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राष्ट्रपति चुनाव: रणनीति के तहत विपक्ष ने नहीं खोले पत्ते, बढ़ गई मोदी की दुविधा
एक वरिष्ठ नेता का कहना था कि अगर हम बैठक में संभावित नामों पर अनौपचारिक चर्चा भी करते तो इससे सत्ता पक्ष या प्रधानमंत्री मोदी को यही बहाना मिलता कि विपक्ष ने आम सहमति से साझा उम्मीदवार की बाबत सरकार की कोशिशों का इंतजार तक नहीं किया।
उमाकांत लखेड़ा
नई दिल्ली: आगामी राष्ट्रपति चुनाव में आम सहमति से उम्मीदवार की तलाश करने के लिए विपक्ष ने गेंद प्रधानमंत्री मोदी के पाले में फेंक दी है। ऐसा करके विपक्ष ने यह संदेश दे दिया है कि सरकार विपक्षी पार्टियों के बीच आम सहमति के लिए ईमानदारी से पहल करे।
शुक्रवार को सोनिया गांधी के बुलावे पर17 विपक्षी पार्टियों की बैठक में जानबूझकर विपक्ष के साझा उम्मीदवार के नाम पर कोई चर्चा तक नहीं की गई।
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सधी चाल
विपक्ष की इस बैठक में शामिल रहे एक वरिष्ठ नेता का कहना था कि अगर हम बैठक में संभावित नामों पर अनौपचारिक चर्चा भी करते तो इससे सत्ता पक्ष या प्रधानमंत्री मोदी को यही बहाना मिलता कि विपक्ष ने आम सहमति से साझा उम्मीदवार की बाबत सरकार की कोशिशों का इंतजार तक नहीं किया। विपक्षी पार्टियों का मानना है कि यही सही रणनीति है।
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ज्ञात रहे कि पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को 2002 में राष्ट्रपति बनाने का प्रस्ताव तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने किया था। यह अलग बात है कि कलाम के नाम पर विपक्ष में फूट पड़ गई थी। मुलायम सिंह ने कलाम के नाम का स्वागत किया और भाजपा के साथ खुलकर वोट किया। लेकिन इस बार भाजपा विरोधी करीब-करीब पूरा विपक्ष चुनाव प्रकिया चालू होने के तीन सप्ताह पहले ही एकजुटता दिखाने में कामयाब रहा।
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मोदी के पाले में गेंद फेंककर विपक्ष ने एक तरह से पीएम मोदी पर यह मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने में कामयाबी हासिल कर ली है कि उन्हें सोच समझकर गैर विवादित नाम ही आगे लाना होगा।
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संघ का दबाव
हालांकि, मोदी पर संघ की ओर से दबाव बना हुआ है। कारण यह है कि केंद्र में एनडीए सरकार के पास संसद के दोनों सदनों के अलावा गैर भाजपा शासित राज्यों मसलन तमिलनाडु, तेलंगाना व आंध्र से क्रमशः अन्नाद्रमुक, टीआरएस व वाईएसआर कांग्रेस का समर्थन है। दबाव है कि ऐसी दशा में प्रधानमंत्री मोदी को किसी प्रखर हिंदूवादी चेहरे को ही देश के सर्वोच्च पद पर बिठाने की पहल करनी चाहिए।
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विपक्ष का मानना है कि भले ही उसके पास राष्ट्रपति चुनाव में सत्ता पक्ष से मुकाबला होने की स्थिति पैदा हो जाए लेकिन संख्याबल कम पड़ेगा। लेकिन इससे सभी भाजपा विरोधी दलों ने अपने आपसी मतभेद भुलाकर एक मंच पर आकर मोदी और उनकी टीम को स्पष्ट संकेत दे दिया है।
विपक्षी पार्टियां राष्ट्रपति चुनावों के बहाने गढ़ी जा रही इस एकता को 2019 और उसके पहले ही नए धु्वीकरण का संकेत मान रही हैं। विपक्षी दलों ने देश के संविधान के समक्ष आसन्न खतरों, कमजोर वर्गों में व्याप्त असुरक्षा और अर्थव्यवस्था व बेरोजगारी के मोर्चे पर मोदी सरकार की नाकामियों जैसे कई मामलों को बैठक के प्रस्ताव में उठाकर दुधारी तलवार चलायी है।
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जाहिर है, कि विपक्षी दलों के बीच हाल की एकता संसद के भीतर अहम मुद्दों पर सरकार को घेरने की कारगर रणनीति को साझा कार्यक्रम के आधार पर मजबूत बना सकती है।