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दोहरी चुनौती: GST समारोह बायकाॅट से संसद के मानसून सत्र पर संकट के बादल

आगामी 1 जुलाई से वस्तु एवं सेवा कर कानून (जीएसटी) को लागू करने को कमर कस रही सरकार के लिए इस बार दोहरी चुनौती पैदा हो गई है।

tiwarishalini
Published on: 29 Jun 2017 9:20 PM IST
दोहरी चुनौती: GST समारोह बायकाॅट से संसद के मानसून सत्र पर संकट के बादल
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नई दिल्ली: आगामी 1 जुलाई से वस्तु एवं सेवा कर कानून (जीएसटी) को लागू करने को कमर कस रही सरकार के लिए इस बार दोहरी चुनौती पैदा हो गई है। एक तो सरकार को जीएसटी से जुड़े तमाम झंझटों के कारण पूरे देश में हर जगह आंदोलित व्यापारियों का कोप झेलना पड़ रहा है तो दूसरी ओर 30 जून की रात के समारोह को लेकर कांग्रेस, वाम दलों और तृणमूल जैसी पार्टियों के विरोध से निपटना है।

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देश के अगले राष्ट्रपति के चुनावों की तैयारियों के बीच संसद में चल रही गहमा गहमी के बीच सरकार को संसद के मानसून सत्र से भी निपटना है। 17 जुलाई को आरंभ हो रहा यह सत्र 11 अगस्त तक चलेगा। मोदी सरकार के लिए राहत की बात यही है कि तीन सप्ताह तक चलने वाले इस संक्षिप्त सत्र के लिए उसके पास ऐसा कोई कठिन विधाई कार्य नहीं है जिसके लिए विपक्ष के सहयोग की आवश्यता हो लेकिन सरकार के आंतरिक सूत्रों का कहना है कि यदि व्यापारियों के साथ किसानों का आंदोलन और सांप्रदायिक-जातीय टकराव और बढ़ा तो इससे विपक्ष को एकजुट होने और संसद के भीतर बाहर सरकार के लिए मुश्किलें पैदा करने का मौका मिलेगा।

गौरतलब है कि कांग्रेस ने जीएसटी समारोह के बायकाॅट की घोषणा ऐसे वक्त की है कि जब मोदी सरकार तीन साल पूरे होने के बाद चौथे साल में प्रवेश कर रही है। दूसरा व्यापारियों की समझ में भी ये बातें अब जाकर आ रही हैं कि कांग्रेस क्योंकि जीएसटी दर को 18 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ाने के हक में नहीं थी।

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विशेषज्ञ इस बात पर भी चिंता प्रकट कर चुके हैं कि पेट्रोलियम पदार्थों के अलावा रीयल एस्टेट और शराब के कारोबार को जीएसटी से बाहर करके केंद्र और राज्यों की राजस्व वसूली के एक बड़े स्रोत को खत्म करने के कठिन अंजाम होंगे।

विपक्ष का आकलन है कि जीएसटी के साथ जो कानूनी झंझट जोड़ दिए गए हैं और टैक्स वसूली के पांच स्लैब बना दिए गए हैं उससे अलग-अलग वस्तुओं का अलग-अलग आंकलन करना बहुत जटिल काम है।

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आंदोलनरत व्यापारी वर्ग का कहना है कि जीएसटी की बहु टैक्स प्रणाली का फंदा व्यापारियों के गले पर इस कदर कस गया है कि इससे बाहर निकलना उनके बूते में नहीं है। साथ ही सबसे बड़ी मार यह पड़ी है कि वे एक बार दोबारा इंस्पेक्टर राज की गिरफ्त में आ चुके हैं।

सबसे बड़ी वजह यह है कि कांग्रेस और बाकी विपक्षी दलों को जीएसटी समारोह के बायकाॅट के लिए व्यापारियों का इतना बड़ा समर्थन मिल रहा है। हालांकि, कांग्रेस ने जीएसटी लागू करने के मिड नाइट कार्यक्रम को लेकर दुधारी तलवार चलाते हुए कहा है कि संसद के संयुक्त अधिवेशन के बजाय केंद्रीय कक्ष समारोह को मोदी की इमेज बनाने की इवेंट बना दिया गया है।

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कांग्रेस इसलिए भी आंतरिक तौर पर खफा है कि जीएसटी सपना साकार करने के लिए मोदी सरकार ने वित्त मंत्री के तौर पर पी चिदंबरम के योगदान को पूरी तरह नजर अंदाज किया है और प्रणब मुखर्जी को इस सियासी नाटक में शामिल करके उनका अपमानित किया जा रहा है।



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