीछे छोड़ दिया था। बिहार में भाजपा ने बड़ा दिल दिखाते हुए कम सीटें जीतने के बावजूद जदयू नेता नीतीश कुमार को एक बार फिर मुख्यमंत्री बनाया था मगर बाद में नीतीश कुमार ने पलटी मारते हुए राजद से हाथ मिला लिया।
नीतीश कुमार अभी भी बिहार के मुख्यमंत्री बने हुए हैं और भाजपा की अगुवाई में एनडीए उन्हें सत्ता से बेदखल करने की कोशिश में जुटा हुआ है। इन दोनों राज्यों में विधानसभा चुनाव 2025 में प्रस्तावित हैं। ऐसे में इन दोनों राज्यों में एक देश-एक इलेक्शन की वजह से विपक्षी दलों को झटका लग सकता है।
ममता और स्टालिन भी आएंगे लपेटे में
2021 में चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में चुनाव कराए गए थे। पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु और केरल के साथ ही पुडुचेरी के मतदाताओं को अपनी सरकार चुनने का मौका मिला था। इनमें से तीन राज्यों पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल में विपक्षी दलों की सरकारें हैं। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की अगुवाई में टीएमसी ने बड़ी जीत हासिल करते हुए सरकार बनाई थी जबकि तमिलनाडु में द्रमुक नेता एमके स्टालिन ने बड़ी जीत हासिल करते हुए सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की थी।
केरल में वाम दलों ने यूडीएफ को पीछे छोड़ते हुए सरकार बनाई थी। असम में भाजपा ने जीत हासिल करते हुए हिमंत बिस्वा सरमा को मुख्यमंत्री बनाया था। इन सभी राज्यों में 2026 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में तीन राज्यों में विपक्षी दलों को समय से पहले विधानसभा चुनाव का खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
यूपी समेत इन राज्यों में भाजपा को नुकसान
सबसे दिलचस्प मामला तो साल 2022 का है। 2022 में फरवरी-मार्च महीने के दौरान उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव कराए गए थे। इन चुनावों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में बीजेपी जीत हासिल करते हुए सरकार बनाने में कामयाब रही थी जबकि पंजाब में आम आदमी पार्टी ने सभी दलों पर बड़ी जीत हासिल की थी। उत्तर प्रदेश को सियासी नजरिए से सबसे अहम माना जाता है और वन नेशन-वन इलेक्शन पर सहमति बनी तो यहां तय समय से काफी पहले विधानसभा चुनाव कराने होंगे। भाजपा को उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भी समय से पहले चुनाव का झटका लगेगा जबकि आप को पंजाब में नुकसान उठाना पड़ेगा।
पिछले साल के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव कराए गए थे। गुजरात में भाजपा ने ऐतिहासिक जीत हासिल करते हुए एक बार फिर सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की थी जबकि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया था। इन दोनों सरकारों का कार्यकाल 2027 के आखिर तक है और ऐसे में गुजरात में भाजपा और हिमाचल में कांग्रेस को बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा।
कर्नाटक में कांग्रेस को लगेगा सबसे बड़ा झटका
वन नेशन-वन इलेक्शन पर सहमति बनने की स्थिति में कांग्रेस को सबसे बड़ा नुकसान कर्नाटक में उठाना पड़ेगा। कर्नाटक में इस साल मई महीने के दौरान विधानसभा चुनाव कराए गए थे जिसमें कांग्रेस ने शानदार जीत हासिल की थी। कांग्रेस ने भाजपा को करारा झटका देते हुए 135 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि भाजपा सिर्फ 66 सीटों पर सिमट गई थी।
जनता दल (एस) को 19 सीटों पर जीत मिली थी जबकि चार सीटों पर अन्य उम्मीदवार विजयी हुए थे। लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव कराए जाने से कांग्रेस को कर्नाटक में बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा। यहां तय समय से काफी पहले विधानसभा चुनाव कराए जाएंगे।